जगन्नाथ चटर्जी
एक प्रस्ताव यह उभरा है कि आयुष चिकित्सकों के लिए आधुनिक (एलोपैथिक) चिकित्सा का एक ब्रिज कोर्स होना चाहिए ताकि वे इस पद्धति का उपयोग सोच-समझकर कर सकें। यह कहा जा रहा है कि इससे खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी।
मुझे लगता है कि आधुनिक चिकित्सा की खामियों को दूर करने में आयुष में काफी संभावनाएं हैं। शर्त यह है कि आयुष पाठ¬क्रमों को आधुनिक सोच की ज़ंजीरों से मुक्त किया जाए। क्योंकि इस सोच के हावी होने से आयुष चिकित्सकों को भी बीमारियों को एलोपैथी द्वारा निर्धारित नामों के आधार पर ही देखना होता है। आयुष के प्रत्येक घटक का सोचने का एक अलग नज़रिया है और लोगों की मदद करने की एक शैली है, बशर्ते कि उन्हें अपने सोच के अनुसार काम करने दिया जाए।
आज संजीदा आयुष चिकित्सक तंत्र से जूझ रहे हैं और अपनी-अपनी प्रणाली की बुनियादी अवधारणाओं पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे नए सिरे से शुरुआत कर सकें। आयुर्वेदिक चिकित्सक आधुनिक आयुर्वेदिक पुस्तकों को तिलांजलि देकर मूल पुस्तकों पर लौट रहे हैं और इस तरह से वे ज्ञान भी अर्जित कर रहे हैं और अस्वस्थता से निपटने में लोगों की मदद भी कर रहे हैं। होम्योपैथ हानेमन के ऑर्गेनॉन की ओर लौट रहे हैं और आज हमारे पास ऐसे लेखक हैं जिन्होंने अद्भुत पुस्तकें लिखी हैं जो युवा मस्तिष्क को गढ़ रही हैं। सोवा रिग्पा (तिब्बती चिकित्सा प्रणाली) एक अद्भुत विज्ञान है जिसने बीमारी के उन गूढ़ पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है जिन्हें प्रारंभिक आयुर्वेद ने विकसित किया था। प्राकृतिक चिकित्सा और योग आम लोगों के लिए वरदान है क्योंकि इनमें भोजन और जीवन शैली स्वस्थ होने के तरीके बन जाते हैं। यूनानी चिकित्सा आयुर्वेद की एक शाखा है जिसके साथ मुस्लिम लोग जुड़ पाते हैं और स्वीकार कर पाते हैं।
मैं सचमुच उम्मीद करता हूं कि हम इस बात को समझेंगे और इन समग्र प्रणालियों को उनका सम्मानजनक स्थान और स्वतंत्रता प्रदान करेंगे। उनका दर्शन और तौर-तरीके समझे बगैर उनके कार्यक्षेत्र में घुसपैठ करना अकलमंदी नहीं है।
संजीदा आयुष चिकित्सक ब्रिज कोर्स के खिलाफ कड़ा संघर्ष कर रहे हैं। केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.एच.), केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.ए.एस.), केंद्रीय योग व प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद (सी.सी.आर.वाय.एन.) जैसी संस्थाओं के अधिकारी भी इस संघर्ष में भागीदार हैं। ब्रिज कोर्स से इन प्रणालियों के चिकित्सकों और आम लोगों दोनों की सेहत का क्षय होगा क्योंकि इसके साथ एक समग्र दर्शन की फिर उपेक्षा होगी। आयुष प्रणालियों के वर्तमान स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर के पाठ¬क्रमों में आधुनिक चिकित्सा की कई बुनियादी विधियों के लिए जगह है। स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए समग्र चिकित्सक चुनिंदा ढंग से इन्हें अपना सकते हैं।
हम सबको आयुष की ज़रूरत है। हम सब इंसान हैं जो क्षय और रोग के अधीन हैं। हम सबको राहत की ज़रूरत होती है। हम सबको विकल्पों की ज़रूरत है। तो विकल्पों के पिटारे में अतिक्रमण क्यों किया जाए? हम प्रचलित चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं से परिचित हैं और हम सब इस तंत्र की खामियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
हम यह भी जानते हैं कि यह संघर्ष किन शक्तियों के विरुद्ध है। स्वास्थ्य सेवा एक गंदा शब्द बन गया है क्योंकि यह आमदनी और विकास का एक डरावना नज़ारा पेश करता है। ब्रिाज कोर्सेस चालू करना इन्हीं शक्तियों को प्रोत्साहन देगा क्योंकि इनके ज़रिए उनका बाज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में फैलेगा।
नीम हकीम और आयुष चिकित्सक आधुनिक दवाइयों और नैदानिक विधियों का उपयोग इस कारण से करते हैं कि मेडिकल रिप्रेज़ेंटेटिव उनसे मुलाकात करते हैं और प्रलोभन की पेशकश करते हैं। उन्हें इस बात के लिए राज़ी किया जा रहा है कि वे अपने मरीज़ों को निजी अस्पतालों और डॉक्टरों के पास रेफर करें और अच्छी आमदनी कमाएं।
वास्तव में हमें आयुष का दायरा बढ़ाना चाहिए ताकि लोग स्वास्थ्य को लेकर अपने सोच और अपने ज्ञान के स्तर के आधार पर पूरी तरह इन पर निर्भर रह सकें। एक सभ्य समाज में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं हो सकती और न ही हमें किसी चिकित्सा पद्धति को लेकर सही-गलत के फैसले सुनाने चाहिए। (स्रोत फीचर्स)