हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर दी सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) के वैज्ञानिकों ने एफ्लैटॉक्सिन से मुक्त मूंगफली के उत्पादन की संभावना जताई है। वास्तव में एफ्लैटॉक्सिन ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो एस्परजिलस फ्लेवस और एस्परजिलस पैरासिटिकस जैसी फफूंदों द्वारा वनस्पति में उत्पन्न होते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इन पदार्थों का सम्बंध लीवर कैंसर से देखा गया है।
एक अनुमान के मुताबिक मक्का और मूंगफली जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों में एफ्लैटॉक्सिन की मौजूदगी से दुनिया भर में 5 अरब लोग प्रभावित होते हैं।
नए जैव प्रौद्योगिकी तरीकों का उपयोग करते हुए, इक्रीसेट के वैज्ञानिकों ने अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ‘दोहरी सुरक्षा पंक्ति’ विकसित की है। इसमें पहली पंक्ति की सुरक्षा यह है कि फफूंद को पनपने व मूंगफली के पौधों को संक्रमित करने से ही रोका जाता है। दूसरा काम यह किया गया है कि मूंगफली के बीज में ऐसे परिवर्तन किए गए हैं कि वे जीन को खामोश करने वाले आरएनए अणुओं का उपयोग करके फफूंद को एफ्लैटॉक्सिन का संश्लेषण करने से रोक देते हैं। के.के. शर्मा व उनके साथियों द्वारा प्लांट बायोटेक्नॉलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों से मालूम चला है कि इस तरह की ‘दोहरी सुरक्षा’ का उपयोग खेत में ही फफूंद संक्रमण को रोक सकता है।
इस अध्ययन से खेतों में एफ्लैटॉक्सिन संदूषण में कमी आ सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तरीका अन्य महत्वपूर्ण फसलों जैसे मक्का, कपास के बीज, मिर्च, बादाम और पिस्ता आदि पर भी लागू किया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)