पिछले साल लिगो (लेज़र इंटरफेरोमीटर गुरुत्वतरंग प्रेक्षक) टीम ने दो न्यूट्रॉन तारों के परस्पर विलय के फलस्वरूप उत्पन्न हुई गुरुत्व तरंगों को पकड़ा था। वैज्ञानिकों का ख्याल है कि उस अवलोकन से जो आंकड़े मिले थे उनके विश्लेषण से नए-नए निष्कर्ष निकालने की अभी और संभावना है। यह काम किया भी जा रहा है।
हाल ही में उन आंकड़ों के नए सिरे से विश्लेषण के आधार पर न्यूट्रॉन तारों की आंतरिक संरचना के बारे में नए सुराग मिले हैं। न्यूट्रॉन तारा तब बनता है जब कोई विशाल तारा फूटता है और उसका अधिकांश पदार्थ अंतरिक्ष में बिखर जाता है किंतु अंदर का पदार्थ अत्यंत घना हो जाता है। इतने घने पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण भी बहुत अधिक होता है किंतु ब्लैक होल जितना नहीं होता।
पिछले साल अगस्त में जो गुरुत्व तरंगें देखी गई थीं वे पृथ्वी से 13 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर दो न्यूट्रॉन तारों के आपस में विलय की घटना में उत्पन्न हुई थीं। लेकिन तब यह नहीं बताया गया था कि इस विलय के बाद क्या बना – क्या विलय के उपरांत एक और न्यूट्रॉन तारा बना या ब्लैक होल?
अब उस विलय के आंकड़ों का एक बार फिर विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण से पता यह चला है कि जब उक्त दो न्यूट्रॉन तारे एक दूसरे का चक्कर काटते हुए संयुक्त विनाश की ओर बढ़ रहे थे, तब उनकी परिक्रमा ऊर्जा अंतरिक्ष में बिखर रही थी। साथ ही अपने-अपने गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वे एक-दूसरे की सतह पर ज्वार भी उत्पन्न कर रहे थे। ज्वार-आधारित परस्पर क्रिया की वजह से उनकी परिक्रमा ऊर्जा और तेज़ी से कम हुई और उनकी टक्कर अपेक्षा से जल्दी हुई।
उपरोक्त ज्वारीय अंत र्क्रिया की प्रकृतिव परिमाण उन तारों की आंतरिक संरचना पर निर्भर होगा। वैज्ञानिकों का ख्याल है कि लिगो प्रेक्षण के दौरान जो आंकड़े मिले थे, उनका और अधिक बारीकी से विश्लेषण करके न्यूट्रॉन तारों की आंतरिक रचना के बारे में पता चल सकेगा। एक अनुमान यह भी है कि आंतरिक दबाव के चलते शायद उनमें न्यूट्रॉन और भी मूलभूत कणों (क्वार्क्स) में टूट गए होंगे और शायद हमें इनके बारे में कुछ और पता चले। तो प्रयोग के आंकड़ों की बाल की खाल निकालकर वैज्ञानिक अधिक से अधिक समझ बनाने की जुगाड़ में हैं। (स्रोत फीचर्स)