यह आलेख ‘प्लगिंग इन: भारतीय घरों में बिजली खपत’ प्रयास (ऊर्जा समूह) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च द्वारा तैयार किया गया है। यह सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की वेबसाइट (http://cprindia.org/news/6519) पर भी उपलब्ध है ।
वर्ष 2000 की तुलना में भारतीय घरों में बिजली खपत में तीन गुना वृद्धि हुई है। बिजली उपयोेग करने वाले घरों की संख्या 2001 में 55 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2017 में 80 प्रतिशत से अधिक हो गई है। 2014 में, एक औसत विद्युतीकृत भारतीय परिवार की बिजली की खपत लगभग 90 युनिट थी। भारत में सामान्य उपयोग और दक्षता के स्तर के लिहाज़ से यह चार ट्यूब लाइट, चार सीलिंग पंखों, एक टेलीविज़न, एक छोटे रेफ्रिजरेटर और छोटे-मोटे रसोई उपकरणों के लिए पर्याप्त है। इतनी खपत चीन में औसत मासिक घरेलू खपत का तीन-चौथाई, यूएसए का दसवां हिस्सा, और विश्व औसत का एक तिहाई है। इस आलेख में हम भारत के आवासीय बिजली खपत के आंकड़ों और राज्यों के बीच पहुंच और खपत में असमानता पर करीब से नज़र डालेंगे। हम विभिन्न रुाोतों से प्राप्त आंकड़ों के बीच अंतर भी उजागर करेंगे, जिनसे पता चलता है कि बेहतर डैटा की आवश्यकता है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा बिजली वितरण कंपनियों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर संकलित आंकड़ों के अनुसार, हालिया सालों में सभी राज्यों में कुल आवासीय बिजली खपत में काफी वृद्धि दिखती है। 2004 और 2015 के बीच असम, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे कम प्रारंभिक घरेलू विद्युतीकरण वाले राज्यों में आवासीय बिजली उपयोग की वृद्धि दर काफी अधिक (लगभग 11-16 प्रतिशत) रही है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाड़ु जैसे उच्च घरेलू विद्युतीकरण वाले राज्यों में वृद्धि दर कम, लेकिन उल्लेखनीय (6-8 प्रतिशत) रही है और यदि कुल संख्याएं देखेंगे तो इन राज्यों में खपत काफी अधिक है।
जनगणना और ग्रामीण विद्युतीकरण के आंकड़ों के साथ केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के डैटा का उपयोग करके विभिन्न राज्यों में विद्युतीकृत घरों की औसत मासिक बिजली खपत का अनुमान लगाया जा सकता है। हमने इसका सत्यापन राज्य नियामक आयोगों द्वारा जारी किए गए विद्युत शुल्क आदेशों के सापेक्ष किया और इस तुलना से कुछ दिलचस्प परिणाम मिले हैं।
इस किए गए विश्लेषण से तीन बातें साफ तौर पर नज़र आती हैं:
पहला, दिल्ली में एक औसत विद्युतीकृत परिवार एक माह में लगभग 250-270 युनिट बिजली खर्च करता है, जो लगभग जर्मनी के किसी विद्युतीकृत परिवार द्वारा औसत उपयोग के बराबर है (चित्र देखें)। इस समय, दिल्ली में एक विद्युतीकृत घर अन्य भारतीय शहरों के घरों के मुकाबले काफी अधिक खपत करता है (चंडीगढ़ 208 युनिट, अहमदाबाद 160 युनिट, पुडुचेरी 150 युनिट और मुंबई 110 युनिट)। दिल्ली में अधिक खपत एयर कंडीशनर (कुल घरों में से 12 प्रतिशत) और एयर कूलर (70 प्रतिशत) के उच्च उपयोग और शुल्क रियायत उपलब्ध होने के कारण है। अलबत्ता, अन्य सामाजिक-आर्थिक कारणों की भी जांच की जानी चाहिए।
