आधुनिक मानव होमो सेपिएन्स प्रजाति में आते हैं। मानवों के कई सगे सम्बंधी रहे हैं जो समय के साथ विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से एक है निएंडर्थल। वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि निएंडर्थल मानव का मस्तिष्क प्रयोगशाला में बनाकर देखा जाए कि उनके मस्तिष्क और आधुनिक मानव के मस्तिष्क में किस तरह के अंतर रहे होंगे।
दरअसल, वैज्ञानिकों के पास निएंडर्थल मानव का आनुवंशिक पदार्थ डीएनए उसके जीवाश्मों से उपलब्ध है। इससे पहले जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर स्वांते पाबो के नेतृत्व में 2010 में निएंडर्थल मानव का पूरा आनुवंशिक सूत्र (यानी जीनोम) पढ़ा जा चुका है। डीएनए से ही निर्धारित होता है कि किसी जीव, उसके अंगों और ऊतकों की संरचना कैसी होगी।
मस्तिष्क निर्माण का वर्तमान प्रयोग भी इसी प्रयोगशाला में होने वाला है। मगर इससे पहले पाबो की टीम ने निएंडर्थल में खोपड़ी और चेहरे के विकास के लिए ज़िम्मेदार जीन को चूहों में प्रत्यारोपित किया था और निएंडर्थल के दर्द संवेदना के जीन्स को मेंढक के अंडों में प्रविष्ट कराया था। मकसद यह देखना था कि क्या निएंडर्थल की दर्द संवेदना का तंत्र मनुष्यों से भिन्न है और क्या उनकी दर्द सहने की क्षमता भी अलग थी।
अब यही टीम निएंडर्थल के मस्तिष्क विकास से सम्बंधित जीन्स को मनुष्य की स्टेम कोशिकाओं में प्रविष्ट कराएगी। यानी इन स्टेम कोशिकाओं में जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीकों से निएंडर्थल के जीन्स जोड़े जाएंगे। अब इनसे मस्तिष्क का विकास तो नहीं होगा (जो सोच सके या महसूस कर सके) किंतु मस्तिष्क के ऊतकों का विकास होगा। ऐसे ऊतकों को अंगाभ या ऑर्गेनॉइड कहते हैं।
इस तरह विकसित ऑर्गेनॉइड्स की मदद से वैज्ञानिक निएंडर्थल और आधुनिक मनुष्य की तंत्रिकाओं के कामकाज में अंतर समझ सकेंगे और यह देख पाएंगे कि आधुनिक मनुष्य संज्ञान के मामले में इतने खास क्यों हैं। (स्रोत फीचर्स)