संध्या रायचौधरी
इन दिनों दुनिया भर में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम बुद्धि को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। वैज्ञानिक युग के उभार के दौर में यह उम्मीद दशकों पहले ज़ाहिर की गई थी कि भविष्य में तकनीक ऐसे दौर में पहुंच जाएगी, जब इंसान के ज़्यादातर काम अंगुलियों के इशारे भर से हो जाएंगे। कंप्यूटर, मोबाइल और एटीएम वगैरह को देखें, तो कृत्रिम बुद्धि हमें उस दौर की ओर ले जाती हुई दिख भी रही है।
इंटरनेट पर जानकारियों का खज़ाना मुहैया कराने वाला गूगल बड़े ज़ोर-शोर से कृत्रिम बुद्धि पर काम कर रहा है। गूगल के कृत्रिम बुद्धि ग्रुप डीपमाइंड ने अल्फागो नाम से एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया है। इसका मकसद मशीन में कृत्रिम बुद्धि पैदा करना है, जो इंसानी दिमाग जैसा या उससे भी बेहतर प्रदर्शन करे। यानी इंसान की तरह सोचना, समझना और प्रतिक्रिया देना। गूगल के इस प्रोग्राम को पिछले साल तब बड़ी सफलता मिली, जब इसने ‘गो’ नामक खेल के दिग्गज खिलाड़ी ली सीडोल को हरा दिया। तब यह किसी पेशेवर ‘गो’ खिलाड़ी को हराने वाला पहला कंप्यूटर प्रोग्राम बना था।
यहां यह जानना गौरतलब है कि ‘गो’ एक चीनी बोर्ड गेम है। जानकारों की मानें, तो इस खेल को जीतने के लिए खिलाड़ी को शतरंज से भी कई गुना ज्यादा दांव-पेंच लगाने पड़ते हैं। अन्य खेलों के मुकाबले यह कंप्यूटर के लिए बहुत मुश्किल माना जाता है। इससे पहले 1997 में आईबीएम के कंप्यूटर डीप ब्लू ने शतरंज चैंपियन गैरी कास्परोव को हरा दिया था। इस घटना के 20 साल बाद दुनिया भर में कृत्रिम बुद्धि की कामयाबी के नए-नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं।
कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में गूगल अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से काफी आगे है। जहां कुछ कंपनियों के कृत्रिम बुद्धि प्रोग्राम डैटासेट में भरी गई जानकारी के आधार पर काम करने या सीखने तक ही सीमित है, वहीं गूगल के डीपमाइंड अल्फागो-ज़ीरो प्रोग्राम खुद-ब-खुद जानकारी इकट्ठा करने और सीखने में सक्षम हैं। साथ ही वे सीखी गई जानकारियों का विश्लेषण करने में भी सक्षम है। इस क्षेत्र में गूगल के प्रोजेक्ट्स गूगल ड्राइवरलेस कार, गूगल असिस्टेंस, गूगल एक्स, गूगल ब्रोन जैसे नाम महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इनसे कुछ अच्छा निकल कर आएगा।
कंप्यूटर की भाषा पर पकड़
अभी तक तो कोई भी कंप्यूटर मानवीय व्यवहारों जैसा प्रदर्शन नहीं कर सका है। इस दिशा में अब तक सबसे बड़ी प्रगति खेल के क्षेत्र में ही हो सकी है। जहां कंप्यूटर प्रोग्राम ने शतरंज या ‘गो’ गेम में इंसान को पराजित किया है। असेंबली संयंत्रों में विभिन्न पुर्ज़ों को जोड़ कर एक संपूर्ण मशीन तैयार करने (जैसे मोटर गाड़ी के कारखाने में आम तौर पर किया जाता है) के काम में रोबोट विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के आधार पर अब कंप्यूटरों का इस्तेमाल होने लगा है, किंतु अभी वे बहुत सीमित ढंग के कार्य के लायक ही हो सके हैं। कंप्यूटरों में यदि प्राकृतिक भाषा ‘समझने’ की नैसर्गिक क्षमता पैदा कर दी जाए, तो इंसान बगैर किसी विशिष्ट तकनीकी जानकारी के उनसे बातें कर सकेगा और यह उसके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। मगर इस दिशा में किए गए अब तक के सभी प्रयास निष्फल साबित हुए हैं।
इसी तरह, आवाज़ पहचानने के लिए भी ऐसे कंप्यूटर विकसित किए जा चुके हैं, जो बोले गए शब्दों को लिख सकते हैं, पर ‘समझ’ नहीं सकते कि वे क्या सुन और लिख रहे हैं।
अमेरिका के स्टेनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट इंटरनेशनल द्वारा संचालित कृत्रिम बुद्धि सेंटर विश्व में इस दिशा में शोध का अग्रणी केंद्र माना जाता है। कुछ प्रतिष्ठित संस्थान कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में शोध के साथ-साथ उसकी नकारात्मक संभावनाओं को रोकने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिाज द्वारा संचालित स्ट्रेटेजिक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रिसर्च सेंटर। आज दुनिया भर में कृत्रिम बुद्धि जैसी विकसित तकनीक पर काफी बहस हो रही है। विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। जहां एक ओर बड़ी कंपनियां और वि·ाविद्यालय कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में व्यापक शोध और विकास कार्यों पर बड़ी रकम खर्च कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रख्यात भौतिक विज्ञानियों ने इस बारे में चिंता जताई है।
