मनीष श्रीवास्तव
वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने मिलकर पेरिस में इंटरनेशनल सोलर एलांयस का गठन किया था। 2016 में ओलांद ने ही गुड़गांव में पांच एकड़ भूमि पर इंटरनेशनल सोलर एलांयस (आईएसए) के मुख्यालय की नींव रखी थी। इसके बाद से इस संगठन को क्रियाशील करने के प्रयास दोनों देशों द्वारा तेज़ी से किए जा रहे थे। अब 11 मार्च 2018 को इस संगठन के कामकाज की औपचारिक शुरुआत संभव हो सकी है। 11 मार्च 2018 को फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो द्वारा आईएसए के पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति भवन में किया गया। इस सम्मेलन में दुनिया भर के कई देशों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसमें श्रीलंका, बांग्लादेश समेत 23 देशों के राष्ट्राध्यक्ष, 10 देशों के मंत्री तथा 121 देशों के प्रतिनिधियों सहित वल्र्ड बैंक, ब्रिाक्स बैंक, एडीबी और युरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक के अधिकारी शामिल हुए। सभी देशों ने एक साथ मिलकर आने वाले समय में अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन करने तथा प्रयोग करने पर सहमति जताई है।
फ्रांस और भारत के इस संयुक्त प्रयास को आज पूरी दुनिया बड़ी आशा भरी नज़रों से देख रही है। यही कारण है कि आईएसए से बड़ी संख्या में देश जुड़ गए हैं और इस संगठन ने दुनिया के कई बड़े संगठनों की बराबरी कर ली है। इस सम्मेलन में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने सहित क्राउड फंडिंग, टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर, ग्रामीण विद्युतीकरण, जल आपूर्ति और सिंचाई जैसे मुद्दों पर विकसित प्रोजेक्ट्स पर भी चर्चा की गई।
इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रो ने कहा कि फ्रांस 2022 तक आईएसए को 5600 करोड़ रुपए का फंड उपलब्ध कराएगा। इससे पहले भी इस संगठन के गठन के समय 2400 करोड़ देने की घोषणा फ्रांस ने की थी। इस तरह फ्रांस इस एलायंस के कार्य में कुल 8000 करोड़ रुपए लगाने जा रहा है। इसके ज़रिए साल 2030 तक 1000 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसका बाज़ार मूल्य 65 लाख करोड़ रुपए होगा। इसके माध्यम से अन्य ऊर्जा रुाोतों पर निर्भरता भी घटेगी। इससे अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा जो संगठन के सभी देशों को लाभ पहुंचाएगा।
चार साल में 175 गीगावाट बिजली
फिलहाल भारत करीब 20 गीगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है। नवीनीकृत ऊर्जा का कुल उत्पादन 58.30 गीगावाट होता है जो देश के कुल ऊर्जा उत्पादन का 18.5 प्रतिशत हिस्सा है। आईएसए के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत 2022 तक नवीनीकृत ऊर्जा रुाोतों से 175 गीगावाट बिजली पैदा करने लगेगा। इसमें सौर ऊर्जा का हिस्सा 100 गीगावाट रहेगा। भारत ने पिछले कुछ सालों में ऊर्जा के किफायती साधनों का प्रयोग किया है। इसके अंतर्गत पिछले 3 साल में देश में 28 करोड़ एलईडी बांटे गए हैं जिससे 2 अरब डॉलर और 4 गीगावाट बिजली की बचत हुई है।
अक्षय ऊर्जा के लाभ को देखते हुए ही भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर दुनिया के सबसे बड़े अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके सुफल आने वाले भविष्य में प्राप्त होंगे। भारत ने 2030 तक 40 प्रतिशत बिजली का उत्पादन गैर जीवाश्म रुाोतों से करने का लक्ष्य भी तय किया है।
इंटरनेशनल सोलर एलायंस
यह कर्क और मकर रेखा के बीच आने वाले देशों का समूह है। इसमें 121 देश शामिल हैं। इन देशों में अच्छी धूप पड़ती है। इसलिए सौर ऊर्जा से यहां बड़े पैमाने पर लाभ हो सकता है। हर साल दुनिया में ऊर्जा पर 455 लाख करोड़ का खर्च आता है। एक अनुमान के अनुसार यह दुनिया के कुल जीडीपी का करीब 10 प्रतिशत है। आईएसए का मकसद सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना तथा गरीब देशों को कम लागत में सौर ऊर्जा उपलब्ध कराना है।
भारत में सौर ऊर्जा
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की प्रबल संभावनाएं हैं। हैंडबुक ऑन सोलर रेडिएशन ओवर इंडिया के अनुसार, भारत के अधिकांश भाग में एक वर्ष में 250-300 दिन धूप मिलती है। इससे प्रतिदिन प्रति वर्ग मीटर 4-7 किलोवाट का सौर विकिरण प्राप्त होता है। आज भारत में खुला क्षेत्र बड़ी मात्रा में है लेकिन उसके अनुसार सौर ऊर्जा का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। उम्मीद की जा सकती है कि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नई-नई परियोजनाएं शुरू होने से अन्य ऊर्जा रुाोतों पर हमारी निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी। आज भारत में 30 करोड़ लोग बिजली से वंचित है। अक्षय ऊर्जा से इस वर्ग को लाभ पहुंचाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2035 तक भारत में सौर ऊर्जा की मांग सात गुना तक बढ़ सकती है। साथ ही अगर भारत में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाया जाए तो इससे जीडीपी दर भी बढ़ाई जा सकती है। इन सभी दृष्टियों से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना लाभप्रद है। (स्रोत फीचर्स)