दो जुड़वां भाइयों पर किए गए एक अध्ययन ने मानव शरीर पर अंतरिक्ष यात्रा के असर को समझने में मदद की है। मार्क केली और स्कॉट केली अभिन्न यानी हूबहू एक समान जुड़वां भाई हैं। जुड़वां बच्चे दो तरह से पैदा होते हैं। स्त्री के अंडाशय से आम तौर पर हर माह एक अंडाणु बाहर आता है और एक शुक्राणु से इसका निषेचन होने पर एक भ्रूण बनता है। कभी-कभी अंडाशय से एक से अधिक अंडाणु बाहर आ जाते हैं और ये सभी निषेचित हो जाते हैं। इस प्रकार एक समय में एक से अधिक बच्चे (जुड़वां) पैदा होते हैं। आम तौर पर इनकी संख्या दो होती है। इनकी शक्ल-सूरत और गुणधर्मों में उतनी ही समानता होती है जितनी कि सगे भाई-बहनों में। अंतर केवल इतना होता है कि वे एक साथ मां के गर्भ में पलते हैं और एक साथ जन्म लेते हैं। इस प्रकार के जुड़वां बच्चों को द्विअण्डज या फ्रेटर्नल जुड़वां कहते हैं।
कभी-कभी निषेचित अंडाणु दो भागों में बंट जाता है और हर भाग से एक भ्रूण विकसित हो कर दो जुडवां बच्चे बन जाते हैं। एक ही निषेचित अंडाणु से बनने के कारण इनके गुणसूत्र और गुणधर्म बिलकुल एक समान होते हैं। इनकी संख्या हमेशा दो ही होती है और ये दोनों या तो लड़के होते हैं या लड़कियां होती हैं। इस प्रकार के बच्चे अभिन्न या आइडेंटिकल जुड़वां कहलाते हैं। मार्क केली और स्कॉट केली इसी प्रकार के जुड़वां हैं।
यूएस की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इन दो जुड़वां पर अध्ययन किए थे जिसकी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। अध्ययन के दौरान स्कॉट केली पूरे एक साल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में रहे और मार्क केली धरती पर। अध्ययन शुरू होने से पहले दोनों के विभिन्न शारीरिक आंकड़े ले लिए गए थे। एक साल बाद जब स्कॉट वापिस धरती पर आए तो एक बार फिर दोनों के शारीरिक आंकड़े लिए गए। ये आंकड़े स्कॉट के वापिस आने के तुरंत बाद, दो दिन बाद और छ: महीने बाद के हैं।
रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद मीडिया में ऐसा घालमेल हुआ कि अंतत: नासा को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कई मामलों में स्पष्टीकरण देना पड़ा। दरअसल पूरा मामला मीडिया की सनसनी में उलझ कर रह गया था। जैसे कुछ अखबारों ने लिख दिया कि अंतरिक्ष में एक साल बिताने के बाद स्कॉट और केली अब अभिन्न जुड़वां नहीं रह गए हैं क्योंकि स्कॉट के जीन्स में बहुत बदलाव आ गए हैं। ऐसी भ्रामक रिपोर्टिंग को लेकर नासा ने जो वक्तव्य जारी किया वह यहां प्रस्तुत है।
“मार्क और स्कॉट केली आज भी अभिन्न जुड़वां हैं; स्कॉट के डीएनए में कोई बुनियादी बदलाव नहीं हुआ है। शोधकर्ताओं ने उनके जीन्स की अभिव्यक्ति में अंतर ज़रूर देखा है, जो इस बात पर निर्भर है कि आपका शरीर आपके पर्यावरण के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देता है। ये परिवर्तन तनाव के तहत होने वाले परिवर्तनों के दायरे में हैं, जैसे पहाड़ चढ़ना, या स्कूबा गोताखोरी करना।
परिवर्तनों का सम्बंध मात्र 7 प्रतिशत जीन अभिव्यक्ति से है जो अंतरिक्ष उड़ान के दौरान परिवर्तित हुई और जो धरती पर छ: माह बीतने के बाद भी उड़ान-पूर्व स्थिति में बहाल नहीं हुई है। जीन अभिव्यक्ति में यह परिवर्तन बहुत कम है। हम यह समझने की शुरुआत कर रहे हैं कि अंतरिक्ष उड़ान का मानव शरीर पर आणविक स्तर पर क्या असर होता है। नासा और सहयोगी शोधकर्ता जल्दी ही विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।
जुड़वां अध्ययन के साथ नासा अंतरिक्ष यात्रा के जीनोमिक्स युग में प्रवेश कर गया है। यह नई ज़मीन तोड़ने वाला अध्ययन है जिसमें अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली और धरती पर बने रहे उनके अभिन्न जुड़वां मार्क केली की तुलना की गई है। यह प्रकृति बनाम परवरिश अध्ययन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
जुड़वां अध्ययन में देश भर की दस अनुसंधान टीमें शामिल थीं जिनका लक्ष्य एक ही था: यह पता करना कि एक साल अंतरिक्ष में बिताने के बाद मानव शरीर पर क्या असर होते हैं। नासा के पास इस बात की तो काफी समझ है कि छ: माह के मानक अंतराल के बाद क्या होता है क्योंकि वह तो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रहने की सामान्य अवधि है। किंतु स्कॉट केली का एक-वर्षीय अंतरिक्ष मिशन भविष्य में एक तीन-वर्षीय अध्ययन की तैयारी है।
