स्नो-शू खरगोश का फर आवरण जाड़ों के मौसम में सफेद हो जाता है। वर्ष के शेष समय उसका आवरण भूरा होता है। जाड़ों में सफेद आवरण उसे बर्फीले परिवेश में छिपने में मदद करता है। मगर अब एक दिलचस्प बात सामने आ रही है। जैसे-जैसे जलवायु गर्म हो रही है, धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ये खरगोश अपना जाड़े का सफेद आवरण त्याग रहे हैं। अब वे पूरे साल भर अपना भूरा आवरण ही रखते हैं। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि यह परिवर्तन उनमें एक अन्य खरगोश (जैक-रैबिट) से मिले एक जीन की वजह से आया है। जैक-रैबिट और स्नो-शू खरगोश काफी नज़दीकी प्रजातियां हैं।
यह जानने के लिए कि स्नो-शू खरगोश (Lepus californicus) कैसे आजकल अपने गर्मियों के आवरण को जाड़ों में भी बनाए रखते हैं, शोधकर्ताओं ने ‘जाड़ों में सफेद’ और ‘जाड़ों में भूरे’ खरगोशों के जीनोम की तुलना कई अन्य सम्बंधित प्रजातियों के जीनोम से की। इनमें काली पूंछ वाला जैक-रैबिट भी शामिल था। काली पूंछ वाला जैक-रैबिट (Lepus californicus) जाड़ों में अपने आवरण का रंग नहीं बदलता। वैज्ञानिकों को जल्दी ही समझ में आ गया कि गड़बड़ी इसी की वजह से हुई है। स्नो-शू खरगोश और काली पूंछ वाले जैक-रैबिट के बीच प्रजनन क्रिया कई बार हुई होगी। इसी के परिणामस्वरूप स्नो-शू खरगोश को जैक-रैबिट का एक जीन मिल गया होगा। अगूती नामक यह जीन आम तौर पर स्नो-शू में जाड़ों में अत्यंत सक्रिय हो जाता है और उसके फर आवरण को सफेद बना देता है। मगर जैक-रैबिट में इसी जीन का थोड़ा अलग रूप पाया जाता है जो जाड़ों और गर्मियों के बीच अंतर नहीं करता। अगूती जीन का यह स्वरूप जिन स्नो-शू खरगोशों में पाया जाता है वे जाड़ों में आवरण का रंग सफेद करने में असमर्थ होते हैं।
इस शोध के परिणामों से एक बात तो यह स्पष्ट होती है कि प्रकृति में संकरण की क्रिया वैज्ञानिकों की अपेक्षा से कहीं अधिक आम है। संकरण की यह क्रिया विकास को गति देती है और संतानों के लिए विभिन्न विकट परिस्थितियों से जूझकर ज़िंदा रहने की क्षमता को बढ़ाती है।
स्नो-शू के लिए यह एक अच्छी बात है कि वह अपने जाड़ों के सफेद आवरण से मुक्ति पा रहा है क्योंकि जलवायु के गर्म होते जाने के साथ ज़्यादा से ज़्यादा इलाके बर्फ-विहीन हो जाएंगे और तब सफेद आवरण सुरक्षा का एक साधन नहीं बल्कि एक जोखिम बन जाएगा। (स्रोत फीचर्स)