ऑस्ट्रेलिया के एक मैदानी परीक्षण में आनुवंशिक रूप से परिवर्तित केले के पेड़ में फफूंद से बचाव के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। यह पेड़ पनामा रोग पैदा करने वाली घातक फफूंद से बचाव करने में सक्षम है। उम्मीद है कि इस प्रणाली को 5 वर्ष के भीतर किसानों तक पहुंचाया जाएगा। इस तकनीक से प्रतिरोध तैयार करने की पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करने वाले पौधा प्रजनकों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। विश्वभर में केला 40 करोड़ लोगों का मूल भोजन है।
1950 के दशक में मिट्टी में पाई जाने वाली एक कवक ने लैटिन अमेरिका की लोकप्रिय किस्म ग्रॉस मिशेल को बरबाद किया था जिसके चलते कैवेंडिश नामक प्रतिरोधी किस्म लाई गई थी। फिलहाल विश्वका लगभग 40 प्रतिशत केला कैवेंडिश किस्म का है। फिर 1990 के दशक में दक्षिण-पूर्वी एशिया में कैवेंडिश पर एक फफूंद (टीआर4) का हमला हुआ।
2012 तक यह रोग अमेरिका को छोड़कर पूरे विश्वमें देखा गया। फफूंदनाशक इसे नष्ट करने में सक्षम नहीं थे। जैव प्रौद्योगिकीविद जेम्स डेल ने ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड टेक्नॉलॉजी वि·ाविद्यालय के सहयोगियों के साथ एक जंगली केले से आरजीए2 नामक जीन कैवेंडिश में डाला। आरजीए2 नामक यह जीन टीआर4 के खिलाफ प्रतिरोध प्रदान करता है। इस तरह से अलग-अलग संख्या में आरजीए2 जीन प्रत्यारोपित करके छह किस्में तैयार की गर्इं। उन्होंने सीईएडी9 नामक एक कृमि जीन का उपयोग करके भी कैवेंडिश की एक किस्म तैयार की। सीईएडी9 जीन भी फफूंद से रक्षा प्रदान करता है।
वर्ष 2012 में, शोधकर्ताओं ने सामान्य और जेनेटिक रूप से परिवर्तित केलों के पौधे एक खेत में लगाए। उस खेत में टीआर4 संक्रमित सामग्री भी डाली गई थी। टीम ने नेचर कम्यूनिकेशन्स में बताया है कि 3 साल के परीक्षण में, सामान्य केले के 67-100 प्रतिशत पौधे या तो पूरी तरह नष्ट हो गए या उनके पत्तों, तनों में पीलापन देखने को मिला। दूसरी ओर, जेनेटिक रूप से परिवर्तित पौधों से अच्छे परिणाम निकले। इनमें लगभग 80 प्रतिशत पौधों में रोग का कोई लक्षण नहीं देखा गया। आरजीए2 व सीईएडी9 दोनों से लैस पौधे स्वस्थ बने रहे। अच्छी बात यह रही कि प्रतिरोधी जीन ने केले के गुच्छों के आकार को भी कम नहीं किया था।
जहां कुछ लोगों का मानना है कि यह एक महत्वपूर्ण अनुसंधान है, वहीं अन्य का कहना है कि छोटे पैमाने पर किसान स्थानीय उपभोग के लिए गैर-कैवेंडिश प्रतिरोधी किस्में उगा रहे हैं। फिलीपींस में रोग-सहनशील कैवेंडिश किस्में लगाना शुरू कर दिया है। कई पादप रोगविज्ञानी कैवेंडिश की जगह अन्य किस्में उगाने की सलाह दे रहे हैं। इस बीच, डेल और उनके सहयोगी जल्द ही दूसरे चरण के परीक्षण की तैयारी कर रहे हैं जिसमें गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)