युरोपीय संघ तथा 9 अन्य देशों ने मध्य आर्कटिक महासागर (सीएओ) में 16 वर्षों तक मछली पकड़ने पर रोक लगाने का समझौता किया है। यह निर्णय वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को समझने और जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव को समझने में सहायता प्रदान करेगा, इससे पहले कि यहां मत्स्याखेट बड़े पैमाने पर होने लगे।
आर्कटिक सागर के 2.8 लाख वर्ग किलोमीटर के अंतर्राष्ट्रीय जल को संरक्षित करने का निर्णय 2 वर्षों में छ: बैठकों के बाद लिया गया है। इस संधि में आर्कटिक सागर के तटीय क्षेत्रों के अलावा अन्य देश जैसे चीन, जापान और दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं जो आर्कटिक में मछली पकड़ने में व्यावसायिक रुचि रखते हैं।
हालांकि अभी तक बर्फ की मोटी परत और अनिश्चित मत्स्य भंडार के चलतेे व्यावसायिक मत्स्याखेट जहाज़ सीएओ से दूर ही रहे हैं परन्तु अब गर्मियों में तेज़ी से बर्फ पिघलने के कारण यह क्षेत्र सुगम होता जा रहा है। सीएओ का 40 प्रतिशत हिस्सा खुल गया है जिसका अधिकतर भाग अलास्का और रूस के उत्तरी भाग चुकची पठार पर स्थित है।
चूंकि आजकल गर्मियों में समुद्र की बर्फ पतली हो जाती है और उत्तरी किनारों की तरफ बढ़ने लगती है, इसलिए अधिक धूप पानी के अंदर तक पहुंचती है जिसके कारण प्लवक के उत्पादन में वृद्धि होती है जो आर्कटिक खाद्य चक्र का आधार हैं। आर्कटिक कॉड इस प्लवक को खाती हैं। फिर इस कॉड का शिकार खाद्य द्याृंखला के उच्चतर जंतुओं, जैसे ध्रुवीय भालू, सील और मनुष्यों द्वारा किया जाता है। आर्कटिक महासागर के आसपास कुछ समुद्रों में वर्ष 2016 में प्राथमिक उत्पादन में भारी वृद्धि देखी गई, जो 2003-2015 के औसत से 35 प्रतिशत अधिक थी।
अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार ये गहरे समुद्र सभी के लिए खुले हैं। किसी संधि के अभाव में अनियंत्रित मत्स्याखेट के कारण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में काफी परेशानी हो सकती है। 1980 के दशक में जापान, चीन और अमेरिका द्वारा मछली पकड़ने के ट्रॉलर्स से क्षेत्र में लाखों की तादाद में पोलाक मछली पकड़ी गर्र्इं जिससे 1990 के दशक में पोलाक की संख्या में कमी आई जिसकी अभी तक पूर्ति नहीं की जा सकी है। इस समस्या को दूर करने के लिए वर्ष 2012 में, 2000 वैज्ञानिकों ने सीएओ संधि के लिए प्रयत्न किए और 2015 में आर्कटिक सागर के तटवर्ती देशों (कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे, रूस और अमेरिका) ने 2016 से आर्कटिक में से अपने मत्स्याखेट जहाज़ हटाने का फैसला किया। मगर इसके चलते यह क्षेत्र दुनिया भर के बड़े-बड़े जहाज़ों के लिए खुला छूट गया।
अंतत: अब जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, आइसलैंड और युरोपीय संघ ने मिलकर एक संधि पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत इस क्षेत्र में मत्स्याखेट पर प्रतिबंध रहेगा और वैज्ञानिक अनुसंधान की परियोजनाएं भी शुरू की कई जाएंगी। इनमें इलाके की प्रजातियों की गणना एक महत्वपूर्ण काम होगा। (स्रोत फीचर्स)