सुशील जोशी
काया बदलते कीट - अंडे से लार्वा निकला, कुछ समय बाद एक शंखी में बदल गया, और फिर बाहरी आवरण फटा और अपने पंखों को झाड़ती एक तितली निकल आई। जीव-विज्ञान में इस प्रक्रिया को कायांतरण कहते हैं। यकायक होने वाले इन परिवर्तनों के दौरान एक जीव पूरी तरह नष्ट हो जाता है और बनने वाला जीव उससे बिल्कुल जुदा होता है, एकदम फर्क।
कायांतरण तो सब लोग जानते हैं। यह कई जन्तुओं के जीवन चक्र में होने वाली एक अनोखी प्रक्रिया है। कीट वर्ग के जंतुओं में तो यह आमतौर पर देखी जाती है। साथ ही मेंढक आदि जंतुओं में भी इस प्रक्रिया के दर्शन होते हैं।
कोसे का ककूनः लार्वा ने चमकीले बारीक तार बुन कर अपने चारों ओर खोल बना लिया है। इसी ककून को उबालकर इन तारों से रेशम का धागा बनता है। यही कोसा है - जिससे बने कपड़े काफी मंहगे होते हैं।
जिन लोगों ने मक्खी, मच्छर या तितली वगैरह के जीवन-चक्र का अध्ययन किया है वे अवश्य ही इससे चमत्कृत हुए होंगे। मुझे तो यह अत्यन्त चमत्कारिक या शायद जादुई लगता है - मक्खी अण्डे देती है, उनमें से मक्खी नहीं निकलती बल्कि इल्ली निकलती है। इल्ली इधर-उधर मंडराती रहती है। फिर अचानक वह सुस्त पड़ने लगती है और उसके बाद एक खोल में बंद हो जाती है। इसे हम शंखी कहते हैं। एक-दो दिन बाद इस शंखी की खोल को फोड़कर इसमें से निकल आती है एकमक्खी।
इसी प्रकार से तितली के अण्डे में से भी इल्ली निकलती है, और उससे शंखी बनती है, और शंखी से तितली।
मूलतः कायांतरण कीट वर्ग के जंतुओं की ही विशेषता लगती है। इसलिए मैं यहां अपनी बात को इसी वर्ग तक सीमित रखता हूं। एक और बात स्पष्ट कर देना लाज़मी समझता हूं। कायांतरण की यह प्रक्रिया हालांकि मेरी दिलचस्पी का विषय रही है मगर मैंने इसके बारे में विस्तार से हाल ही में पढ़ा है और वही प्रस्तुत कर रहा हूं। इसे आप एक शुरुआती टटोलन के रूप में ही लें। हो सकता है आप इसमें कुछ कुछ जोड़ना चाहें। यदि ऐसा होगा तो यह बातचीत समृद्ध होगी।
परिवर्तन हुआ यकायक
सबसे पहला सवाल आता है कि कायांतरण कहते किसे हैं। सभी जंतुओं में परिवर्धन (Development) की प्रक्रिया तो होती है। फिर कायांतरण को अलग से क्यों देखा जाए? जहां तक मैं समझ पाया हूं कायांतरण परिवर्धन की वह प्रक्रिया है जिसमें निरंतरता न हो। यकायक होने वाले परिवर्धन को कायांतरण कह सकते हैं। मसलन किसी बकरी को लीजिए। पैदा होने के बाद उसमें परिवर्धन तो होता है मगर ऐसा नहीं होता कि किसी अवस्था के बाद आप उसे पहचान ही न पाएं। दूसरी ओर मक्खी की इल्ली अवस्था, पूर्ण वयस्क मक्खी से इतनी अलग होती है कि कई लोग इन्हें दो अलग-अलग जंतु मानने की भूल कर बैठते हैं।
तो कायांतरण को हम यकायक होने वाला 'निरंतरता विहीन परिवर्धन' कह सकते हैं। इसे परिभाषा के रूप में मत लीजिए। यह एक समझ है और आगे हम देखेंगे कि इस समझ में कायापलट की जरूरत पड़ेगी।
