यह तो पहले से पता था कि मधुमक्खियां चार तक गिन सकती हैं। यह क्षमता उन्हें शिकारियों पर निगाह रखने और भोजन के स्रोत तक पहुंचने के रास्ते में आने वाले चिंहों को याद रखने में मदद कर सकती है। मगर अब कुछ प्रयोगों से शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि वे शून्य का मतलब भी समझती हैं।
यह तो स्पष्ट ही है कि जंतुओं पर प्रयोग करके निष्कर्ष निकालना खासा मुश्किल काम है क्योंकि जो भी निष्कर्ष निकाला जाएगा वह मात्र उनके व्यवहार और प्रतिक्रिया को देखकर ही निकाला जाएगा। शोधकर्ताओं ने 10 मधुमक्खियां लीं और उन्हें दी गई दो संख्याओं में से छोटी संख्या को पहचानना सिखा दिया। इसके लिए किया यह गया था कि दो सफेद पर्दों पर कुछ काली आकृतियां बनाई गई थीं। यदि मधुमक्खी कम संख्या में आकृति वाले पर्दे की ओर जाती तो पुरस्कार स्वरूप उसे मीठा शरबत मिलता था और यदि वह ज़्यादा आकृतियों वाले पर्दे की ओर पहुंचती तो उसे जो पानी मिलता उसमें कुनैन घुला होता था यानी एक तरह से उसे दंडित किया जाता था।
धीरे-धीरे मधुमक्खियां ‘सही’ पर्दा चुनना सीख गईं। अब असली प्रयोग शुरू हुआ। इस प्रयोग में उन्हें दो विकल्प दिए गए – एक पर्दे पर कुछ आकृतियां बनी थीं जबकि दूसरे पर्दे पर कोई आकृति नहीं थी। हालांकि मधुमक्खियों ने खाली पर्दा पहले कभी नहीं देखा था मगर जब एक या एक से अधिक आकृति और शून्य आकृति वाले पर्दों के बीच चुनाव का समय आया तो उन्होंने 64 प्रति¬शत मर्तबा खाली पर्दा चुना।
अपने प्रयोग का ब्यौरा साइन्स शोध पत्रिका में देते हुए मेलबोर्न के आरएमआईटी विश्वविद्यालय के स्कारलेट हॉवर्ड और उनके साथी शोधकर्ताओं ने कहा है कि इस प्रयोग से यह पता चलता है कि मधुमक्खियां समझती हैं कि ‘कुछ’ की तुलना में ‘कुछ नहीं’ कम होता है। यानी वे ‘कुछ नहीं’ को भी एक संख्या मानती हैं, अर्थात वे शून्य की अवधारणा जानती हैं।
इसी प्रयोग को एक अलग ढंग से भी किया गया था। कुछ मधुमक्खियों को अधिक संख्या में आकृति वाला पर्दा चुनने पर पुरस्कृत किया जाता था। बाद में उपरोक्तानुसार ‘शून्य’ वाले प्रयोग में इन्होंने ज़्यादा बारी खाली पर्दे की बजाय एक या अधिक आकृतियों वाले पर्दे को चुना।
आम तौर पर माना जाता है कि शून्य की समझ ज़्यादा विकसित जंतुओं में ही होती है मगर उक्त प्रयोग से लगता है कि यह क्षमता जंतु जगत में व्यापक रूप से विद्यमान है। (स्रोत फीचर्स)