सात साल पहले, टीबी से जूझ रहे शोधकर्ताओं, स्वास्थ्य एवं अन्य कार्यकर्ताओं के वैश्विक समुदाय में खुशी का माहौल था। उस साल यह पता चला था कि टीबी के निदान के लिए एक नया जेनेटिक परीक्षण अत्यधिक प्रभावी है। इससे उम्मीद जगी थी कि अब इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकेगा। वर्ष 2010 में दुनिया भर में 14.5 लाख लोग टीबी की वजह से मृत्यु के शिकार हुए थे।
विश्वस्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने तुरंत जीनएक्सपर्ट नामक इस नए परीक्षण का अनुमोदन कर दिया और इसे दुनिया भर में सूक्ष्मदर्शी-आधारित टीबी की जांच के स्थान पर उपयोग करने की योजना बनी। सूक्ष्मदर्शी-आधारित जांच की दिक्कत यह है कि उसमें आधे मरीज़ों की तो पहचान ही नहीं हो पाती है।
परन्तु इस नई तकनीक के आविष्कार के बाद भी टी.बी. की दर में कमी देखने को नहीं मिली। कई देश आज भी निदान और उसके बाद इलाज की समस्या से जूझ रहे हैं। इस समस्या पर विचार-विमर्श शुरू हो चुका है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल टीबी से करीब 1 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे जिनमें आधे से ज़्यादा मामले तो चीन, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस के थे। टीबी का संक्रमण कई बार महीनों या वर्षों तक पकड़ में नहीं आता जिसकी वजह से इलाज में दिक्कत होती है। इसीलिए निदान की नई तकनीक को महत्वपूर्ण माना जा रहा था।
अमेरिकी सरकार और अन्य संस्थानों द्वारा जीनएक्सपर्ट के विकास के लिए 10 करोड़ यूएस डॉलर से अधिक का खर्च करने के बाद भी यह काफी धीमी गति से निर्मित हुआ। इस परीक्षण की एक-एक मशीन की लागत 17,000 डॉलर है और लगातार बिजली और एयर कंडीशनिंग जैसे बुनियादी ढांचे की ज़रूरत होती है, जो विकासशील देशों में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है। एक जांच की लागत करीब 17 डॉलर (करीब 1000 रुपए) होती थी जो बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और यूनिऐड द्वारा दी जा रही सब्सिडी की बदौलत 10 डॉलर (करीब 600 रुपए) हुई है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार अभी तक सबसिडी के पात्र 130 देशों ने 2.3 करोड़ से अधिक जीनएक्सपर्ट परीक्षण खरीदे हैं लेकिन यह अभी भी काफी नहीं है। अधिकांश देश कुछ खास समूह पर ही इस परीक्षण का उपयोग करते हैं। जैसे भारत में इसका उपयोग एचआईवी के साथ टीबी संक्रमित लोगों के लिए ही किया जाता है।
अलबत्ता, उन देशों में भी इसके परिणाम आशाजनक नहीं हैं जो इसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वर्ष 2015 में दक्षिण अफ्रीका में पाया गया कि जीनएक्सपर्ट से निदान किए गए मामलों और सूक्ष्मदर्शी से निदान किए गए मामलों में टीबी से मृत्यु दर बराबर थी। यह आशा के विपरीत है।
इस मामले में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में औरम इंस्टीट्यूट में टीबी विशेषज्ञ गैविन चर्चयार्ड को अंदेशा है कि डॉक्टर टीबी की दवाएं तब भी दे रहे हैं, जब उनकी सूक्ष्मदर्शी जांच के परिणाम नकारात्मक हों। यह कारण हो सकता है कि क्यों जीनएक्सपर्ट टेस्ट को लागू करने से कोई खास फायदा देखने को नहीं मिला है।
इसके अलावा, जीनएक्सपर्ट जांच के परिणाम सूक्ष्मदर्शी जांच की तुलना में लंबा समय लेते हैं, और बहुत-से लोग दवाइयों के लिए क्लीनिक में दोबारा नहीं लौटते हैं। जो लोग दवाइयां शुरू करते हैं वे भी अक्सर खुराक पूरी नहीं करते। कुल मिलाकर लगता है कि नई तकनीक को एक कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली में लागू कर देना पर्याप्त नहीं है। (स्रोत फीचर्स)