पृथ्वी पर सारे जीव एक ही प्रकार के जेनेटिक कोड का इस्तेमाल करते हैं। जेनेटिक कोड चार क्षारों (ए, टी, सी और जी) की एक खाद्य शृंखला से बना होता है। इसे डीएनए कहते हैं। इन चार क्षारों के क्रम के ज़रिए यह जेनेटिक कोड विभिन्न अमीनो अम्लों को सही क्रम में जोड़कर प्रोटीन बनवाने का काम करता है। सारा जीवन इन तरह-तरह के प्रोटीन्स के दम पर चलता है।
वैज्ञानिक दशकों से यह सोचते आए हैं कि क्या डीएनए में चार प्राकृतिक क्षारों के अलावा कोई क्षार जोड़ा जा सकता है। और इससे भी महत्वपूर्ण सवाल रहा है कि ऐसा करने पर निर्मित जेनेटिक कोड कैसे काम करेगा।
सन 2014 में सबसे पहले वैज्ञानिकों ने एशरीशिया कोली (ई .कोली) नामक एक बैक्टीरिया में फेरबदल करके ए, टी, सी और जी के अलावा दो क्षार और जोड़ने में सफलता प्राप्त की थी। इन दो क्षार को एक्स और वाय कहा गया था। यह बैक्टीरिया इन नए क्षारों को अपने जेनेटिक कोड में सहेजे रखता था और कोशिका विभाजन के बाद यह जेनेटिक कोड नए क्षारों समेत दोनों कोशिकाओं में पहुंच जाता था। मगर वैज्ञानिकों के लिए यह कोई बहुत ज़्यादा संतोष की बात नहीं थी। कोशिश तो यह थी कि इन क्षारों से युक्त जो जेनेटिक कोड बने उसकी मदद से सम्बंधित प्रोटीन बन पाए। अर्थात नए क्षार जोड़ने का असर तो दिखे।
अब वैज्ञानिकों ने यह करतब भी कर दिखाया है। उन्होंने इस बार एशरीशिया कोली के जेनेटिक कोड में शेष चार क्षारों के साथ-साथ नए क्षार जोड़े हैं। और इन नए क्षारों को बैक्टीरिया के जीन्स में प्रविष्ट कर दिया है। इस बैक्टीरिया की कोशिका में इस जेनेटिक कोड को सफलतापूर्वक ‘पढ़ा’ गया और इसकी मदद से एक अन्य कोड का निर्माण किया गया जो वास्तव में प्रोटीन निर्माण करवाता है। इसे संक्षेप में आरएनए कहते हैं।
और तो और, बैक्टीरिया की कोशिका में इस आरएनए का उपयोग करके एक प्रोटीन भी बना। यह प्रोटीन एक हरे चमकने वाले प्रोटीन का परिवर्तित रूप था। यह परिवर्तित इस मायने में था कि इसमें सामान्य अमीनो अम्लों के अलावा कुछ अप्राकृतिक अमीनो अम्ल भी थे। अर्थात जो एक्स और वाय क्षार जेनेटिक कोड में जोड़े गए थे उन्होंने प्रोटीन में ऐसे अमीनो अम्लों को जोड़ने का काम किया जो सामान्यत: नहीं पाए जाते।
शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि सामान्य प्राकृतिक जेनेटिक कोड 20 अमीनो अम्लों का उपयोग करके प्रोटीन बनाता है किंतु एक्स तथा वाय जुड़ जाने पर वह 152 अमीनो अम्लों का उपयोग करने में समर्थ हो जाएगा।
शोधकर्ताओं को यकीन है कि इस तरह से बना नया संशोधित जेनेटिक कोड औषधि निर्माण में बहुत सहायक होगा। (स्रोत फीचर्स)