दूसरी बात है कि कायांतरण होता क्यों है? जहां तक मुझे समझ में आया है, इस सवाल का जवाब यही है कि हम नहीं जानते कि कायांतरण क्यों होता है। लेकिन हम काफी विस्तार में जानते हैं कि यह प्रक्रिया कैसे होती है। हम यह भी जानते हैं कि इल्ली व वयस्क में कितने स्पष्ट अंतर होते हैं। इल्ली और वयस्क मक्खी की रचना में तो अंतर होते ही हैं, साथ में उनके रहन-सहन, भोजन आदि में भी व्यापक अंतर होते हैं। अतः हम इसी सवाल पर चर्चा करेंगे कि कायांतरण कैसे होता है। हां, यह बात हम ज़रूर कर सकते हैं कि कायांतरण की प्रक्रिया के कारण कीटों को किस तरह के लाभ प्राप्त होते हैं।
उदाहरण के लिए मच्छर की इल्ली (लार्वा) को देखिए। वह पानी में रहता है, प्लांक्टन खाता है। दूसरी ओर मच्छर धरती पर रहता है, सड़ी-गली चीजों का रस चूसता है (और कभी-कभी हमारा खून पीता है)। यानी एक ही जीव द्वारा दो सर्वथा अलग-अलग प्राकृतवासों और दो किस्म के भोजन का उपयोग कर पाने की वजह से इन जीवों की उत्तरजीविता (Survival) पर अनुकूल परिणाम पड़ता है। परंतु कुछ लोग इसका अर्थ यह लगा लेते हैं कि कायांतरण का प्रादुर्भाव इसी कारण से हुआ है। यह तर्क अनुचित है। कायांतरण की शुरुआत पता नहीं किस कारण से, किन परिस्थितियों में हुई थी।
कंकाल के ऊपर कंकाल
कीट वर्ग के जंतुओं में कई अनूठी चीजें होती हैं। उनमें से एक अनूठी चीज़ है बाह्य कंकाल (एक्सो स्केलेटन)। हमारा कंकाल शरीर के अंदर होता है। यह कंकाल एक कठोर ढांचा बनाता है जिसके आसपास शरीर लिपटा होता है। मगर कीटों में यह कंकाल शरीर के बाहर होता है। यह भी कठोर होता है। इसमें लचीलापन नहीं होता। पूरा शरीर इसके अंदर कैद होता है। इसलिए एक मर्तबा कंकाल बन जाने के बाद कीटों की वृद्धि रुक जाती है। यदि वृद्धि होती है तो इस कंकाल को हटाकर नया (बड़ा) कंकाल बनाना होगा। कीटों में यह क्रिया होती रहती है। टिड्डा जब पैदा होता है तो वयस्क के समान ही दिखता है मगर छोटा होता है। फिर कुछ समय बाद वह यह चोला बदलता है, यानी अपने बाह्य कंकाल को उतार फेंकता है तथा एक नया कंकाल बना लेता है जो पहले से बड़ा होता है। इसलिए अगर आप टिड्डों का लगातार अवलोकन कर पाएं तो भी वे आपको धीर-धीरे बढ़ते हुए नहीं दिखेंगे - वे हर बार यकायक बड़े हो जाएंगे। चोला बदलने की इस क्रिया को मोल्टिंग कहते हैं।
आपका सवाल होगा कि मूल बाह्य कंकाल के अंदर बनने वाला नया कंकाल पहले से बड़ा कैसे हो सकता है। वास्तव में होता यह है कि अंदर का कंकाल नरम व लचीला होता है। जो अंग बड़े हो गए हैं वे अंदर दबे-कुचले पड़े होते हैं। अब कीट हवा खींचकर अपने आपको फुला लेता है। चूंकि नया कंकाल लचीला है, इसलिए वह फूल कर बड़ा हो जाता है। इस प्रक्रिया में पुराना कंकाल फेंक दिया जाता है। जैसे ही नया कंकाल हवा के संपर्क में आता है, वह कठोर हो जाता है। अब इसे और नहीं फुलाया जा सकता।
