हाल में यूएसए में यह मुद्दा काफी ज़ोर से उठा है कि चिकित्सकीय उपकरणों (पेसमेकर, स्टेंट आदि) को लेकर मानक बहुत कमज़ोर हैं और इन्हें बगैर पर्याप्त प्रमाण के मंज़ूरी मिल जाती है।
अमेरिका के लगभग 30 लाख से 60 लाख लोग एट्रियल फिब्रिालेशन की दिक्कत से प्रभावित हैं। हमारे ह्रदय में चार प्रकोष्ठ होते हैं - दो आलिंद (एट्रिया) और दो निलय (वेंट्रिकल)। पूरे शरीर से खून आकर आलिंद में भर जाता है। तब आलिंद में संकुचन होता है और खून निलय में पहुंचता है। इसके बाद निलय में संकुचन होता है और खून को शरीर में भेजा जाता है। यह क्रिया काफी लयबद्ध ढंग से चलती है। मगर कभी-कभी आलिंद अनियमित ढंग से फड़कने लगता है। इसे एट्रियल फिब्रिालेशन कहते हैं। ऐसा होने पर ह्रदयाघात और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। पिछले दो दशकों से डॉक्टर इसका इलाज कैथेटर एब्लेशन से कर रहे हैं। इस तरीके में कैथेटर की मदद से ह्मदय के क्षतिग्रस्त ऊतकों को इस तरह उपचारित किया जाता है कि वहां घाव के निशान जैसा ऊतक (स्कार) बन जाए। इससे गड़बड़ विद्युत संकेतों को फैलने से रोका जा सकता है जो मांसपेशियों के फड़कने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। इस उपचार में लगभग 20,000 डॉलर का खर्चा आता है। किंतु हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि कैथेटर एब्लेशन अन्य सस्ते उपचारों से बेहतर नहीं हैं। किंतु कुछ लोगों का मत है कि अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि कैथेटर एब्लेशन से कुछ लोगों को तो फायदा हुआ है। लिहाज़ा, ज़्यादा गहन अध्ययन की ज़रुरत है।
इसी तरह, एक अध्ययन में पता चला था कि सीने में जीर्ण दर्द के मरीज़ों में दवाइयों की बजाय स्टेंट उपयोग करने से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता।
दिल की खून पंप करने की क्षमता बढ़ाने के लिए इंपेला नामक यंत्र दिल में लगाया जाता है। इसे लगवाने में 25,000 डॉलर का खर्च आता है। इसे अब तक 50,000 से भी अधिक रोगियों में लगाया जा चुका है जबकि इसके परिणामों के बारे में कोई डाटा नहीं है।
कई लोग मांग कर रहे हैं कि दवाइयों के समान ऐसे चिकित्सा उपकरणों के लिए भी सख्त मापदंड होने चाहिए, किंतु यूएसए जल्द ही ऐसे चिकित्सा यंत्रों की मंज़ूरी और आसान कर सकता है। खाद्य व औषधि प्रशासन का मत है कि यंत्र को मंज़ूरी देने से पहले ज़्यादा छानबीन करने की बजाय बाज़ार में आने के बाद उसके परिणामों को देखा जाए। तर्क है कि इससे तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और मरीज़ों को मदद। हालांकि, ऐसे ढीले-ढाले नियमों के चलते युरोप में वज़न घटाने के लिए पेट में लगाए जाने वाले गुब्बारे व स्तन प्रत्यारोपण जैसे उपचारों के दुष्परिणाम देखकर वहां नियमों में बदलाव किए गए।
एफ.डी.ए. ने ह्रदय के ब्लॉकेज से निजात पाने के लिए एक नए प्रकार के स्टेंट को अनुमति दी थी जो लगभग तीन साल में घुल जाता है। तर्क यह था कि मरीज़ धातु के यंत्र की बजाय घुलने वाले यंत्र लगवाना बेहतर समझेंगे। और हुआ भी वही, बाज़ार में इसकी मांग बढ़ गई। लेकिन दीर्घावधि अध्ययनों से पता चला कि कई स्टेंट रक्त के थक्के में तबदील हो रहे थे जिनसे दिल के दौरे का खतरा और बढ़ गया था।
चिकित्सीय यंत्रों की मंज़ूरी के लिए सख्त मानकों की ज़रूरत है। दवाओं की तुलना में यंत्रों के असर का अध्ययन करना मुश्किल है। कुछ रोगियों को एक झूठी गोली (प्लेसिबो) देना आसान है। पर स्टेंट या अन्य यंत्र के प्रत्यारोपण करने का नाटक करना मुश्किल है। किंतु वास्तविक लाभ का आकलन करने के लिए यह ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)