वैज्ञानिक शोध के प्रकाशन में एक प्रमुख समस्या यह रही है कि शोधकर्ता उन परिणामों को प्रकाशित नहीं करते जिनमें परिणाम नकारात्मक मिले हों। नकारात्मक से आशय यह है कि ये परिणाम पूर्व में सोचे गए परिणामों के विपरीत होते हैं। दूसरे शब्दों में ये आपकी परिकल्पना की पुष्टि नहीं करते। इस तरह प्रकाशन में एकतरफापन आ जाता है जो विज्ञान की प्रगति के लिए अनुकूल नहीं होता। इस समस्या से निपटने के लिए दो पुरस्कारों की घोषणा की गई है जो ऐसे शोध के प्रकाशन के लिए दिए जाएंगे जिनके परिणाम प्रतिकूल रहे हों। इसके अलावा पूर्व में किए गए किसी अध्ययन या प्रयोग को दोहराकर देखने के लिए भी पुरस्कार दिया जाएगा। ऐसा एक पुरस्कार हाल ही में युरोपियन कॉलेज ऑफ न्यूरो-सायको-फार्मेकोलॉजी द्वारा घोषित किया गया है। 10,000 यूरो (करीब 7 लाख रुपए) का यह पुरस्कार तंत्रिका विज्ञान में क्लीनिकल से पूर्व के शोध में नकारात्मक परिणामों के लिए दिया जाएगा। दूसरा पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय मानव मस्तिष्क मानचित्रण संगठन देगा जो सर्वोत्तम पुनरावृत्ति अध्ययन के लिए होगा।
ये पुरस्कार इस विचार से शुरू किए जा रहे हैं कि विज्ञान में जानकारी का मुक्त प्रवाह ज़रूरी है, चाहे वह किसी परिकल्पना को झुठलाती हो या पूर्व में किए गए प्रयोगों के परिणामों से भिन्न परिणाम से सम्बंधित हो। ऐसा खास तौर से औषधि विज्ञान के क्षेत्र में निहायत ज़रूरी है।
जैसे हो सकता है कि कोई दवा कारगर पाई गई हो। लेकिन यह भी संभव है कि यह अध्ययन किसी वर्ग विशेष पर ही किया गया हो। ऐसे में अन्य वर्गों पर इसके परिणामों को आज़माकर देखना एक उपयोगी अध्ययन होगा लेकिन आम तौर पर नहीं किया जाता। यदि ऐसे अध्ययन किए भी जाते हैं तो विपरीत परिणाम मिलने पर उन्हें प्रकाशित नहीं किया जाता क्योंकि मूल शोधकर्ताओं की नाराज़गी का डर रहता है। ये पुरस्कार इसी भय को दूर करने व ऐसे अनुसंधान को वैधता प्रदान करने के लिए घोषित किए हैं।
उदाहरण के लिए, हाल ही में सायकोलॉजिकल साइन्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 23 प्रयोगशालाओं में किए गए पुनरावृत्ति अध्ययनों में उस निष्कर्ष की पुष्टि नहीं हो पाई है जिसमें कहा गया था कि यदि लोगों को पहले से यकीन दिलाया जाए कि वे बुद्धिमान हैं, तो उनके प्रदर्शन में सुधार आता है।
इसी प्रकार से एक अध्ययन का निष्कर्ष था कि व्यक्ति की आंखों की पुतलियों का फैलना यह दर्शाता है कि उसे उस विषय में रुचि है जिसे वह पढ़ या देख रहा है। अब कई समूह इसकी जांच के लिए आगे आए हैं।
कुल मिलाकर लगता है कि ऐसे पुन:परीक्षण वाले अध्ययन या नकारात्मक परिणामों को प्रकाशित करना संभव होगा बशर्ते कि उनके लिए उपयुक्त प्रोत्साहन व समर्थन उपलब्ध हो। (स्रोत फीचर्स)