तो बाह्य कंकाल की उपस्थिति के चलते यकायक परिवर्तन एक आवश्यकता बन जाता है। दरअसल मोल्टिंग और कायांतरण आपस में जुड़ी हुई दो प्रक्रियाएं हैं। जिन कीटों में शंखी नामक सुस्त अवस्था होती है उनमें इसे पूर्ण कायांतरण कहते हैं। यदि जीवन-चक्र में शंखी न हो, इल्ली से सीधे कीट बने तो इसे अपूर्ण कायांतरण कहते हैं।
कायांतरण के कदम
अब देखते हैं कि कायांतरण होता कैसे है। हम पूर्ण कायांतरण का उदाहरण लेकर बात कर रहे हैं। अण्डे से इल्ली पैदा होती है। आमतौर पर इल्ली बेलनाकार होती है। शरीर छल्लों में बंटा होता है। कुछ इल्लियों में स्पर्शक
अपूर्ण कायांतरण: अंडे से निकलने के बाद अगर कीट अपने वयस्क की तरह ही दिखता है, और प्यूपा की अवस्था से नहीं गुज़रता तो इस कायांतरण को अपूर्ण मानते हैं; जैसे कि टिड्डे में।
होते हैं, तो कुछ में नहीं। कुछ इल्लियों में टांगे होती हैं तो कुछ में नहीं। आंखें सरल होती हैं, वयस्क की तरह संयुक्त नहीं होती। शरीर पर कठोर आवरण (बाह्य कंकाल) होता है।
इल्लियों का एक ही काम होता है - खाना; वे खूब खाती हैं। लगातार खाती रहती हैं। तितलियों की इल्लियां (कैटरपिलर) पत्तियां खाती हैं, मक्खियों की इल्लियां सड़े गले पदार्थ खाती हैं।
आपने शायद ध्यान दिया होगा कि मक्खी की इल्ली अण्डे में से निकलने के समय काफी छोटी होती है। खा-खाकर यह बड़ी हो जाती है। ऊपर मैंने बताया था कि बाहृयकंकाल के कारण इल्ली की वृद्धि की भी सीमा होती है। अतः यदि इल्ली बड़ी हो रही है तो ज़रूर उसमें मोल्टिंग की क्रिया होती होगी। दरअसल मक्खी और मच्छर में शंखी बनने से पूर्व इल्ली एक बार मोल्टिंग करती है। इन अवस्थाओं को इल्ली प्रथम और इल्ली द्वितीय कहा जाता है। तितिलियों में तो एक-के-बाद-एक चार इल्ली अवस्थाएं होती हैं। किंतु इनकी बुनियादी रचना में कोई फर्क नहीं होता, सिर्फ आकार वे वज़न में अंतर होता है।
कुछ कीटों (खास तौर से परजीवी कीटों) में इल्ली की विभिन्न अवस्थाएं एक-दूसरे से काफी भिन्न होती हैं।
एक स्थिति ऐसी आती है जब इल्ली सुस्त पड़ने लगती है। धीरे-धीरे वह बिल्कुल निष्क्रिय होकर प्यूपा में बदल जाती है। जीव वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि प्यूपा वास्तव में इल्ली और वयस्क के बीच कड़ी के समान है। शंखी चूंकि प्रायः पूरी तरह निष्क्रिय होती है इसलिए इस पर काफी खतरा होता है कि कोई शिकारी इसे खा जाएगा। किंतु लगभग सभी कीटों में शंखी को खुला नहीं छोड़ा जाता। इल्ली शंखी में तब्दील होने से पूर्व अपने इर्द-गिर्द एक खोल (आवरण) बना लेती है। यह खोल (प्यूपाघर या प्यूपेरियम) कई तरह का होता है।