दूसरा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाड़ु जैसे बड़े राज्यों में विद्युतीकरण की दर काफी ज़्यादा है किंतु प्रत्येक परिवार प्रति माह कम बिजली (औसतन मात्र 80-90 युनिट) खर्च करता है। कर्नाटक लगभग 60 युनिट के साथ निचले छोर पर है। वहीं पंजाब (लगभग 150 युनिट) और हरियाणा (लगभग 110 युनिट) के घरों में कहीं ज़्यादा बिजली खपत होती है। हालांकि वितरण कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं की संख्या और खपत की गलत रिपोर्टिंग के चलते डैटा में कुछ विसंगतियां हो सकती हैं, लेकिन आवासीय क्षेत्र में मीटर-रहित और अवैध कनेक्शन की सीमित संख्या को देखते हुए ये विसंगतियां बहुत अधिक नहीं होंगी।
तीसरा, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में मासिक घरेलू बिजली खपत काफी अधिक है। यह संभव नहीं लगता कि अपेक्षाकृत कम विश्व सनीय बिजली आपूर्ति वाले राज्यों में नए-नए विद्युतीकृत घर चंडीगढ़ या मुंबई के औसत घरों के बराबर बिजली खर्च करते होंगे। इन राज्यों में घरेलू खपत के अधिक दिखने का कारण शायद मीटरिंग की समस्याओं से सम्बंधित है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में कुल आवासीय कनेक्शन में से 40 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र के मीटर-रहित कनेक्शन हैं। चूंकि उनकी वास्तविक खपत को मीटर नहीं किया जा सकता, इसलिए वितरण कंपनियां नियामक द्वारा अनुमोदित मानकों के आधार पर उनकी खपत का अनुमान लगाती हैं (वर्तमान में यह मानक 144 युनिट प्रति माह है, जो काफी अधिक है)। नियामकों के निर्देशों के बावजूद वितरण कंपनियों ने इस मानक को सही ठहराने के लिए कोई प्रादर्श अध्ययन नहीं किया है। संभवत: बिना मीटर वाले कनेक्शन से खपत के उच्च आकलन के साथ-साथ मीटर वाले कनेक्शनों में मापन सम्बंधी समस्याएं वास्तविक खपत को छिपा रही हैं।
इसके अलावा, राज्यों के अंदर भी घरेलू बिजली खपत में काफी असमानता नज़र आती है। राष्ट्रीय प्रादर्श सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत विद्युतीकृत परिवार 30 युनिट प्रति माह से कम बिजली का उपभोग करते हैं, जबकि लगभग 80 प्रतिशत परिवार 100 युनिट प्रति माह से कम का उपभोग करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, 90 प्रतिशत विद्युतीकृत घर 100 से कम युनिट का उपभोग करते हैं। यह वितरण विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। ज़्यादातर राज्यों में, लगभग 15-20 प्रतिशत घरों में हर महीने 30 से कम युनिट का उपभोग होता है। सबसे कम बिजली उपभोग करने वाले राज्यों में कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड हैं। परिणामों के बारे में अधिक विवरण के लिए हमारी हाल की रिपोर्ट देखें (http://www.prayaspune.org/peg/publications/item/331.html)।
भविष्य में बिजली की मांग के प्रबंधन (और उदय व सौभाग्य जैसी योजनाओं के प्रदर्शन की निगरानी करने) के लिए राज्यों और परिवारों में उपभोग के पैटर्न में इस तरह के अंतरों के कारणों को समझना महत्वपूर्ण है। उदय परियोजना वितरण कंपनियों के वित्तीय पुनरुत्थान के लिए और सौभाग्य परियोजना सभी गैर विद्युतीकृत घरों को बिजली कनेक्शन प्रदान करने के लिए शुरू की गई है। इसके लिए बिजली खपत पर सटीक और व्यापक डैटा की आवश्यकता है। डैटा की अनुपलब्धता और अविश्व सनीयता फिलहाल चिंता का एक गंभीर क्षेत्र है (विशेषकर वितरण कंपनियों द्वारा सीमित रिपोर्टिंग के चलते)। (स्रोत फीचर्स)