कई चमगादड़ अंधेरे में रास्ते की बाधाओं को ताड़ने के लिए प्रतिध्वनि का इस्तेमाल करते हैं। वे तीखी ध्वनि पैदा करते हैं और सुनते हैं कि उस ध्वनि को किसी वस्तु से टकराकर लौटने में कितना समय लगता है। इसके अलावा वे यह भी विश्लेषण करते हैं कि आवाज़ की गुणवत्ता में क्या परिवर्तन हुए हैं। इसके आधार पर वे वस्तु की दूरी और अन्य गुण पता कर लेते हैं।
कई दृष्टिबाधित व्यक्ति भी प्रतिध्वनि का इस्तेमाल रास्ते की बाधाओं का पता करने हेतु करते हैं। वे मुंह से क्लिक की आवाज़ फेंकते हैं या चुटकियां बजाते चलते हैं। वे इन आवाज़ों की प्रतिध्वनि से रुकावटों का अंदाज़ लगाते हैं।
चमगादड़ों में इस प्रक्रिया (जिसे इको-लोकेशन कहते हैं) के संदर्भ में एक और व्यवहार का विकास हुआ है। ऐसा देखा गया है कि चमगादड़ वस्तु के निकट आने पर या उसे भांपने में कोई और दिक्कत होने पर अपनी आवाज़ को ऊंची कर देते हैं अर्थात आवाज़ की तीव्रता बढ़ा देते हैं। यू.के. के डरहम विश्वविद्यालय के तंत्रिका वैज्ञानिक लोर थेलर यह देखना चाहते थे कि क्या मनुष्य भी तीव्रता को घटाने-बढ़ाने की इस तकनीक का उपयोग करते हैं।
इसके लिए थेलर ने इको-लोकेशन में निपुण 8 व्यक्तियों के सामने एक चुनौती पेश की - क्या वे यह पता कर सकते हैं कि उनके सिर से तीन फीट की दूरी पर एक थाली लटकी है या नहीं। आप चाहें तो यह प्रयोग खुद भी करके देख सकते हैं। आंखें बंद कर लीजिए और एक थाली को अलग-अलग दूरी पर और अलग-अलग दिशा में लटकवाकर आवाज़ और उसकी प्रतिध्वनि की मदद से भांपने की कोशिश कीजिए।
प्रयोग के दौरान देखा गया कि यदि थाली एकदम सामने लटकी हो तो ये 8 व्यक्ति लगभग सही बता पाते हैं। किंतु यदि थाली को थोड़ा एक तरफ (लगभग 45 डिग्री के कोण पर) या एकदम साइड में या पीछे कर दिया जाए तो उन्हें मुश्किल होती है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह पता चली कि चमगादड़ों के समान मनुष्य भी दिक्कत होने पर वही तकनीक आज़माते हैं - या तो अपनी क्लिक्स की संख्या बढ़ा देते हैं या उनकी तीव्रता बढ़ा देते हैं। परिणाम प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित करते हुए थेलर ने सुझाव दिया है कि यदि वस्तु को भांपने में दिक्कत हो रही है तो क्लिक्स की संख्या बढ़ाने या उनकी तीव्रता बढ़ाने से मदद मिल सकती है। (स्रोत फीचर्स)