टी.वी. वेंकटेश्वरन, दिनेश शर्मा एवं नवनीत कुमार गुप्ता
ब्लैक होल एवं आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करने वाले प्रोफेसर सी. वी. विश्वेश्वरा का पिछले वर्ष निधन हो गया। उन्होंने कई वर्षों तक गुरुत्व तरंगों और ब्लैक होल के सिद्धांत पर शोध कार्य कर नई संकल्पना का विकास किया था।
सन 1970 में विश्वेश्वरा ने ब्लैक होल और गुरुत्व तरंगों सम्बंधी नई संकल्पना को प्रस्तुत कर सैद्धांतिक भौतिकी में योगदान दिया। बाइनरी ब्लैक होल में, गुरुत्व तरंगें दोगुनी गति से उत्पन्न होती हैं। इस प्रक्रिया में यह प्रणाली अपनी घूर्णन ऊर्जा खो देती है जिससे दो ब्लैक होल पास आते हैं और बहुत अधिक विकिरण उत्सर्जित करते हैं जिससे भंवर-सा बनता है। इससे तरंगों का गुंजन पैदा होता है। इन तरंगों का आयाम और आवृत्ति तब तक बढ़ती है जब तक ये दोनों पिंड आपस में मिल न जाएं। पिंडों के आपस में मिलने से पहले सापेक्ष वेग प्रकाश की गति के नज़दीक पहुंचने लगता है।
विलय के परिणामस्वरूप एक नए ब्लैेक होल का निर्माण होता है। यह नया ब्लैक होल गुरुत्व विकिरण उत्सर्जित करता है जिसका द्रव्यमान और घूर्णन सम्बंधी गुणधर्म निर्णायक ब्लैक होल की तरह होता है। इसे अर्ध सामान्य मोड या रिंग-डाउन संकेत कहते हैं। रिंग-डाउन संकेत हथौड़े की चोट से उत्पन्न विकिरण के जैसा होता है।
विश्वेश्वरा के सैद्धांतिक योगदान से हम समझ पाए कि किस प्रकार दो ब्लैक होल आपस में एक दूसरे से टकरा सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार से ब्लैक होल से फैलने वाली गुरुत्व तरंगों में रिंग-डाउन संकेत के गुणधर्म हो सकते हैं। इसमें वही लचीलापन होता है जो कि गुरुत्व तरंगों में पाया जाता है। उनका यह शोध पत्र सन् 1970 में प्रतिष्ठित शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ था।
16 मार्च, 1936 को जन्मे विश्वेश्वरा का आरंभिक जीवन बैंगलुरु में बीता और उनकी प्राथमिक शिक्षा भी इसी शहर में हुई। उनके स्कूल के शिक्षक द्वारा भौतिकी को रोचक तरीके से समझाए जाने के कारण उन्हें भौतिकी विषय से लगाव हो गया। इसी तरह गणित विषय में भी उनकी दिलचस्पी थी। भौतिकी को विशेष विषय लेकर उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
बैंगलुरु में एम.एससी. करने के बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय गए। मैरीलैंड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर चाल्र्स मिसेनर के मार्गदर्शन में उन्होंने ब्लैक होल की स्थिरता पर काम करते हुए पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने ब्लैक होल स्थिरता के साथ ही ब्लैक होल भौतिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अमेरिका में कई विश्वविद्यालयों के विभागों में कार्य करने के बाद उन्होंने भारत आकर बैंगलुरु के रामन अनुसंधान संस्थान में अपनी सेवाएं दीं। बाद में उन्होंने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। वे बैंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू तारामंडल एवं विज्ञान केंद्र के संस्थापक-निदेशक थे।
इन विषयों पर लिखी गई उनकी लोकप्रिय पुस्तकों, ‘आइंस्टाइन्स एनिग्मा ऑर ब्लैक होल इन माय बबल बाथ’ और ‘युनिवर्स अनवाइल्ड - दी कॉस्मॉस इन माय बबल बाथ’ को दुनिया भर में काफी पढ़ा और सराहा गया। (स्रोत फीचर्स)