हिरनों और सिकल सेल एनीमिया पीड़ित लोगों के बीच एक समानता होती है। दोनों में ही लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बेढंगा हो जाता है। मगर एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जहां ऐसे बेढंगे आकार की लाल रक्त कोशिकाओं वाले लोग बीमार हो जाते हैं, वहीं हिरन तंदुरुस्त बने रहते हैं। हिरनों के बारे में यह तथ्य 1840 के दशक से पता रहा है मगर यह एक पहेली रही है कि ऐसा क्यों होता है।
सिकल सेल एनीमिया पीड़ित लोगों में लाल रक्त कोशिकाओं में उपस्थित हीमोग्लोबीन अणु का आकार बिगड़ जाता है। हीमोग्लाबीन वह अणु है जो ऑक्सीजन को शरीर के हर हिस्से तक ले जाने का काम करता है। हीमोग्लोबीन के आकार में बदलाव के कारण मांसपेशियों और शरीर के अन्य अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और व्यक्ति थका-थका सा रहता है।
इसके अलावा हीमोग्लोबीन का आकार बिगड़ने के कारण लाल रक्त कोशिका का आकार भी बिगड़ जाता है। जो लाल रक्त कोशिकाएं सामान्यत: चपटी चकतियों के आकार की होती हैं वे हंसियाकार (अर्ध-चंद्राकार) हो जाती हैं। इस वजह से वे यहां-वहां फंसती रहती हैं और कई तरह की दिक्कतें पैदा करती हैं।
हिरनों की कई प्रजातियों की लाल रक्त कोशिकाएं भी हंसियाकार हो जाती हैं हालांकि वैज्ञानिकों को पता नहीं है कि इसका कारण क्या होता है। इसे समझने के लिए लंदन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज़ के टोबियास वार्नेके और साथियों ने हिरनों की 15 प्रजातियों के खून के नमूने लिए। उन्होंने माइस और रेनडीयर के खून की भी जांच की।
यह देखा गया है कि मनुष्यों में हंसियाकार लाल रक्त कोशिकाएं इसलिए बनती हैं क्योंकि उनके हीम प्रोटीन बीटा ग्लोबिन में एक अमीनो अम्ल ग्लूटेमिक अम्ल का स्थान वैलीन ले लेता है जिसकी वजह से प्रोटीन की तह ठीक ढंग से नहीं बन पाती। वार्नेके और उनके साथियों ने नेचर इकॉलॉजी एंड इवॉल्यूशन में अपने शोध पत्र में बताया है कि हिरनों में भी इन्हीं अमीनो अम्लों की अदला-बदली होती है लेकिन किसी अन्य स्थान पर होती है। इस परिवर्तन की वजह से हिरनों में हीमोग्लोबिन के अणु समूहीकृत होने लगते हैं और रेशे बना लेते हैं। अलबत्ता, इसके बावजूद भी हिरन स्वस्थ बने रहते हैं।
मनुष्यों में हंसियाकार रक्त कोशिका से ग्रस्त लोगों की औसत उम्र कम होती है। तो सवाल यह है कि हिरन इसकी क्या कीमत चुकाते हैं। मनुष्यों में इस परिवर्तन की भारी कीमत होने के बावजूद यह लक्षण टिका हुआ है क्योंकि बेशक्ल हीमोग्लोबिन होने पर व्यक्ति को मलेरिया से कुछ सुरक्षा मिलती है। इसलिए यह लक्षण उन इलाकों में काफी अधिक देखा गया है जहां मलेरिया का उत्पात ज़्यादा है। मगर सवाल तो यह है कि क्या बेडौल हीमोग्लोबिन हिरनों को भी कुछ लाभ पहुंचाता है। वार्नेके की टीम अब इसी पर शोध करने को उत्सुक है। (स्रोत फीचर्स)