काफी समय से यह बात पता रही है कि कई लोगों में दो अलग-अलग अनुभूतियां आपस में जुड़ जाती हैं। जैसे कुछ लोगों को अक्षर देखने पर ध्वनि की अनुभूति होती है जबकि वहां कोई ध्वनि नहीं होती। कुछ लोगों को विशेष अक्षरों के साथ रंग या स्वाद की भी अनुभूति होती है या कोई मूक दृश्य देखकर आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं। इसे सिन-एस्थेशिया कहते हैं। इसे लेकर हाल ही में दो रोचक अध्ययन हुए हैं।
पहला अध्ययन दृश्य के साथ ध्वनि सुनाई पड़ने का है। यह अध्ययन करने वाले एलियट फ्रीमैन स्वयं इसका अनुभव कर चुके थे। अब फ्रीमैन सिटी युनिवर्सिटी लंदन में मनोवैज्ञानिक हैं। उन्होंने अपने सहकर्मी क्रिस्टोफर फासनिज के साथ मिलकर एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में सिन-एस्थेशिया के बारे में कुछ सवाल तो थे ही, साथ में 24 मूक वीडियो देखने को दिए गए थे और देखने वाले को बताना था कि क्या निशब्द वीडियो देखकर उन्हें किसी आवाज़ की अनुभूति हुई। ऐसी आवाज़ों को दृश्य-प्रेरित श्रवण अनुभूति कहते हैं।
सर्वेक्षण में शामिल 4000 में से 22 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें वे मूक वीडियो देखकर स्पष्ट ध्वनि सुनाई पड़ी। आगे किए गए अध्ययन से यह भी पता चला कि जिन लोगों को दृश्य संकेतों से ध्वनि की अनुभूति होती है उन्हें प्राय: कुछ ध्वनियां सुनने पर रोशनी भी दिखाई देती है। अलबत्ता, अधिकांश लोगों को ध्वनि तब सुनाई देती है जब वह दृश्य आसानी से ध्वनि का संकेत बन सकता है - जैसे हथौड़ा चलाने का दृश्य।
दूसरा अनुभव है कि संकेत-भाषा के अक्षर भी कुछ लोगों में ध्वनि की अनुभूति पैदा करते हैं। ससेक्स विश्व विद्यालय के जेमी वार्ड और साथी यह देखना चाहते थे कि लिखित अक्षरों के साथ जुड़ी अन्य अनुभूतियां क्या संकेत अक्षरों के साथ भी जुड़ जाती हैं।
उन्होंने ऐसे 50 वालंटियर लिए जिन्होंने सिन-एस्थेशिया का अनुभव होने की बात कही थी। इन सबको विशिष्ट अक्षरों के साथ रंग की अनुभूति होती थी। इनमें से आधे लोग संकेत भाषा में निपुण थे। सारे वालंटियर्स को संकेत भाषा का एक वीडियो दिखाया गया। उनमें से जो लोग संकेत भाषा जानते थे, उनमें से चार ने कहा कि उन्हें सम्बंधित अक्षर का संकेत देखकर उसी रंग की अनुभूति होती है जो लिखित अक्षर के साथ हुआ करती है। अर्थात यदि उन्हें लिखित ॠ के साथ गुलाबी रंग दिखता है तो संकेत भाषा में भी ॠ का संकेत देखकर गुलाबी रंग ही दिखा। और जो लोग संकेत भाषा नहीं जानते थे उन्हें कोई रंग नहीं दिखा जबकि लिखित अक्षरों के साथ उन्हें रंग दिखता था। इस प्रयोग के परिणाम न्यूरोकेस शोध पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
इन दोनों प्रयोगों से आशय निकलता है कि दृश्य संकेत किसी अन्य अनुभूति को तभी जन्म देते हैं जब उसका अर्थबोध भी हो। इनसे यह भी पता चलता है कि दिमाग के विभिन्न हिस्सों में परस्पर संवाद काफी आम है। (स्रोत फीचर्स)