डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
मुर्गी का अंडा और उसका छिलका वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों के लिए शोध का विषय रहा है। आम तौर पर एक मुर्गी प्रति वर्ष 300 अंडे देती है, अंडे और उसके छिलके को पूरी तरह से बनने में 25-26 घंटों यानी करीब एक दिन का समय लगता है। अंडा देने के बाद उसे सेने में लगभग 21 दिन का समय लगता है। कनाडा के वैन्कूवर ब्रिाटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के डॉ. मार्विन ए. टुंग्स ने 1967 में अपनी पीएच.डी. थीसिस में मुर्गी के अंडे के भौतिक, रासायनिक और पदार्थ सम्बंधी गुणधर्मों के बारे में बताया था। उन्होंने बताया था कि अंडे को खड़ा रखा जाए तो उस पर 4 किलोग्राम तक भार रखा जा सकता है और अंडे को टूटने से बचाने में उसके छिलके की कठोरता सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुर्गी के एक अंडे का वज़न 60 ग्राम के लगभग होता है और छिलके में लगभग 6 ग्राम खनिज होता है जो उसे कठोरता प्रदान करता है।
लगभग 200 वर्ष पूर्व, जर्मन खनिज वैज्ञानिक फ्रेडरिक मो ने सामग्रियों की कठोरता का अनुमान लगाने के लिए एक मानक पैमाना तैयार किया था। हीरे को इस पैमाने पर 10 अंकों पर रखा गया है, कीमती पत्थर पुखराज को 8, क्वार्ट्ज़ को 7 और एपेटाइट खनिज पत्थर (कैल्शियम फास्फेट) को 5 अंक पर रखा गया है। इस पैमाने पर हमारे दांतों के एनेमल की कठोरता 5 है, क्योंकि यह मूलत: हाइड्रॉक्सी-एपेटाइट से बना होता है। इस प्रकार यह हमारे शरीर का सबसे कठोर खनिजीकृत ऊतक है। इस पैमाने पर उंगलियों के नाखून की कठोरता केवल 2.5 है जबकि कैल्साइट (कैल्शियम कार्बोनेट) अधिक कठोर है जो मो पैमाने पर 3 है। मुर्गी के अंडे के छिलके में कैल्साइट होता है और यह अंडे को टूटने से बचाता है। लेकिन फिर कैसे चूज़ा बड़ी आसानी से अपनी चोंच से अंडे के छिलके को तोड़कर बाहर आ पाता है?
इस पहेली का जवाब खोज निकाला है क्यूबेक (कनाडा) के मैकगिल विश्वविद्यालय में दंत चिकित्सा, शारीरिकी और कोशिका जीव विज्ञान के प्रोफेसर मार्क मैकी की टीम ने। उनका यह जवाब साइंस एडवांसेस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। मेकी की टीम ने अंडे के छिलके की बारीक संरचना निर्धारित करने के लिए इसी विश्वविद्यालय में खनन व पदार्थ विभाग के रिचर्ड क्रोमिक और कनाडा, स्पेन, जर्मनी और यूएस के अन्य वैज्ञानिकों के साथ सहयोग किया। छिलके की मोटाई 0.36 मि.मी. होती है, लेकिन इसमें कई उप-परतें होती हैं और प्रत्येक का प्रोटीन संघटन और संरचना अलग-अलग होती है।
अंडे के छिलके की संरचना, संघटन और खनिज तत्व का विस्तृत अध्ययन फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और कनाडा के सहयोगियों के साथ मिलकर कनाडा के ओटावा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मैक्सवेल हिन्के के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय समूह पहले ही कर चुका था। उनके अलावा अन्य शोधकर्ताओं के कार्य से अंडे के छिलके में 500 प्रोटीन्स की पहचान की गई है। और उन्होंने विशेष रूप से प्रमुख प्रोटीन ओवोक्लेडिन और ओवोकेलिक्सिन की पहचान की है। और एक तीसरा है जिसे ओस्टियोपोन्टिन कहते हैं।
इस प्रकार छिलका एक जटिल मिश्रित पदार्थ है जिसमें खनिजों का सम्मिश्रण होता है (जिसमें वज़न के हिसाब से कैल्साइट 96 प्रतिशत होता है)। शेष 4 प्रतिशत अन्य अल्पमात्रिक तत्वों और तथाकथित मैट्रिक्स प्रोटीन्स से बना होता है। सहस्त्राब्दियों से, डायनासौर के समय से और यहां तक कि जब समुद्री जीव स्थलीय जीवों के रूप में विकसित हो रहे थे उसके पहले से, छिलके में निरंतर सुधार होता रहा है। कैल्साइट क्रिस्टल में सतह पर धनात्मक आवेशित कैल्शियम ऋणात्मक आवेश वाले मैट्रिक्स प्रोटीन से जुड़ जाते हैं। ये सब मिलकर क्रियात्मक संश्लिष्ट जैव-खनिज बनाते हैं।
शोधकर्ताओं ने अंडे के छिलके की एक पतली कटान काटकर देखा तो उन्हें उसकी पांच उप-परतें मिलीं। उन्होंने प्रत्येक परत का अवलोकन उन्नत सूक्ष्मदर्शी तकनीकों से किया और कठोरता के परीक्षण भी किए। उन्होंने खोजा कि बहुत ही पतली कटानों में भी जैव-खनिज की एक नैनो-स्तर की संरचना थी। नैनो संरचना अंडे के सबसे बाहरी छिलके में सबसे सूक्ष्म (30 नैनोमीटर) से लेकर सबसे अंदर की परत में 68 नैनोमीटर तक मोटी थी। ये सारी परतें अंडे को सटकर घेरे रहती हैं जहां चूज़े की वृद्धि और विकास होता है। सबसे आंतरिक पर्त को मैमिलरी परत कहते हैं। यह बहुत ही मुलायम होती है और इसकी नैनोसंरचना चूज़े के विकास में कंकाल-निर्माण हेतु कैल्शियम की ज़रूरत को पूरा करती है। इस प्रकार छिलका न केवल बढ़ते चूज़े की रक्षा करता है बल्कि ज़रूरी कैल्शियम भी प्रदान करता है। छिलके का इस तरह घुल-घुलकर पतला होते जाना चूज़े को अंडे का छिलका तोड़कर बाहरी दुनिया में आने में मदद करता है।
करीब 50 साल पहले, जापानी वैज्ञानिकों की एक टीम ने अंडे में चूज़े के संपूर्ण विकास की एक फिल्म तैयार की थी। इसमें दिखाया गया था कि 21 दिनों के विकास में प्रतिदिन क्या-क्या होता है और अंडे में चूज़ा कैसे बनता है और बाहर कैसे आता है। दुख की बात है कि अब यह फिल्म आसानी से उपलब्ध नहीं है। अलबत्ता, ऑस्ट्रेलिया में पौल्ट्री हब द्वारा बनाई गई एक छोटी फिल्म (2 मिनिट) ‘चिकन एम्ब्रियो डेवलपमेंट’ यूट्यूब पर उपलब्ध है। यह फिल्म देखने लायक है। इसे देखकर पता चलता है कि जैव-विकास ने कैसे यह सुनिश्चित किया है कि अंडे के अंदर नई पीढ़ी की शुरुआत, वृद्धि और विकास सुरक्षित ढंग से हो पाएं। अंडे के छिलके की प्रत्येक परत की बारीक समझ के साथ, हमारे पास इस उल्लेखनीय सुरक्षात्मक संरचना की बेहतर समझ है जिसके भीतर एक नया जीवन जन्म लेता है। (स्रोत फीचर्स)