एंटीबॉडीज़ रोगजनक सूक्ष्मजीवों के खिलाफ शरीर का सबसे प्रभावी हथियार है। लेकिन प्रतिरक्षा तंत्र का कम से कम एक प्रोटीन है जो एक हानिरहित बैक्टीरिया को मनुष्य की आंत में एक स्थायी घर बनाने में मदद करता है - इम्यूनोग्लोबुलिन। ऐसा लगता है कि बैक्टीरिया इम्युनोग्लोबुलिन ए (IgA) को फुसलाकर अपनी सतह पर उसका आवरण बना लेता है ताकि आंत की श्लेष्मा झिल्ली से चिपक सके। इस तरह से यह हमारी आंत के सूक्ष्मजीव संसार का स्थायी हिस्सा बन जाता है। यह खोज अभी चूहों पर किया गया है और सोचा जा रहा है कि इस तरह से मानव शरीर में सूक्ष्मजीव पहुंचाकर कई तकलीफों के इलाज में मदद मिलेगी।
जापान के रिकेन योकोहामा इंस्टीट्यूट के प्रतिरक्षा वैज्ञानिक सिडोनिया फगारासन ने सबसे पहले सन 2002 में बताया था कि शायद IgA कई बैक्टीरिया को शरीर से बाहर करने की बजाय उनकी मदद करता है।
IgA की खोज 50 साल पहले हुई थी। एक मनुष्य प्रतिदिन 3 से 5 ग्राम एंटीबॉडी बनाता है। मां के दूध में IgA की प्रचुर मात्रा होती है जो शायद संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। लेकिन जब यह पता चला कि IgA के कम स्तर वाले चूहों में असामान्य सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं, तो फागारसन ने सुझाव दिया कि संभवत: IgA शरीर में बैक्टीरिया को नियंत्रित करने और रख-रखाव में भूमिका निभाता है। मगर इसकी क्रियाविधित पता नहीं चल सकी थी।
पासाडेना के कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट सार्किस माज़मानियन और उनके ग्रेजुएट छात्र ग्रेगरी डोनाल्डसन यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बैक्टीरॉइड्स फ्रेजिलिस वर्षों तक आंतों में कैसे टिका रह सकता है। यह बैक्टीरिया मनुष्य को कोलाइटिस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और ऑटिज़्म जैसी समस्याओं से बचाता है। कई अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल करके उन्होंने पाया कि इस संदर्भ में IgA महत्वपूर्ण है। उन्होंने देखा कि इस बैक्टीरिया ने अपनी कोशिका को शर्करा से ढंक लया था जो बड़ी संख्या में IgA को बांध लेती हैं।
अक्सर IgA इस तरीके (शर्करा से ढंककर सूक्ष्मजीव से जुड़ने) का इस्तेमाल रोगजनकों का सफाया करने के लिए करता है। लेकिन यहां बाज़ी पलट गई है। इस मामले में IgA की मदद से रोगजनक आंतों के अस्तर पर टिकने में सफल हो जाते हैं। IgA न हो तो ये सूक्ष्मजीव आतों में स्थायी निवासी नहीं बन पाते। डोनाल्डसन की यह रिपोर्ट साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुई है। डोनाल्डसन का कहना है कि उन्होंने नहीं सोचा था कि प्रतिरक्षा तंत्र का एक ही अणु अलग-अलग बैक्टीरिया प्रजाति पर अलग प्रभाव डाल सकता है।
इस टीम के एक प्रयोग से काफी चौंकाने वाले परिणाम मिले हैं। उन्होंने कुछ चूहों को जीवाणु मुक्त वातावरण में पाला। इनमें से कुछ को जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से IgA उत्पादन में असमर्थ बनाया गया था। देखा गया कि बी. फ्रेजिलिस को IgA बनाने वाले चूहों में डाला तो बैक्टीरिया आंत में टिक पाया जबकि IgA रहित चूहों में वह नहीं टिक पाया। बी. फ्रेजिलिस ही नहीं, कई अन्य बैक्टीरिया आंतों में बसने के लिए IgA की मदद लेते हैं।
आजकल कुछ रोगों के इलाज के लिए शरीर में ऐसे सूक्ष्मजीव पहुंचाने के तरीके पर शोध चल रहा है। इनमें उपरोक्त शोध मददगार हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)