बैक्टीरिया वैसे तो अत्यंत सरल जीव हैं जो मात्र एक कोशिका से बने होते हैं किंतु वे अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जो इंतज़ामात करते हैं उन्हें देखकर हर बार हैरत होती है। अब अंटार्कटिका में रहने वाले एक बैक्टीरिया मरीनोमोनास प्रायमोरेंसिस की ऐसी ही करामात का खुलासा हुआ है।
यह बैक्टीरिया ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण की ओर एक बर्फीली, लवणीय और विभिन्न स्तरों में बंटी झील - एस लेक - का निवासी है। एस लेक बहुत अंधेरी जगह है। प्रकाश मात्र चंद मीटर की गहराई तक पहुंचता है और ऑक्सीजन भी 1-15 मीटर से नीचे नहीं पाई जाती। ऐसा इंतहाई पर्यावरण बैक्टीरिया और डायएटम्स जैसे जीवों के लिए समस्यामूलक है। खास तौर से मरीनोमोनास की शामत आ जाती है क्योंकि यह बैक्टीरिया ऑक्सीजन पर निर्भर है। इसके अलावा इसे वे पोषक पदार्थ भी चाहिए जो शैवाल तथा डायएटम्स बनाते हैं। शैवाल को भोजन बनाने के लिए प्रकाश चाहिए और वह तो झील में मात्र चंद मीटर की गहराई तक ही उपलब्ध होता है। तो ये शैवाल सतह पर ही रहती हैं।
इन सारे जीवों के लिए समस्या तो यह है कि गुरुत्वाकर्षण की वजह से ये झील में नीचे की ओर चले जाएंगे। इससे बचने के लिए अच्छा होगा कि किसी तरह सतह पर उपस्थित बर्फ से चिपकने का कोई साधन हो। मगर सतह कोई स्थिर चादर तो है नहीं। उसमें उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। इस वजह से बर्फ से चिपके रहना आसान नहीं होता। तो इन बैक्टीरिया ने आपस में जुड़कर एक झिल्ली बना ली है ताकि पकड़ छूटने न पाए। मज़ेदार बात यह है कि एस झील में यह झिल्ली बैक्टीरिया और डायएटम्स दोनों से मिलकर बनी होती है - सहजीवी बस्ती। और यह बस्ती झील की सतह के पास प्रकाशयुक्त क्षेत्र में बनी रहती है। डायएटम्स प्रकाश संश्लेषण करके भोजन बनाते हैं जो दोनों के काम आता है।
इस तरह की सूक्ष्म बस्ती बनाने के लिए मरीनोमोनास एक विशेष प्रोटीन का निर्माण करता है। इस प्रोटीन की रचना का खुलासा कनाडा, नेदरलैंड व इस्राइल के वैज्ञानिकों ने साइन्स एडवांसेस नामक शोध पत्रिका में किया है। शोधकर्ताओं के इस अंतर्राष्ट्रीय दल का कहना है कि इसी तरह की चिपकू झिल्लियां कई सारे ऐसे बैक्टीरिया बनाते हैं जो मनुष्य में रोग पैदा करते हैं। लिहाज़ा, इस प्रोटीन की रचना हमें यह बता सकेगी कि इसे निष्क्रिय कैसे किया जाए और इन चिपकू बैक्टीरिया से कैसे निपटा जाए। (स्रोत फीचर्स)