यदि जुड़वां अध्ययन के परिणामों को एक नाटक की तरह देखा जाए, तो इसका पहला अंक 2017 में मानव अनुसंधान कार्यक्रम के अन्वेषक सम्मेलन से शुरू होता है। यहां दस टीमों ने अपने प्रारंभिक परिणाम प्रस्तुत किए थे। इनमें इस सम्बंध में सूचनाएं थीं कि अंतरिक्ष में प्रवास के दौरान स्कॉट केली को शरीर-क्रिया (कार्यिकी) और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्या-क्या हुआ और इनकी तुलना धरती पर रहे मार्क केली की जानकारी से की गई थी। 2018 का अन्वेषक सम्मेलन अंक 2 है जहां यह बताया गया था कि धरती पर लौटने के बाद मार्क की तुलना में स्कॉट की क्या स्थिति थी। और अंक 3 इस वर्ष (2018) के अंत में प्रस्तुत किया जाएगा जिसमें एक एकीकृत रिपोर्ट पेश होने की उम्मीद है।
विभिन्न चयापचयी पदार्थों (यानी शरीर क्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाले पदार्थों), सायटोकाइन्स, प्रोटीन्स वगैरह के मापन से शोधकर्ताओं को पता चला है कि अंतरिक्ष उड़ान की परिस्थितियां लगभग शरीर में ऑक्सीजन की कमी, सूजन में वृद्धि और पोषण में नाटकीय बदलाव के समान होती हैं और ये सभी जीन अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं।
धरती पर लौटने के बाद स्कॉट ने धरती के गुरुत्वाकर्षण से पुन: तालमेल बनाने की प्रक्रिया शुरू की। अंतरिक्ष में उन्होंने जिन जैविक परिवर्तनों का अनुभव किया था, वे जल्दी ही उड़ान-पूर्व स्थिति में आ गए। कुछ परिवर्तन महज़ चंद घंटों या दिनों में बहाल हो गए जबकि कुछ छ: माह के बाद भी बने रहे।
स्कॉट के टीलोमेयर (गुणसूत्रों की टोपी जो उम्र के साथ छोटी होती जाती है) वास्तव में काफी लंबे हो गए थे। यह परिणाम 2017 में प्रस्तुत हुआ था और अब अतिरिक्त जानकारी यह है कि उनमें से अधिकांश टीलोमेयर धरती पर लौटने के बाद वापिस छोटे हो गए हैं।
एक रोचक निष्कर्ष ‘अंतरिक्ष जीन्स’ को लेकर हैं। शोधकर्ता जानते हैं कि स्कॉट के 93 प्रतिशत जीन्स धरती पर लौटने के बाद सामान्य स्थिति में आ गए हैं। अलबत्ता, शेष 7 प्रतिशत की बहाली न होने का मतलब है कि प्रतिरक्षा तंत्र, डीएनए की मरम्मत, अस्थि निर्माण, ऑक्सीजन की कमी (हायपॉक्सिया) और कार्बन डाईऑक्साइड में वृद्धि (हायपरकैप्निया) से सम्बंधित जीन्स में दूरगामी परिवर्तन हो सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष मिशन की अवधि को छ: माह से बढ़ाकर एक वर्ष कर देने का स्कॉट के संज्ञान कार्य पर धरती पर रहे भाई मार्क की तुलना में कोई उल्लेखनीय असर नहीं हुआ है। अलबत्ता, एक वर्ष की अंतरिक्ष उड़ान की अवधि के बाद स्कॉट की गति व सटीकता में कमी ज़रूर देखी गई जिसका सम्बंध शायद पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के साथ तालमेल की प्रक्रिया और स्कॉट के व्यस्त कार्यक्रम से है।
उपरोक्त सारे परिणामों को अब एक समग्र रिपोर्ट का रूप दिया जा रहा है। शोधकर्ता यह भी देखने की कोशिश कर रहे हैं कि ये परिणाम सुदूर अंतरिक्ष यात्राओं को किस तरह प्रभावित करेंगे।
जुड़वां अध्ययन से नासा को अंतरिक्ष में मानव शरीर के लिए संभावित जोखिमों का अनुमान लगाने में जीनोमिक्स का उपयोग करने का पहला अवसर मिला है। ...इस अध्ययन के परिणाम भावी परिकल्पनाओं के निर्माण का मार्गदर्शन करेंगे। जुड़वा अध्ययन भविष्य में नासा के मानव अनुसंधान कार्यक्रम में लाभ पहुंचाएगा क्योंकि नासा अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत व सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
नासा का मानव अनुसंधान कार्यक्रम सुरक्षित, लाभदायक अंतरिक्ष यात्रा के लिए सर्वोत्तम तरीके और टेक्नॉलॉजी विकसित करने के लिए है। मानव अनुसंधान कार्यक्रम अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत और कार्य-निष्पादन में जोखिमों को कम करके अंतरिक्ष की खोजबीन को बढ़ावा देता है। इससे एक खोजी जैव-चिकित्सा कार्यक्रम के विकास व क्रियांवयन में मदद मिलती है जो मानव स्वास्थ्य, कार्य-निष्पादन व अंतरिक्ष में आवास के मानक तय करने पर केंद्रित है। मानव अनुसंधान कार्यक्रम नवाचारी वैज्ञानिक मानव अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिष्ठित विश्व विद्यालयों, अस्पतालों व अन्य केंद्रों के 200शोधकर्ताओं को 300अनुसंधान अनुदान उपलब्ध कराता है।” (स्रोत फीचर्स)