पहले जंतुओं पर और अब मनुष्यों पर किए गए प्रयोगों से लग रहा है कि थोड़ा कम खाने से आप स्वस्थ रहेंगे और लंबी उम्र जीएंगे। सेल मेटाबोलिज़्म नामक शोध पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित यह शोध पत्र लगभग 53 व्यक्तियों पर 2 साल तक किए गए एक अध्ययन पर आधारित है।
पहले कुछ जंतुओं पर प्रयोगों से पता चला था कि कम कैलोरी मिले तो उनकी शरीर क्रियाएं (चयापचय) धीमी पड़ती हैं और उम्र बढ़ती है। मगर वैसे भी ये जंतु अपेक्षाकृत कम आयु ही जीते हैं। इसलिए किसी ने भी यकीनन से नहीं कहा था कि यह बात मनुष्यों पर भी लागू होगी।
अब यूएस के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा प्रायोजित कैलेरी नामक शोध परियोजना के तहत मनुष्यों पर प्रयोग किया गया है। इसके अंतर्गत 53 स्वस्थ, मोटापे से मुक्त व्यक्तियों को शामिल किया गया था। शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि क्या कैलोरी सेवन को कम करके बुढ़ाने की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है। इन्हें दो समूहों में बांटा गया। सारे सहभागी 21 से 50 वर्ष के बीच थे। एक समूह परीक्षण समूह था जिसमें 34 व्यक्ति थे। इनका कैलोरी सेवन औसतन 15 प्रतिशत कम कर दिया गया। तुलना के लिए बनाए गए दूसरे समूह में 19 लोग थे जो सामान्य भोजन करते रहे। यह सिलसिला 2 साल तक चला। इन दो सालों में कई बार इन व्यक्तियों की कई जांचें की गर्इं। जैसे यह देखा गया कि कुल मिलाकर इनके चयापचय की क्या स्थिति है और बुढ़ाने के जैविक चिंह कैसे व्यवहार कर रहे हैं। बुढ़ाने के लक्षणों में एक खास बात ऑक्सीजन मुक्त मूलकों के कारण होने वाली क्षति होती है। इन लोगों को समय-समय पर एक ऐसे कमरे में रखा गया जहां इनकी ऑक्सीजन खपत, कार्बन डायऑक्साइड के निकास और पेशाब व अन्य रास्तों से नाइट्रोजन के उत्सर्जन का मापन किया जा सकता है। इनसे यह पता चलता है कि शरीर ऊर्जा उत्पादन के लिए किन पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, वसा या प्रोटीन) का उपयोग कर रहा है।
परीक्षणों से पता चला कि कम कैलोरी पर जी रहे लोग (बेचारे) अन्य की अपेक्षा सोते समय ऊर्जा का उपयोग ज़्यादा कुशलता से करते हैं। इन लोगों के आधारभूत चयापचय में कमी आई और यह कमी उनके वज़न में हुई कमी (औसतन 9 कि.ग्रा.) की अपेक्षा कहीं अधिक थी। सारे परिणाम दर्शाते हैं कि कम कैलोरी खपत से चयापचय दर में गिरावट आती है और बुढ़ाने के लक्षण भी कम होते हैं।
इस अध्ययन से तो लगता है कि थोड़ा कम खाने से व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है और लंबी उम्र जी सकता है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि यही असर बीच-बीच में उपवास करके भी हासिल किए जा सकते हैं (किंतु वह उपवास वैसा नहीं होगा जैसा लोग आम तौर पर करते हैं)। अलबत्ता ध्यान रखने की बात यह है कि यह अध्ययन स्वस्थ लोगों पर किया गया है जिनके पास 9कि.ग्रा. वज़न घटाने को था। लिहाज़ा इसके परिणाम आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से के लिए प्रासंगिक होंगे। (स्रोत फीचर्स)