वैसे तो हमारा प्रतिरक्षा तंत्र कैंसर की गठान को नष्ट कर सकता है किंतु उसे ऐसा करने के लिए उकसाना पड़ता है। अब तक इस दिशा में किए गए प्रयास सफल नहीं रहे हैं किंतु हाल ही में साइन्स ट्रांसलेशन मेडिसिन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र में दावा किया गया है कि आखिरकार सफलता मिली है।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के रॉन लेवाई और उनके साथियों ने चूहों पर प्रयोग करके तकरीबन 20 अणुओं की इसी दृष्टि से जांच की। सबसे पहले तो शोधकर्ताओं ने चूहों के पेट की चमड़ी के नीचे दो स्थानों पर कैंसर कोशिकाएं प्रत्यारोपित कीं जो धीरे-धीरे कैंसर गठान में तबदील हो गर्इं। जब कैंसर गठान विकसित होने लगी तब शोधकर्ताओं ने उनमें से एक में दो अणु इंजेक्ट किए - किसी गठान में इनमें से एक अणु इंजेक्ट किया गया और अन्य में दोनों को मिलाकर इंजेक्ट किया गया।
इनमें से एक अणु डीएनए का एक खंड था (CpG) और दूसरा अणु प्रतिरक्षी कोशिका का एक प्रोटीन था (OX40)। सबसे बेहतर परिणाम तब मिले जब इन दोनों को मिलाकर उपयोग किया गया। देखा गया कि 10 दिनों के अंदर वह गठान गायब हो गई जिसमें इंजेक्शन दिया गया था और 20 दिनों के अंदर दूसरी गठान (जिसमें इंजेक्शन नहीं दिया गया था) भी समाप्त हो गई।
ये दो अणु अलग-अलग प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करते हैं। जहां CpG डेंड्राइटिक कोशिकाओं को उकसाता है वहीं OX40 टी-कोशिकाओं के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। ये दोनों ही कैंसर गठान पर हल्ला बोल देते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं। प्रयोग से यह भी पता चलता है कि एक गठान में इंजेक्शन देने पर दूसरी गठान भी प्रभावित होती है। इसके अलावा यह भी पता चला कि ये अणु मिलकर नई गठान को विकसित नहीं होने देते।
ये प्रयोग अभी चूहों पर किए गए हैं और दिक्कत यह है कि अतीत में यह देखा जा चुका है कि चूहों में मिले परिणाम मनुष्यों में नहीं दिख पाते। कैंसर से लड़ने में प्रतिरक्षा प्रणाली के उपयोग करने का विचार काफी समय से चल रहा है किंतु अभी तक ठोस नतीजे नहीं मिले हैं। इसीलिए लेवाई का दल अब प्रारंभिक इंसानी परीक्षण करने की योजना बना रहा है। (स्रोत फीचर्स)