इस प्यूपाघर के अंदर कायांतरण का चमत्कार शुरू होता है। इसके चलते अंदर ही अंदर प्यूपा इतने रूप बदलता है कि उसे लार्वा-प्यूपा और प्यूपा वयस्क जैसी अवस्थाओं के नाम दिए गए हैं।
एक जीव, दूसरा जीव
आमतौर पर कायांतरण को लेकर ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि इल्ली के कौन से अंग से विकसित होकर वयस्क का कौन-सा अंग बनेगा। दरअसल यह सवाल ही भ्रामक है - खासकर कीट कायांतरण के संदर्भ में। आपको यह जानकर शायद अचरज होगा कि एकाध अंग के अपवाद को छोड़ दें, तो कायतरण के दौरान पूरी इल्ली नष्ट
पूर्ण कायांतरण: यदि अंडे से निकला जीव पूर्ण वयस्क से बिल्कुल भिन्न दिखता है और यदि यह लार्वा, प्यूपा की अवस्था से गुजरता है तो इस कायांतरण को पूर्ण कायांतरण कहा जाता है।
इन दो पृष्ठों पर दिए गए चित्र मोनार्क तितली के विकास की अलग-अलग अवस्थाओं के हैं जिसमें पूर्ण कायांतरण होता है: 1. अंडा 2. इस अंडे से निकला छोटा-सा लार्वा जो मोन्टिंग की प्रक्रिया से गुजरता हुआ बड़ा होता जाता है 3. वयस्क लार्वा यह वयस्क लार्वा पौधे के किसी हिस्से में जुड़ जाता है और प्यूपा बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है ... (अगले पेज पर)
हो जाती है और उसके मलबे का उपयोग वयस्क शरीर के निर्माण में किया जाता है। हम प्रायः सोचते हैं। कि कायांतरण के दौरान इल्ली के शरीर पर कुछ नए अंग बनते हैं। सच्चाई यह है कि कायांतरण के दौरान लगभग सारे अंग नए बनते हैं। एक अर्थ में इल्ली और वयस्क दो अलग-अलग जीव हैं।
ऊपर से दिखने वाले अंतरों पर ध्यान दीजिए। कई कीटों की वयस्क अवस्था में पंख होते हैं जबकि इल्ली में पंख नहीं होते। इल्लियों और वयस्कों में मुख्य अंगों में बुनियादी अंतर होते हैं। इल्लियों की आखें सरल होती हैं. वयस्क की आंखें संयुक्त आखें होती हैं। इल्लियों और वयस्कों में टांगों की संख्या तथा स्थान के अंतर होते हैं। रंग में तो अंतर होते ही हैं।
अब जरा आंतरिक रचना पर गौर करें। इल्ली और वयस्क के बीच मांस पेशियों में व्यापक अंतर होते हैं। चूंकि कायांतरण के बाद कीट के भोजन में बुनियादी परिवर्तन होते हैं इसलिए इल्ली और वयस्क कीट की आहार नाल में भी व्यापक अंतर नज़र आते हैं।
हां, श्वसन तंत्र में सिर्फ नई शाखाएं बनती हैं। परंतु मक्खी वर्ग में तो श्वसन तंत्र को भी पुनर्निर्माण होता है। इसी प्रकार से जलचर इल्ली से बनने वाले मच्छरों में श्वसन तंत्र में व्यापक बदलाव होते हैं। इसी प्रकार से रक्त परिवहन तंत्र में भी ज़्यादा बदलाव नहीं होते। किंतु तंत्रिका तंत्र का काफी हद तक पुनर्गठन होता है।
उपरोक्त संरचना-गत परिवर्तनों के अलावा जैव-रासायनिक परिवर्तन भी होते हैं। वयस्क जीवन के लिए नए एन्ज़ाइमों की, नए प्रोटीनों की जरूरत होती है जो इल्ली के लिए जरूरी नहीं थे। इनका निर्माण शुरू होता है। इनके अलावा अन्य रासायनिक परिवर्तन भी देखे गए हैं।
