एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए कुछ कीड़ों की रणनीति यह होती है कि कोई बड़ा जीव उन्हें खा ले और वे उसके पेट में बैठे-बैठे यहां से वहां मुफ्त में पहुंच जाएं। जब वह बड़ा जीव मलत्याग करेगा तो उसके पेट में से ये कीड़े बाहर निकलकर नया जीवन शुरू कर सकते हैं। इसमें कुछ कीड़ों को महारत हासिल है। एरेक्निड समूह के इन कीड़ों को माइट कहते हैं। वैसे कई बीजों को भी इस कला का उस्ताद कहा जा सकता है।
कीड़ों के इस सफर में एक ही दिक्कत है - कीड़ों को कोई दूसरा जीव खाएगा, तो उसके पेट में ये पच भी सकते हैं। यदि इन कीटों को दूसरे जीवों के पेट में सवारी करनी है तो इन्हें पेट में जीवित रहना पड़ेगा। शोधकर्ता इसी बात को परखना चाहते थे। तो उन्होंने जर्मनी के जंगलों से कुछ स्लग्स और घोंघे लिए। अब इन्हें माइट्स की ज्ञात संख्या खिलाई गई। जब इन घोंघों और स्लग्स ने मलत्याग किया तो उसमें गिना गया कि कितने माइट्स जीवित बाहर निकले हैं।
प्रयोग में यह देखा गया कि 42 स्लग्स में से 31 ने तथा 15 घोंघों में से 7 ने माइट्स को निगला। इन सबके मल में कुल मिलाकर माइट्स की 36 प्रजातियां पाई गईं। और मल के साथ निकले माइट्स में से कम से कम दो-तिहाई जीवित थे। और तो और, घोंघों के मल में कई अन्य जंतु भी मिले - स्प्रिंगटेल्स, सिलिएट जीव, कृमि, मॉस और पौधों के बीज। इकॉलॉजिया में प्रकाशित इस शोध पत्र से तो लगता है कि माइट्स की स्थानांतरण की यह रणनीति काफी सफल है। इस तरीके को एंडोज़ुओकोरी कहते हैं। इससे यह भी लगता है कि घोंघे और स्लग्स काफी संख्या में मिट्टी के जंतुओं और पौधों को बिखराने का काम करते हैं। इसका मतलब है कि घोंघों और स्लग्स के साथ पूरी की पूरी आबादियां स्थानांतरित होती हैं। (स्रोत फीचर्स)