नवनीत कुमार गुप्ता
धरती की रफ्तार से तालमेल बिठाए रखने के लिए दिल्ली स्थित सीएसआईआर की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला में भारत की आणविक घड़ी को पल भर के लिए रुकना पड़ा। नए साल की शुरुआत से ठीक पहले यानी रात ग्यारह बजकर उनसठ मिनट उनसठ सेकंड पर लीप सेकंड जोड़ने के लिए आणविक घड़ी एक सेकंड के लिए रोक दी गई। धरती के घूर्णन से तालमेल बिठाने के लिए रविवार की सुबह पांच बजकर उनतीस मिनट उनसठ सेकंड पर लीप सेकंड जोड़ा गया।
2017 में एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ने का मकसद धरती के घूर्णन से तालमेल रखने के अलावा रात और दिन के आधिकारिक समय को भी सही बनाए रखना है। एक अतिरिक्त सेकंड का जुड़ाव एक दिलचस्प वैज्ञानिक अवधारणा है। दरअसल अपने अक्ष पर धरती का घूर्णन एक समान नहीं है। विभिन्न कारणों से कभी इसकी गति तेज़ हो जाती है, तो कभी धीमी। इन कारणों में भूकम्प और समुद्री लहरों पर चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव भी शामिल है। नतीजा यह निकलता है कि औसत सौर समय का आणविक समय या वैश्विक समय के साथ तालमेल लड़खड़ा जाता है। लिहाज़ा जब औसत सौर समय और वैश्विक समय के बीच फर्क 0.9 सेकंड तक पहुंच जाता है तो आणविक घड़ियों के ज़रिए वैश्विक समय में लीप सेकंड के नाम से एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ दिया जाता है।
सटीक वक्त बताने के लिए लीप सेकंड पूरी दुनिया की घड़ियों में जोड़ा जाता है। दुनिया भर के कंप्यूटरों में लीप सेकंड 1972 से जोड़े जा रहे हैं और इस बार 27वीं बार लीप सेकंड जोड़ा गया है। एक अतिरिक्त सेकंड के जुड़ने से हमारी रोज़मर्र्रा की ज़िन्दगी पर तो फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उपग्रह संचालन, अंतरिक्ष विज्ञान और संचार जैसे क्षेत्रों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है, जहां हर कार्रवाई में बिलकुल सटीक वक्त की ज़रूरत पड़ती है। भारतीय घड़ियों में लीप सेकंड जोड़ने का काम सीएसआईआर की राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला ने किया, जहां विश्व की 300 आणविक घड़ियों में से पांच मौजूद हैं। आणविक घड़ियां सबसे सटीक वक्त बताने का ज़रिया है, जिनका संचालन सीज़ियम या अमोनिया के परमाणु कंपन से होता है। इनकी सटीकता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनसे 10 करोड़ साल में सिर्फ एक सेकंड की गलती होती है। (स्रोत फीचर्स)