यहां हम इनमें से प्रत्येक परिवर्तन के विस्तार में तो नहीं जाएंगे, मगर यह तो साफ हो जाता है कि इल्ली की शरीर रचना तथा शरीर क्रिया वयस्क से बहुत भिन्न होती है। नई शरीर रचना बनाने के लिए कई तरह की प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।
1. इल्ली की कोई रचना वैसी की वैसी वयस्क में बनी रह सकती है,
5. इसमें लार्वा अपने चारों ओर एक खोल बना लेता है। प्यूपा की अवस्था में लार्वा का पूरी तरह रूपांतरण हो जाता है। 6. कई कीटों में प्यूपा की अवस्था के अंतिम समय में खोल पारदर्शी हो जाता है जिससे कीट के अंगों को बाहर से देखा जा सकता है जैसे इस चित्र में तितली के पंख दिखाई दे रहे हैं। 7. शंखी से बाहर निकली नई-नई तितली थोड़ी देर वहीं बैठी रहती है, अपने पंखों को खोलने के लिए। 8. इसके बाद उड़ जाती। है फूलों का मकरंद चूसने, समागम करने और ...
जैसे कि उदर की मांसपेशियां।
2. इल्ली की कुछ रचनाएं नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर कोई नई रचना नहीं बनती।
3. इल्ली की कुछ रचनाएं पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर नई रचनाएं बन जाती हैं।
4. इल्ली में अनुपस्थित हों, ऐसी नई रचनाओं का निर्माण होता है।
अब आपको स्पष्ट हो गया होगा कि कायांतरण सामान्य परिवर्धन नहीं है। ऐसा कहते हैं कि कायांतरण की प्रक्रिया के दरम्यान एक अवस्था ऐसी आती है जब वह जीव न तो इल्ली होता है, न वयस्क - वह तो अधिकतर मलबा होता है। खैर!
सवाल तो यह है कि ये नई रचनाएं बनने, पुरानी रचनाओं के नष्ट होने का काम होता कैसे है? कौन-सी कोशिकाएं नए सिरे से सक्रिय होकर नए अंग बनाती हैं; कौन-सी कोशिकाएं पुराने अंगों का सफाया करती हैं। और इस प्रक्रिया का नियंत्रण कैसे होता है?
दरअसल यहां एक बात को मोटे तौर पर समझ लेना होगा। सजीवों की अधिकांश शरीर रचना या अंग दरअसल त्वचा की सलवटें हैं। जैसे त्वचा को अंदर की ओर धंसाइए और धंसाते-धंसाते त्वचा को किसी अन्य स्थान से जोड़ दीजिए। बन गई आहार नाल। यह इस प्रक्रिया का सरलीकृत प्रस्तुतिकरण है। संक्षेप में कहें, तो सारा खेल त्वचा का है।
सवाल यह उठता है कि इल्ली की त्वचा में ऐसी क्या बात है कि एक समय तक वह एक तरह से सलवटें लेकर अंगों का एक समूह बनाती है और फिर समय आने पर नई तरह की सलवटों से नए अंग बनाती है।
बिन्दुओं में छुपा नया जीव
