दो बच्चों की मां मैरियन डोनोवैन अपने छोटे बच्चे के पोतड़े बदल-बदलकर परेशान हो चुकी थीं। उन्हें न सिर्फ दिन में कई मर्तबा बच्चे के पोतड़े बदलना पड़ते थे बल्कि गीली चादर और कपढ़े भी धोना पड़ते थे। बचपन में उन्होंने अपने पिता और चाचा को कई महत्वपूर्ण आविष्कार करते देखा था। तो अपनी आविष्कारक प्रवृत्ति को उन्होंने पोतड़े की समस्या पर केंद्रित किया और सिलाई मशीन लेकर बैठ गई।
वे चाहती थीं कि पोतड़ा चाहे गीला हो जाए मगर गीलापन बाहर नहीं फैलना चाहिए। उन्होंने बाथरूम में लगाया जाने वाला परदा उखाड़ लिया और उससे सूती पोतड़े पर एक कवर सिल दिया। काफी प्रयासों के बाद अंतत: वे एक वॉटरप्रूफ पोतड़ा बनाने में कामयाब हो गई। ऐसा नहीं है कि इससे पहले इस दिशा में कोई कोशिश नहीं हुई थी किंतु बाज़ार में रबर के जो पोतड़े उपलब्ध थे उनको पहनने से बच्चे की चमड़ी घिस जाती थी और फुंसियां हो जाती थीं।
इसके बाद डोनोवैन ने इस डिज़ाइन में कई सुधार किए, जिनमें से प्रमुख सुधार यह था कि सेफ्टी पिन की बजाय उन्होंने चिपकने वाली पट्टियां लगा दीं। डोनोवैन ने इस पोतड़े को नाम दिया ‘बोटर’ यानी नाव। यह एक नाव जैसा ही दिखता था। यह 1940 के दशक की बात है। आगे चलकर उन्होंने बाथरूम परदे की जगह पर पैराशूट में इस्तेमाल होने वाले नायलोन का भी उपयोग किया।
अलबत्ता, कोई भी निर्माता इसका उत्पादन करने को तैयार नहीं हुआ क्योंकि सबको लगता था कि यह एक फालतू की चीज़ है। तो डोनोवैन ने खुद ही इसे बेचना शुरू किया और बाज़ार में इसने सफलता के परचम लहराए। अंतत: 1951 में डोनोवैन को इस पोतड़े के लिए पेटेंट हासिल हो गया।
अब उन्होंने अगला कदम उठाया - वे चाहती थीं कि पोतड़ा पूरी तरह डिस्पोज़ेबल यानी उपयोग करके फेंकने योग्य हो। इसके लिए एक खास किस्म के कागज़ का इस्तेमाल करना पड़ा था। इरादा यह था वह कागज़ पानी को सोख ले, मज़बूत हो और सोखे गए पानी को बच्चे की चमड़ी से दूर रखे। एक बार फिर निर्माताओं ने दोटूक जवाब दे दिया कि यह विचार न सिर्फ अनावश्यक है बल्कि व्यावहारिक भी नहीं है। अंतत: पूरे दस साल बाद 1961 में विक्टर मिल्स नाम के एक व्यक्ति ने डोनोवैन के विचार से प्रेरणा लेकर पहला डिस्पोज़ेबल पोतड़ा बनाया। आपने नाम तो सुना ही होगा -पैम्पर्स।
डोनोवैन ने कम से कम 20 उपयोगी आविष्कार किए और पेटेंट भी हासिल किए।