इंसान के कॉमन सेंस का मुकाबला मुश्किल
कृत्रिम बुद्धि पर काम करने वाले कई वैज्ञानिक मानते हैं कि मानव मस्तिष्क एक अति विकसित कंप्यूटर जैसा है और एक दिन इंसान इतना ही विकसित कंप्यूटर बना लेगा। दूसरी तरफ अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि कृत्रिम बुद्धि के सभी पहलू मिल कर भी मनुष्य के सहज-ज्ञान (कॉमन सेंस) का मुकाबला नहीं कर सकते क्योंकि मशीनों की क्षमता इनकी प्रोग्रामिंग पर निर्भर है जबकि मानव मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं है। कृत्रिम बुद्धि इंसानी रचनात्मकता को भी टक्कर नहीं दे सकती।
कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था डीपमाइंड के उपाध्यक्ष डॉ. डेमिस हैसाबिस कहते हैं कि अभी तक खुद-ब-खुद सीखने वाले सिस्टम को आसान समस्याओं के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, पहली बार हमने इसका इस्तेमाल उन जटिल कामों के लिए किया है, जो इंसानों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने हाल ही में अपना वीडियो गेम कंसोल ‘एक्सवन’ लाने की घोषणा की है। यह उसी मोशन-ट्रेकिंग उपकरण काइनेट का ताज़ा संस्करण है, जिसमें गेम खेलने वाला अपने हाथों और शरीर की हरकतों से गेम पर नियंत्रण करता है।
‘अक्लमंद मशीन’ का विज्ञान
कृत्रिम बुद्धि ऐसी कंप्यूटर प्रणालियों के अध्ययन और विकास को कहते हैं, जो ऐसे कार्य कर सकें, जिसमें सामान्यत: मानवीय बुद्धि की ज़रूरत होती है। जैसे दृष्टिबोध, ध्वनि की पहचान, फैसले लेना और एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना आदि। वर्ष 1955 में जॉन मैकार्थी ने इसे यह नाम दिया था और इसे परिभाषित करते हुए कहा था कि यह ‘अक्लमंद मशीन’ बनाने का विज्ञान और इंजीनियरिंग है। कृत्रिम बुद्धि से संबद्ध कुछ प्रमुख शोधार्थी और पुस्तकें इसे एक ऐसा क्षेत्र बताते हैं, जिसमें इंटेलीजेंट एजेंट्स का अध्ययन व डिज़ाइन किया जाता है। यहां इंटेलीजेंट एजेंट्स से मतलब एक ऐसी प्रणाली से है, जो अपने परिवेश को समझते हुए ऐसी क्रियाएं करती है, जो उसकी सफलता की संभावनाएं ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ा सकें।
यह तकनीक मानव हितैषी प्रोग्राम बनाने के साथ-साथ स्वचालित हथियार जैसी चीज़ें बनाने की और भी अग्रसर है। साथ ही कुछ कंपनियों की इंसानों की जगह स्वचालित मशीनें या रोबोटिक मज़दूर लाने की योजना है। इन हथियारों पर कोई मानवीय नियंत्रण नहीं रहेगा। इस क्षेत्र में काम कर रहे कुछ विज्ञानियों का कहना है कि यदि इन हथियारों की कालाबाज़ारी के रास्ते खुल गए तो ये मानव अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं। साथ ही स्वचालित मशीन या रोबोट रोज़गार कम कर सकते हैं।
हॉकिंग: चेतावनी और चिंता
महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ज़िंदगी में टेक्नॉलॉजी के बढ़ते दखल पर हमेशा चिंता जताते थे। पिछले वर्ष पुर्तगाल के लिस्बन में हुए वेब शिखर सम्मेलन में हॉकिंग ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए कहा था कि आज हम कृत्रिम बुद्धि को लेकर बहुत उत्साहित हैं, लेकिन आने वाली पीढ़ी इसे इंसानी सभ्यता के इतिहास की सबसे खराब घटना के तौर पर याद करेगी। हॉकिंग ने वैज्ञानिक इलॉन मस्क की तारीफ में कहा था कि इलॉन जैसे वैज्ञानिक यदि कृत्रिम बुद्धि और रोबोट टेक्नॉलॉजी को इंसानों के लिए बड़ा खतरा बताते हुए इस पर प्रतिबंध तक की मांग कर चुके हैं तो समझ लेना चाहिए कि हम किस बड़े खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल सीखने के साथ-साथ इससे मानवता को हो सकने वाले संभावित खतरों के बारे में भी सीखें। उनका मानना था कि कृत्रिम बुद्धि में पूरी धरती को तबाह करने की ताकत है, तो साथ ही बड़ी बीमारियों का इलाज करने की भी क्षमता है। कृत्रिम बुद्धि भविष्य में इंसानों को विस्थापित भी कर सकती है। (स्रोत फीचर्स)