निकट भविष्य में भारत अपना दूसरा चंद्रयान छोड़ने वाला है और यह चंद्रयान प्रथम की तुलना में काफी महत्वाकांक्षी अभियान होगा।
अव्वल तो यह पहली बार होगा कि कोई यान चंद्रमा के उस हिस्से पर उतारा जाएगा जो पृथ्वी से दिखता नहीं है। यानी जब यह यान चांद पर उतरेगा, उस समय यह पृथ्वी से नियंत्रित नहीं होगा। दूसरी खास बात यह है कि यह यान चांद की विषुवत (भूमध्य) रेखा के आसपास नहीं बल्कि दक्षिणी ध्रुव के निकट उतारा जाएगा।
यदि यह मिशन कामयाब रहता है तो भारत के लिए भविष्य में मंगल पर उतरना और किसी उल्का पिंड पर उतरना संभव हो जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष कैलाशवाडिवू सिवान का कहना है कि चंद्रयान द्वितीय के अवतरण के साथ यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारत के पास अन्य आकाशीय पिंडों पर यान भेजने और उतारने की तकनीकी क्षमता है। यह मिशन शुक्र ग्रह की ओर टोही यान भेजने का भी मार्ग प्रशस्त करेगा।
इससे पहले चंद्रयान प्रथम ने चांद पर पानी के अणु की खोज की थी। चंद्रयान द्वितीय पर भी कई सारे वैज्ञानिक अन्वेषणों की व्यवस्था की गई है। जैसे चंद्रयान द्वितीय का लैंडर चांद की सतह पर प्लाज़्मा का मापन करेगा। प्लाज़्मा आवेशित कणों की एक परत होती है। इसके आधार पर यह समझा जा सकेगा कि चांद की धूल तैरती क्यों रहती है। इसके अलावा लैंडर चांद पर भूकंप (चंद्रकंप) का भी अध्ययन करेगा। यदि सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रकंपनीयता के अध्ययन के आधार पर यह समझने में मदद मिलेगी कि चांद का केंद्रीय भाग किस चीज़ से बना है और क्या यह ठोस है।
25 किलोग्राम वज़नी रोवर उपकरण पर वर्णक्रम मापी लगे हैं जिनके आंकड़ों से चांद की सतह के तात्विक संघटन को समझने में मदद मिलेगी। और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि यह एक बार फिर ज़्यादा नफासत से पानी का सर्वेक्षण करेगा। (स्रोत फीचर्स)