वास्तव में इल्ली की त्वचा पर शुरू से ही कुछ बिंदु होते हैं। इन्हें ‘इमैजिनल डिस्क' कहा जाता है। यह नाम ‘इमैगो' से बना है - इमैगो कीटों के वयस्क को कहा जाता है। ये इमैजिनल डिस्क (वयस्क बिंदु) इल्ली की शेष त्वचा से थोड़े अलग होते हैं। जब बाकी की त्वचा विभाजन करके बढ़ रही होती है तो ये वैसे ही पड़े रहते हैं। इल्ली के शरीर में जो हार्मोन या एन्ज़ाइम बनते हैं उनका असर भी वयस्क बिंदुओं की कोशिकाओं पर नहीं होता, या अलग ढंग से होता है। त्वचा के ये हिस्से बाह्य कंकाल से भी नहीं जुड़े होते। यानी इल्ली की वृद्धि व विकास इनसे स्वतंत्र होता रहता है। ये इमैजिनल डिस्क या वयस्क बिंदु ही वयस्क कीट का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया का नियंत्रण कैसे होता है, यह हम थोड़ी देर बाद देखते हैं।
इल्ली के विकास की किसी अवस्था पर एक मुकाम ऐसा आता है जब ये ‘वयस्क बिंदु' अचानक सक्रिय होने लगते हैं। यही अवस्था प्यूपा निर्माण की होती है। प्यूपा बनने का अर्थ है कि ‘वयस्क बिंदु' सक्रिय हो चुके हैं। तथा नए अंगों (खासकर पंखों) का निर्माण शुरू हो चुका है। जब इनके लिए जगह कम पड़ने लगती है तो इल्ली आखिरी बार मोल्टिंग करती है। इसके बाद तो उसका खात्मा ही होना है। अब शायद आप समझ गए होंगे कि प्यूपा निष्क्रिय क्यों होता है। सभी ‘वयस्क बिंदु' सक्रिय होकर अपना काम करने लगते हैं। शरीर में ऐसे एन्ज़ाइम बनने लगते हैं जो इल्ली की मांसपेशियों का तथा अन्य ऊतकों का विघटन शुरू कर देते हैं। विघटन से बने पदार्थों को भक्षी कोशिकाएं चट कर जाती हैं। काफी पदार्थों का उपयोग वयस्क के शरीर को बनाने में हो जाता है। उत्सर्जन योग्य पदार्थों को शरीर में ही जमा करके रखा जाता है।
जब वयस्क का निर्माण पूरा हो जाता है तो उसके ऊपर एक नई त्वचा तथा लचीला कंकाल भी बन जाता है। यह भी ‘इमैजिनल डिस्क' से होता है। सारे नए अंग सिकुड़ी हुई अवस्था में इस लचीले कंकाल के अंदर हैं। प्यूपा की त्वचा में ऐसे स्थान होते हैं जो कमज़ोर होते हैं। जब वयस्क कीट अपने आपको फुलाता है तो प्यूपा की त्वचा इन कमज़ोर स्थानों से टूट जाती है। और कीट बाहर आ जाता है। अभी उसे प्यूपाघर से बाहर आना शेष है। कीट अपने आपको फुलाता है और पंखों में रक्त प्रवाह बढ़ाता है ताकि वे फैल जाएं। इस तरह वयस्क कीट प्यूपाघर को तोड़कर बाहर आ जाता है। हवा के संपर्क में आकर कीट का बाह्य आवरण कड़ा हो जाता है। अब यह जीवन भर और बड़ा नहीं होगा। कीट प्रायः जिस साइज़ में जन्म लेते हैं उसी साइज में मरते हैं।
उपरोक्त प्रक्रिया से एक मजेदार बात पता चलती है। वह बात यह है कि अण्डे से जब इल्ली बनती है तो उसकी कोशिकाओं में इल्ली बनने तथा वयस्क बनने की पूरी अनुवांशिक सूचना होती है। यह सूचना वयस्क बिंदुओं (इमैजिनल डिस्क) की कोशिकाओं में भी होती है। जीव-विज्ञान की तकनीकी भाषा में हम कहते हैं कि सभी कोशिकाओं में एक ही डी. एन. ए. मौजूद होता है। मगर जहां शेष सारी कोशिकाएं इल्ली निर्माण करती हैं वहीं ‘वयस्क बिंदू' कोशिकाएं इनसे अलग थलग उचित मौके का इंतजार करती रहती हैं। अर्थात ये वास्तव में वयस्क कीट का प्रतिनिधित्व करती हैं। यानी ‘वयस्क बिंदु' इल्ली के शरीर में वयस्क टापू हैं। हम कहेंगे कि इनका विभेदन हो चुका है अब सिर्फ इस विभेदित सम्भावना को विस्तार देना बाकी है। कौन बताता है इन्हें कि अब ‘उचित अवसर' आ गया है।
