भारत डोगरा
यदि सरकार किसी कार्य को उच्च प्राथमिकता मानते हुए उसके लिए विशेष संसाधन जुटाना चाहती है तो उसके लिए एक उपाय उसके पास यह है कि वह इसके लिए विशेष तौर पर उपकर या सेस लगा सकती है। इस उपकर से जो धनराशि प्राप्त होती है वह केवल उस उच्च प्राथमिकता के कार्य के लिए निर्धारित रहती है तथा यह सुनिश्चित करने के लिए प्राय: समुचित प्रशासनिक व्यवस्था की जाती है। जैसे, किसी विशेष कोष की स्थापना करना व उपकर से प्राप्त धनराशि को खर्च करने के मदों को स्पष्ट तौर पर निर्धारित करना।
इस तरह का एक शिक्षा उपकर हमारे देश में लगभग एक दशक पहले वित्तीय वर्ष 2006-07 में लगाया गया था। वर्ष 2006-07 से 2016-17 तक केंद्रीय सरकार को इस उपकर से 83,497 करोड़ रुपए प्राप्त हुए। यह एक काफी बड़ी धनराशि है तथा इससे बहुत उपयोगी कार्य किया जा सकता था जिसकी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ज़रूरत भी है। पर जैसा कि दिसंबर 2017 में संसद में प्रस्तुत की गई सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडीटर जनरल) की रिपोर्ट में बताया गया है, इस उपकर से प्राप्त धनराशि का उचित उपयोग नहीं किया जा सका है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस धनराशि को जिस विशेष कोश में जमा किया जाना था वह स्थापित ही नहीं किया जा सका। इसके अतिरिक्त जिन स्कीमों पर यह धनराशि खर्च की जानी थी उनकी भी ठीक-ठीक व स्पष्ट पहचान नहीं की गई। अत: इस उपकर से प्राप्त धनराशि को निर्धारित प्राथमिकता पर खर्च करने के स्थान पर उसका सरकार के सामान्य खर्च में उपयोग होने लगा।
माध्यमिक व उच्च शिक्षा के अनेक ज़रूरी कार्यों के लिए अभी संसाधनों की बहुत ज़रूरत है। अत: सरकार को चाहिए कि शिक्षा उपकर को निर्धारित प्राथमिकताओं के लिए उपलब्ध करवाने के लिए वह विभिन्न स्कीमों की सही पहचान करे तथा उपकर राशि को जमा करने के लिए एक विशेष कोष की स्थापना करे। इन ज़रूरी कार्यों में अब और देरी नहीं होनी चाहिए। (स्रोत फीचर्स)