प्रदीप
यह कहना गलत न होगा कि हमारे जीवन के लिए आवश्यक सभी तत्वों का निर्माण व पृथ्वी पर उनका वितरण तारों से ही हुआ है। आपका सवाल होगा कि कैसे? मगर इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह जानना आवश्यक होगा कि मानव शरीर किन तत्वों से बना है। यदि आपका जवाब है कि यह पंच-तत्व - पृथ्वी, गगन, वायु, अग्नि और जल - से बना है तो आप आधुनिक विज्ञान के अनुसार गलत हैं।
मगर क्यों? आप कहेंगे कि आखिर इन पांच तत्वों से ही तो ब्राहृांड की उत्पत्ति हुई है ना! और तो और, सारे जीव-जंतु, पेड़-पौधे और हम मनुष्य भी इन पांच-तत्वों के ही संयोग से पैदा हुए हैं। दरअसल इन पंच-तत्वों को प्राचीन काल से ही मूल तत्वों की संज्ञा दी जाती रही है। अर्थात इन पांच पदार्थों का और कोई रूपांतर नहीं हो सकता।
मगर प्राचीन काल से प्रचलित यह पंच-तत्व सिद्धांत आधुनिक विज्ञान के समक्ष टिक नहीं सका। उन्नीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक रॉबर्ट बॉयल, एन्तोन लेवॉज़िए, जोसेफ प्रिस्टले और जॉन डाल्टन ने बताया कि पृथ्वी, गगन, वायु आदि मूल तत्व नहीं हैं। इनमें से प्रत्येक पदार्थ का विश्लेषण किया जा सकता है और विश्लेषण करने पर सभी पदार्थों में एक से अधिक पदार्थ स्पष्ट दिखाई देते हैं। जैसे वायु ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बन डायऑक्साइड आदि का मिश्रण है तथा जल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से निर्मित है। इसलिए ये पंच-तत्व शुद्ध तत्व नहीं हैं और ये अन्य तत्वों से मिलकर बने हैं।
तो वे ऐसे कौन-से प्रमुख तत्व हैं जिनसे मानव शरीर निर्मित हुआ है? मानव शरीर का लगभग 99 प्रतिशत भाग मुख्यत: छह तत्वों से बना है: ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्शियम और फॉस्फोरस। लगभग 0.85 प्रतिशत भाग अन्य पांच तत्वों से बना है: पोटेशियम, सल्फर, सोडियम, क्लोरीन तथा मैग्नेशियम। इसके अतिरिक्त एक दर्जन ऐसे तत्व हैं, जो जीवन के लिए आवश्यक माने जाते हैं, जिनमें बोरॉन, क्रोमियम, कोबॉल्ट, कॉपर, फ्लोरीन आदि शामिल हैं। ये तो हुए हमारे शरीर/जीवन के निर्माण में योगदान देने वाले तत्व।
अब हम इस प्रश्न पर आते हैं कि मानव जीवन के निर्माण हेतु आवश्यक ये तत्व तारों ने किस प्रकार मुहैया कराए। उसके लिए हम 13.8 अरब वर्ष पहले शुरू हुए ब्राहृांड के जन्म की यात्रा पर चलते हैं।
लगभग सारे वैज्ञानिक मानते हैं कि आज से तकरीबन 13.8 अरब वर्ष पहले हमारे ब्राहृांड की उत्पत्ति बिग बैंग से हुई थी। एक मायने में तो सब कुछ की शुरुआत बिग बैंग से ही हुई थी। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्राहृांड एक परमाण्विक इकाई (सिंगुलरैटी) के रूप में था। तब समय और अंतरिक्ष जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी। बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व इस महाविस्फोट के कारण अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि इसके प्रभाव से ब्राहृांड आज तक फैल रहा है।
विस्फोट के बाद ब्राहृांड धीरे-धीरे ठंडा होने लगा। जैसे-जैसे यह ठंडा होने लगा वैसे-वैसे ऊष्मा जनित बल की टक्कर में गुरुत्वाकर्षण बल अपना प्रभाव दिखाने लगा। इसके प्रभाव से निहारिकाएं बनने लगीं जो मुख्यत: हाइड्रोजन और अंतरतारकीय धूल के बड़े-बड़े बादल थे। ये बादल बिग बैंग के दौरान पैदा हुए हाइड्रोजन, हीलियम नामक हल्के तत्वों से बने थे। यही बादल समय बीतने के साथ तारों की जन्मस्थली बन जाते हैं, और इनमें मौजूद हाइड्रोजन, हीलियम और कुछ अन्य तत्व तारों के निर्माण का कच्चा पदार्थ होते हैं।
मानव शरीर के प्रमुख तत्व | |
तत्व | शरीर में प्रतिशत |
ऑक्सीजन कार्बन हाइड्रोजन नाइट्रोजन कैल्शियम फॉस्फोरस पोटेशियम सल्फर सोडियम क्लोरीन मैग्नीशियम |
65.0 9.5 3.2 1.5 1.0 0.4 0.3 0.2 0.2 0.1 |
1 प्रतिशत से कम अल्प मात्रा तत्व जैसे बोरॉन, क्रोमियम, कोबाल्ट, कॉपर, फ्लोरीन, आयरन, मैंग्नीज़, मोलिब्डेनम, सेलेनियम, सिलिकॉन, टिन, वेनेडियम और ज़िंक। |
