संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2012 में जैव विविधता और इकोसिस्टम सेवाओं के संदर्भ में विज्ञान-नीति सम्बंधी पैनल का गठन किया गया था। इस पैनल ने तीन वर्षों के अध्ययन के बाद हाल ही में अपनी पांच रिपोट्र्स प्रस्तुत कर दी हैं। अध्ययन के अंतर्गत अफ्रीका, अमेरिका, युरोप, मध्य एशिया तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जैव विविधता ह्यास का आकलन किया गया है और जो तस्वीर सामने आई है, वह काफी निराशाजनक है। रिपोर्ट को तैयार करने में 100 देशों के 500 वैज्ञानिक शामिल थे।
पैनल के अध्यक्ष रॉबर्ट वॉटसन ने बताया है कि प्रजातियों की विलुप्ति की दर प्राकृतिक दर से 1000 गुना ज़्यादा है। यानी प्रजातियां हज़ार गुना तेज़ी से गुम हो रही हैं। इसका असर मनुष्यों पर हुए बिना नहीं रहेगा। समूह की रिपोर्ट मार्च में आयोजित बैठक में प्रस्तुत की गईं। इस बैठक में 129 सदस्य राष्ट्रों ने शिरकत की थी। रिपोर्ट के मुताबिक युरोप और मध्य एशिया में 28 प्रतिशत प्रजातियों पर विलुप्ति का संकट मंडरा रहा है।
प्रजातियों पर संकट के अलावा रिपोर्ट में भूमि की क्षति का भी अनुमान पेश किया गया है। रिपोर्ट का मत है कि भूमि की सेहत आज काफी नाज़ुक हालत में है और इसका असर 3.2 अरब लोगों की आजीविका पर हो सकता है। पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) के विनाश से पर्यावरणीय उत्पादों व सेवाओं की उपलब्धता में कमी आने की आशंका है - जैसे खाद्य व औषधियां। भविष्य में इनकी उपलब्धता तेज़ी से घटेगी। इनमें भी सबसे ज़्यादा नुकसान नम-भूमि तंत्रों का हुआ है। वर्ष 1900 के बाद से कम से कम 50 प्रतिशत नम-भूमियां तबाह हो गई हैं। ऐसा अनुमान है कि अगले 30 वर्षों में फसलों की उपज में औसतन 10 प्रतिशत की गिरावट आएगी। ऐसा मुख्यत: भूमि की बरबादी और जलवायु परिवर्तन की वजह से होगा। रिपोर्ट में बताया गया है कि संकट की मुख्य वजह कृषि के बदलते तौर-तरीके हैं। युरोप में सबसिडी के चलते उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक इस्तेमाल होता है जो पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहा है।
रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक कदमों की बात भी की गई है। जैसे एशिया प्रशांत क्षेत्र में 2004 से 2017 के बीच ज़मीनी संरक्षित क्षेत्र में 0.3 प्रतिशत तथा समुद्री संरक्षित क्षेत्र में 13.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है किंतु साथ ही यह चेतावनी भी दी गई है मात्र संरक्षित क्षेत्र बनाने से काम नहीं चलेगा।
इस अंतर्राष्ट्रीय पैनल का मुख्य मकसद ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना है जो पर्यावरण, जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए अनुकूल हों। (स्रोत फीचर्स)