परमाणु बल सूक्ष्मदर्शी तकनीक से अणुओं की रचना को बहुत ही बारीकी से देखना संभव हुआ है और यह तकनीक तेज़ी से विकसित हो रही है। दरअसल, यह तकनीक किसी भी अणु में प्रत्येक परमाणु के आसपास इलेक्ट्रॉन के घनत्व के आधार पर काम करती है।
इस तकनीक में किया यह जाता है कि किसी पदार्थ की एक अत्यंत महीन परत बनाई जाती है। जैसे पुराने ज़माने में रिकॉर्ड बजाते थे, उसी तरह का एक अति-सूक्ष्म स्टायलस उस परत पर घुमाया जाता है। यह स्टायलस विद्युत-चुंबकीय बलों के प्रति संवेदनशील होता है। स्टायलस परत को छूता नहीं है बल्कि उससे चंद नैनोमीटर ऊपर रहकर उसके ऊपर घूमता है।
पदार्थ की महीन परत अणुओं से बनी होती है। इन अणुओं में अलग-अलग क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉन का घनत्व अलग-अलग होता है। ये इलेक्ट्रॉन विद्युत-चुंबकीय प्रभाव पैदा करते हैं। जब स्टायलस अणु के अलग-अलग हिस्सों के ऊपर पहुंचता है तो वह अलग-अलग परिमाण में बल महसूस करता है और कंपन करता है। इन कंपनों को एक लेसर किरण की मदद से रिकॉर्ड किया जाता है। इस तरह से किसी भी अणु में इलेक्ट्रॉन घनत्व के वितरण का एक चित्र बनता है। वैसे इस चित्र को तैयार करने में कंप्यूटरों की काफी मदद ली जाती है। अब कुछ शोधकर्ताओं ने स्टायलस को इस तरह परिवर्तित कर दिया है कि उसके कंपनों को सीधे विद्युत संकेतों में तबदील किया जा सकता है। इस प्रकार से लेसर किरणों की ज़रूरत समाप्त हो गई है।
इस तकनीक का उपयोग न सिर्फ अणुओं की रचना को समझने में किया जा रहा है बल्कि रासायनिक क्रियाओं को चलते हुए देखने के लिए भी किया जा रहा है। बहरहाल, तकनीक अवधारणा के स्तर पर जितनी आसान लगती है, टेक्नॉलॉजी के स्तर पर उतनी ही जटिल है। जैसे अध्ययन किए जा रहे नमूने को लगभग निर्वात में रखना होता है क्योंकि स्टायलस बहुत संवेदनशील होता है और आसपास मौजूद किसी भी पदार्थ की इलेक्ट्रॉन रचना से विचलित हो जाता है। तापमान भी बहुत कम रखना होता है अन्यथा स्टायलस में प्रयुक्त पदार्थ विकृत हो जाता है।
सारी तकनीकी अड़चनों के बावजूद परमाणु बल सूक्ष्मदर्शी विधि तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है और इसका उपयोग खास तौर से जैविक तंत्रों को समझने में किया जा रहा है। (स्रोत फीचर्स)