काफी ऊटपटांग प्रयोगों के बाद जीव वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कीटों के शरीर में पाई जाने वाली एक ग्रंथि ‘कॉर्पस एलेटम' होती है। यह ग्रंथि एक हॉर्मोन या हॉर्मोन समूह का स्त्राव करती है। इसे 'शैशव हॉर्मोन' या 'जुवेनाइल हॉर्मोन' का नाम दिया गया है। इस हॉर्मोन की मात्रा से कायांतरण का नियंत्रण होता है। वैसे यह हॉर्मोन कई अन्य बातों का भी नियंत्रण करता है।
जब तक कॉर्पस एलेटमें भरपूर मात्रा में ‘शैशवे हॉर्मोन' का स्त्राव करती रहती है, तब तक इल्ली अवस्था ही बनी रहती है। मोल्टिंग तो अपनी रफ्तार से चलता रहता है मगर इल्ली, प्यूपा नहीं बनती। अंतिम इल्ली अवस्था के दौरान कॉपर्स एलेटम को मस्तिष्क से संदेश प्राप्त होता है और इसके परिणामस्वरूप कॉर्पस एलेटम अपना स्त्राव कम कर देती है। जब शरीर में हॉर्मोन कम मात्रा में होता है तो प्यूपा बनता है। प्यूपा में यह ग्रंथि अपना स्त्राव बंद कर देती है, तब वयस्क बनता है। (यहां यह कह देना जरूरी है कि वयस्क कीटों में एक मर्तबा फिर कॉर्पस एलेटम सक्रिय होती है मगर यह ‘शैशव हॉर्मोन' नहीं बनाती।)
शैशव हॉर्मोन की भूमिका काफी निर्णायक है। जब तक यह एक निश्चित मात्रा से ज्यादा उपस्थित है तब तक इल्ली अवस्था ही बनी रहती है। यदि किसी इल्ली को लगातार शैशव हॉर्मोन की खुराक दी जाए तो वह कई मर्तबा मोल्टिंग के बावजूद वयस्क में परिवर्तित नहीं होती। हां, उसकी साइज़ ज़रूर बढ़ती जाती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि शैशव हॉर्मोन की संरचना सभी कीटों में एक जैसी है। एक प्रजाति की इल्ली का शैशव हॉर्मोन दूसरी प्रजाति की इल्ली को दिया जाए तो असरकारक होता है। यानी वह इल्ली, इल्ली अवस्था में ही बनी रहती है।
सबसे रोचक बात यह है कि यदि वयस्क कीट के शरीर में ‘शैशव कॉर्पस एलेटम' प्रत्यारोपित कर दी जाए और उसे मोल्टिंग करने पर मजबूर किया जाए तो उसमें कुछ इल्लीनुमा लक्षण फिर से उभर आते हैं। यानी जिस प्रकार से इल्ली में एक वयस्क कीट मौजूद था, उसी प्रकार से वयस्क कीट में एक इल्ली मौजूद रहती है। अभी तो कायांतरण के बारे में और बहुत कुछ है। मगर एक-एक बात के विस्तार में जाया नहीं जा सकता। आपके दिमाग में कई सवाल जरूर उठे होंगे। कृपया लिखिए, ताकि बातचीत आगे बढ़े।
सुशील जोशीः स्वतंत्र रूप से विज्ञान एवं पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लेखन और अनुवाद के काम में सक्रिय; एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम एवं विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी पर केंद्रित फीचर सर्विस ‘स्रोत' से संबद्ध।