यह विचार तो काफी समय से प्रचलित रहा है कि जलचर जंतुओं से जमीन पर चलने वाले जीवों का विकास समुद्रों में आने वाले ज्वार-भाटों की वजह से हुआ है। जब समुद्र में ज्वार आता है तो पानी ज़मीन पर काफी दूर तक फैल जाता है। इन लहरों के साथ-साथ मछलियां भी बहती हैं। भाटे के समय पानी उतरता है मगर कहीं-कहीं गड्ढों में भरा रह जाता है और वहां कुछ मछलियां भी रह जाती हैं। और ज्वार-भाटे का एक चक्र तो दैनिक होता है जबकि दूसरा चक्र पाक्षिक होता है। तो विचार यह है कि इन गड्ढों में मछलियां अपने प्राकृतवास से अलग-थलग फंस जाती होंगी और वे ही समुद्र में वापिस पहुंच पाती होंगी जो अपनी मांसपेशियों का उपयोग करके ज़मीन पर ‘चलते’ हुए वापिस जा सकें।
अब इस विचार के पक्ष में कुछ अप्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं। बैंगर विश्व विद्यालय की हैना बायर्न ने समुद्र विज्ञान सम्मेलन में यह जानकारी दी है कि ज्वार और भाटे के बीच बहुत ज़्यादा अंतर करीब 40 करोड़ वर्ष पहले हुआ करता था। उस समय चांद पृथ्वी के ज़्यादा नज़दीक था और ज्वार ऊंचे हुआ करते थे। चांद और पृथ्वी की दूरी के आंकड़ों के आधार पर पता चला कि ज्वार-भाटों में अधिक अंतर का काल और प्रथम थलचर चौपायों के विकास का काल लगभग मेल खाता है।
लगभग इसी समय सेल नामक शोध पत्रिका में एक और अध्ययन प्रकाशित हुआ है जिसने ज़मीन पर चलने के विकास पर नई रोशनी डाली है।
यह एक जाना-माना तथ्य है कि सारी मछलियां तैरती नहीं है बल्कि कुछ मछलियां समुद्र के पेंदे पर चलती या रेंगती हैं। ऐसी ही एक मछली स्केट (Leucoraja erinacea) है। चलने और तैरने-रेंगने में एक प्रमुख अंतर मांसपेशियों के उपयोग का है। तैरने-रेंगने वाले जंतु अपनी रीढ़ की हड्डियों से जुड़ी मांसपेशियों का उपयोग करते हैं। वे अपनी रीढ़ की हड्डी को क्रमश: दाएं-बाएं लहराते हैं और इस लहरिया गति की वजह से उनकी धड़ की मांसपेशियां उन्हें आगे बढ़ाती हैं। दूसरी ओर, चलने वाले जंतु अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधी रखते हैं और कंधों व कूल्हों की मांसपेशियों का उपयोग आगे बढ़ने के लिए करते हैं।
मज़ेदार बात यह है कि इन दोनों गतियों के लिए अलग-अलग तंत्रिकाओं का उपयोग होता है। बात समझने के लिए न्यूयार्क विश्व विद्यालय के जर्मी डेसन ने कई जीवों की गति का अध्ययन किया। खास तौर से उन्होंने भुजाविहीन जंतुओं पर ध्यान दिया। जब उन्होंने स्केट मछली के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन किया तो रोचक परिणाम मिले।
अंडे से निकलने से पहले जब स्केट-भ्रूण के पंख नहीं निकले होते हैं उस समय यह भ्रूण शरीर में लहरदार हरकत दर्शाता है। किंतु समय के बीतने के साथ पंख निकलते हैं और यह भ्रूण अपनी रीढ़ की हड्डी को लहराना बंद कर देता है और उसकी सिर्फ पूंछ में लहरदार गति होती है। अंडे से निकलने के बाद इसके पिछले पंख आगे-पीछे होते हैं और इस गति में रीढ़ की हड्डी की कोई भूमिका नहीं होती। स्केट अपने पिछले पंखों को आगे पीछे करके समुद्र के पेंदे पर चलती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि स्केट की यह क्रिया जिन तंत्रिकाओं के नियंत्रण में होती है, वे वही तंत्रिकाएं हैं जिनका उपयोग पैरों से चलने वाले जंतु करते हैं। और तो और, इन तंत्रिकाओं के विकास के लिए ज़िम्मेदार जीन्स भी एक जैसे हैं।
तो लगता है कि मछलियों ने विकास क्रम में चलना जब भी शुरू किया हो किंतु उनमें इसके लिए ज़रूरी तंत्रिकाओं का विकास काफी पहले हो चुका था। और यह करीब 42 करोड़ वर्ष पहले की बात है। (स्रोत फीचर्स)