दक्षिण अमेरिका में पाई जाने वाली भुतहा नाइफ फिश (नश्तर मछली) की बिजली की चमक (स्पार्क) जीवजगत में भले ही सबसे चमकदार ना हो लेकिन देर तक बनी रहती है। इस मछली की पूंछ के एक खास अंग में कोशिकाओं का एक छोटा समूह होता है, जिससे यह एक सेकंड में 2000 बार तक बिजली उत्पन्न कर सकती है।
नश्तर मछली के विद्युत उत्पन्न करने की प्रक्रिया को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने तीन एक जैसी मछलियों की तुलना की। इनमें से एक तो भुतहा नश्तर मछली थी और दूसरी विद्युत उत्पन्न करने वाली एक अन्य मछली ग्लास नश्तर मछली थी जबकि तीसरी मछली (चैनल कैटफिश) विद्युत पैदा नहीं करती है। शोधकर्ताओं ने तीनों मछलियों में उस जीन की तुलना की जो जो वह प्रोटीन बनाता है जो विद्युत पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार है। इस प्रोटीन को वोल्टेज-गेटेड सोडियम चैनल कहते हैं। उन्होंने पाया कि भुतहा नश्तर मछली में यह जीन लगभग 145 लाख वर्ष पूर्व दोहरा हो गया था और इसके बाद लगातार 20 लाख वर्षों से जीन की संरचना में परिवर्तन होते रहे हैं। प्लॉस बायोलॉजी पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार इन परिवर्तनों के चलते भुतहा नश्तर मछली में स्पार्क करने की क्षमता बढ़ी है। और तो और, यह प्रोटीन रीढ़ की हड्डी की तंत्रिकाओं और मांसपेशियों द्वारा भी बनाया जाने लगा है। यह मछली स्पार्क का उपयोग घूमने-फिरने के लिए रोशनी, वस्तुओं का पता लगाने और संवाद करने के लिए करती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नई जानकारी से कुछ वंशानुगत मांसपेशीय रोगों और मिर्गी के आनुवंशिक कारणों के बारे में सुराग मिल सकते हैं, जो सोडियम चैनल जीन में परिवर्तनों से सम्बंधित हैं। (स्रोत फीचर्स)