वर्तमान में सभी वैज्ञानिक इस सिद्धांत से सहमत हैं कि धूल और गैसों के बादलों से ही तारों का जन्म होता है। कल्पना कीजिए कि गैस और धूल से भरा हुआ बादल अपने ही गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिकुड़ने लगता है। जैसे -जैसे बादल में सिकुड़न होने लगती है, वैसे-वैसे उसके केंद्रीय भाग का तापमान तथा दाब भी बढ़ने लगता है। आखिर में तापमान और दाब इतना अधिक हो जाता है कि हाइड्रोजन के नाभिक आपस में टकराकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं। तब ताप नाभिकीय अभिक्रिया (संलयन) प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रक्रिया में प्रकाश तथा गर्मी के रूप में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस प्रकार वह बादल ताप और प्रकाश से चमकता हुआ तारा बन जाता है।
डेनमार्क के वैज्ञानिक एजनार हट्र्ज़स्प्रंग और अमेरिकी वैज्ञानिक हेनरी रसेल ने तारों के रंग तथा तापमान में महत्वपूर्ण सम्बंध दर्शाया है। दोनों वैज्ञानिकों ने तारों के रंग तथा तापमान के आधार पर एक ग्राफ तैयार किया, जिसे हट्र्ज़स्प्रंग-रसेल ग्राफ के नाम से जाना जाता है। हट्र्ज़स्प्रंग-रसेल ग्राफ में अधिकतर तारे एक क्षेत्र में पाए जाते हैं जिसे मुख्य अनुक्रम कहते हैं। इसका कारण यह है कि तारे अपने जीवन का 90 प्रतिशत भाग इसी अवस्था में व्यतीत करते हैं। इस अवस्था में हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तन काफी लम्बे समय तक चलता है। इसके कारण तारों के केंद्रीय भाग में हीलियम की मात्रा में वृद्धि होती रहती है। अंत में तारों का यह केंद्रीय भाग (क्रोड) हीलियम में परिवर्तित हो जाता है।
जब क्रोड हीलियम में परिवर्तित हो जाता है तो उसके उपरांत उनकी ताप-नाभिकीय अभिक्रियाएं इतनी तेज़ी से होने लगती हैं कि तारे मुख्य अनुक्रम से अलग हो जाते हैं। इस अवस्था के बाद तारे के केंद्रीय भाग में सिकुड़न शुरू हो जाती है। सिकुड़न के कारण ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसके कारण तारा फैलने लगता है। फैलने के बाद वह एक दानव तारा बन जाता है।
दानवी अवस्था में पहुंचने के बाद तारे के अंदर हीलियम की ऊर्जा उत्पन्न होती है। और एक विशेष प्रक्रिया के तहत हीलियम भारी तत्वों में बदलने लगता है। अंतत: यदि तारा सूर्य से पांच-छह गुना अधिक बड़ा हो तो उसमें छोटे-छोटे विस्फोट होकर उससे तप्त गैसें बाहर निकल पड़ती हैं। उसके बाद तारा श्वेत वामन के रूप में अपने जीवन का अंतिम समय व्यतीत करता है।
प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और नोबेल विजेता डॉ. सुब्रामण्यम चन्द्रशेखर ने यह सिद्ध किया था कि श्वेत वामन तारों का द्रव्यमान सूर्य से 44 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। इस द्रव्यमान-सीमा को खगोल विज्ञान में चन्द्रशेखर-सीमा के नाम से जाना जाता है।
जो तारे सूर्य से पांच-छह गुना से अधिक विशाल होते हैं अंतत: उनमें एक भंयकर विस्फोट होता है। विस्फोटी तारे के बाहर का समस्त आवरण (कवच) उड़ जाता है और उसका समस्त पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाता है। मगर उसका बेहद गर्म क्रोड सुरक्षित रहता है। इस अद्भुत घटना को सुपरनोवा कहते हैं। यदि उस तारे में अत्यधिक तेज़ी से सिकुड़न होने लगती है तो वह न्यूट्रॉन तारे का रूप धारण कर लेता है, बशर्ते कि उस तारे का द्रव्यमान हमारे सूर्य से दुगने से अधिक न हो। कुछ विशेष परिस्थितियों में तारे इतना अधिक संकुचित हो जाते हैं कि उनका गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक बढ़ जाता है कि उनमें से प्रकाश की किरणें भी बाहर नहीं निकल पाती हैं। इन्हें ब्लैक होल कहते हैं।
सुपरनोवा विस्फोट के कारण तारे का जो पदार्थ बाह्य अंतरिक्ष में बिखर जाता है, वह किसी दिन नया ग्रह बनाने में भी मददगार हो सकता है। तारों के इन्हीं अवशेषों में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, लोहा, निकल, सिलिकॉन आदि अन्य सभी तत्व पाए जाते हैं। हमारा जीवन अतीत में हुए सुपरनोवा विस्फोटों की ही देन है, इसमें आपको कोई संदेह है, क्या? महान वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक कार्ल सैगन ने कहा है: “हमारे डीएनए में नाइट्रोजन, दांतों में कैल्शियम, हमारे खून में लोहा, हमारे हलवे में कार्बन (ये सब) तारों के अन्दर बने थे। हम तारा-पदार्थ से ही बने हैं।” (स्रोत फीचर्स)