भारत डोगरा
आयातित तकनीक पर निर्भरता कम करने व इसके स्थान पर स्वदेशी तकनीक को विकसित करने को एक राष्ट्रीय उद्देश्य के रूप में मान्यता बहुत पहले से प्राप्त है व इस बारे में व्यापक सहमति है। इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1986 में सभी आयतित तकनीकों पर एक उपकर या सेस लगाया था। योजना थी इस तरह जो धनराशि प्राप्त होगी उसको तकनीकी विकास बोर्ड में जमा किया जाएगा व इस बोर्ड द्वारा उसका उपयोग स्वदेशी तकनीकों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाएगा।
अब यदि हम इस योजना का आकलन लगभग तीन दशक बाद करें तो इसमें कुछ गंभीर विसंगतियां व कमियां नज़र आती हैं। वर्ष 1996-97 से 2016-17 तक के लगभग दो दशकों के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इन 20 वर्षों में इस उपकर से मात्र 7885 करोड़ रुपए प्राप्त हुए जो कि आयतित तकनीक की बहुलता को देखते हुए बहुत कम राशि है। अत: इस बारे में समुचित जांच करनी चाहिए कि क्या बहुत-सी आयतित तकनीक इस उपकर के दायरे से छूट रही है।
दूसरी ओर, यदि हम उपलब्ध धनराशि के वास्तविक उपयोग को देखें तो इस दौरान उपलब्ध होने वाले 7885 करोड़ रुपए में से मात्र 609 करोड़ रुपए को ही तकनीकी विकास बोर्ड में जमा करवाया गया। दूसरे शब्दों में, 10 प्रतिशत से भी कम राशि को जमा करवाया गया जबकि 90 प्रतिशत से अधिक उपकर की राशि को तकनीकी विकास बोर्ड में जमा ही नहीं करवाया गया। यह जानकारी दिसंबर 2017 में संसद में प्रस्तुत सीएजी रिपोर्ट में दी गई है।
इस बारे में भी समुचित जांच की ज़रूरत है कि आखिर इस उपकर का निर्धारित योजना के अनुसार समुचित उपयोग क्यों नहीं हो सका। इस आधार पर यदि असरदार कार्यवाही शीघ्र की जाती है तो प्रति वर्ष बड़ी धनराशि इस कोष के अंतर्गत स्वदेशी तकनीक के विकास के लिए प्राप्त हो सकती है जिसकी बहुत ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)