दांतों में झनझनाहट, केविटी जैसी समस्याएं दुनिया भर में काफी आम हैं। इनके लिए कोल्ड-डिं्रक्स, शराब, मीठे पेय या खट्टे पदार्थों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि सख्त ब्राश या जमकर ब्राश करना भी इसके कारण बताए जाते है। दांतों की समस्या को जिस तरह आजकल के खान-पान से जोड़कर देखा जाता है उससे ये समस्याएं आधुनिक युग की लगती हैं। लेकिन एक अध्ययन से पता चला है कि लाखों वर्ष पहले भी मनुष्य दांतों की लगभग ऐसी ही तकलीफों से परेशान रहते थे।
लिवरपूल जॉन मरे विश्व विद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के इआन टॉले और उनके साथियों को लगभग 25 लाख साल पुराने दो जीवाश्म दांतों पर घाव के निशान मिले हैं। ये दांत विलुप्त हो चुके ऑस्ट्रेलोपिथेकस एफ्रीकेनस मानव के सामने के दांत हैं। दांतों पर मिले घाव आधुनिक दंत-क्षरण समस्या जैसे हैं। दंत-क्षरण की समस्या में जमकर ब्राश करने से दांत की ऊपरी परत के ऊतक कमज़ोर हो जाते हैं। और फिर खट्टी चीज़ों का सेवन धीरे-धीरे दांत में छेद कर देता है। दांतों पर मिले इन घावों से इस बात की पुष्टि होती है कि प्रागैतिहासिक मानव और उनके पूर्वज हमारी ही तरह दांत की समस्याओं से परेशान थे। पर सवाल यह है कि उनका आहार हमसे काफी अलग होने के बावजूद उनके दांतो में समस्याएं क्यों थी।
ऑस्ट्रेलोपिथेकस एफ्रीकेनस मानव के भोजन में सख्त और रेशेदार चीज़ें होंगी। अनुमान है कि ये दांतों के ऊतकों को कमज़ोर करती होंगी। और आहार में शामिल खट्टे फल या सब्ज़ियों से दंत-क्षरण होकर घाव बने होंगे। हालांकि बहुत कम जीवाश्म दांतों में यह समस्या दिखी है। लेकिन अधिकतर जीवाश्म दांतों में केविटी की समस्याएं दिखी हैं।
दांतों में केविटी मीठे, मंड युक्त भोजन से होती है। चूंकि खेती की शुरुआत से भोजन में कार्बोहाइड्रेट और शक्कर की मात्रा बढ़ी है, इसलिए इस समस्या को आधुनिक माना जाता है। किंतु अब तक जितने जीवाश्मित दांतों पर अध्ययन हुए हैं, लगभग सभी में केविटी पाई गई है।
दांतों के घिसने से जुड़ी एक और समस्या है - डेंटल एब्रोशन। इसमें, दांतों के बीच बार-बार कोई सख्त चीज़ फंसाने या रगड़ने से निशान पड़ जाते हैं। जैसे नाखून चबाने से, दांतों के बीच पाइप या सुई फंसाने से, टूथपिक से दांतों के बीच फंसा खाना निकालने से। ऐसे निशान बनने में कई वर्ष का वक्त लगता है। कई जीवाश्म दांतों पर इस तरह के निशान मिले हैं। हो सकता है मनुष्य के पूर्वज भी दांतों के बीच फंसे भोजन को निकालने के लिए किसी डंडी या नुकीली वस्तु का उपयोग करते होंगे। दांतों पर मिले निशान, छेद या घाव उनके इस तरह के व्यवहार और संस्कृति का अनुमान देते हैं।
जीवाश्म दांतों में ये निशान उन पूर्वजों में नहीं पाए गए जो हमसे काफी अलग हैं। हो सकता है दांतों की समस्या का दिमाग के बड़े होने से कोई सम्बंध हो। पर ज़्यादा सम्बंध तो अलग भोजन और संस्कृति के असर से लगता है। पूर्वजों के आहार और संस्कृति के बारे में और जानकारी जीवाश्मों पर आगे और शोध से मिल पाएगी। (स्रोत फीचर्स)