बारिश में कार या बस या ट्रक चलाना हो और सामने के कांच पर वाइपर न हों, तो ड्राइवर ही जानता/जानती है कि कितनी दिक्कत होती है। मगर यह बात शायद आप न जानते हों कि इन वाइपर्स का जुगाड़ (आविष्कार) एक महिला मैरी एंडरसन ने 1902 में किया था।
मैरी एंडरसन ने अपने घर अलाबामा से न्यूयॉर्क के सफर में देखा था कि तेज़ बारिश होने पर बस के ड्राइवरों को सामने के शीशे खोलकर रखने पड़ते हैं। शीशे खोलकर गाड़ी चलाने पर देखने में तो मदद मिलती है किंतु चेहरे पर तेज़ बौछार से बचाव के लिए ड्राइवर को मुंह तिरछा करके गाड़ी चलाना पड़ती है।
इस समस्या के निराकरण के लिए एंडरसन ने सर्वप्रथम विंडशील्ड वाइपर का जुगाड़ जमाया। उन्होंने एक डिज़ाइनर को नियुक्त किया, उसने हाथ से चलने वाला एक उपकरण बनाया। यह एक रबर की पट्टी थी जो कांच से सटकर आगे-पीछे होती थी। ड्राइवर इसे गाड़ी के अंदर से ही एक लीवर की मदद से चलाकर कांच पर से पानी को पोंछ सकता था।
हालांकि कई लोगों को लगता था कि इसे चलाने में ड्राइवर का ध्यान भटकेगा किंतु एंडरसन ने 1903 में एक स्थानीय कंपनी की मदद से इसका उत्पादन शुरू किया। इसी वर्ष उन्हें इस उपकरण का पेटेंट भी हासिल हो गया। वर्ष 1916 तक ये वाइपर अधिकांश वाहनों में लगाए जाने लगे थे।
इस हस्तचालित वाइपर में सुधार कर-करके एक ऑटोमैटिक वाइपर बनाने का श्रेय भी एक महिला को ही जाता है - 1917 में चार्लोट ब्रिाजवुड ने ‘स्टॉर्म विंडशील्ड क्लीनर’ के नाम से स्व-चालित वाइपर पेटेंट करवाया था। इन दो महिलाओं के आविष्कारों ने मोटर उद्योग का हुलिया बदल दिया।