एस. बी. वेलणकर
पिछले दो अंकों में हमने गुरुत्वाकर्षण और कूलम्ब के बल के बारे में पढ़ा। लेख की इस अंतिम कड़ी में कूलम्ब के बल की बात पूरी करते हुए दो अन्य बलों और उनके आपसी रिश्ते की चर्चा है।
हमें मालूम है कि सामान्यतः किसी भी परमाणु में धन आवेश और ऋण आवेश बराबर मात्रा में होता है। यानी कि परमाणु उदासीन है। हमने यह भी देखा कि इसीलिए उनमें असंख्य इलेक्ट्रॉन व प्रोटोन होते हुए भी हमारे आसपास की अधिकतर वस्तुएं उदासीन होती हैं।
लेकिन अगर दो परमाणुओं को पास-पास लाएं तो उनके बीच में क्या होता है? कई परमाणुओं में धन और ऋण आवेशों के केन्द्र एक जगह नहीं होते - थोड़ा अलग-अलग हटकर होते हैं। यानी कि समस्त धन आवेशों का परिणामी बल जिस बिंदु पर होता है, समस्त ऋण आवेशों का परिणामी बल ठीक उसी बिंदु पर नहीं होता। इसे डायपोल यानी द्विध्रुव या युग्मधुव कहते हैं। इस वजह से ये परमाणु ऐसे व्यवहार करते हैं मानो कि उनका एक छोर ऋण आवेशित है और दूसरा धन आवेशित।
अगर परमाणु में युग्मध्रुव न भी हो तो भी जब दो परमाणुओं को पास पास लाएं तो इनके आवेश खिसक जाते हैं और इनमें डायपोल उत्पन्न हो जाता है।
इस वजह से दो परमाणुओं को पास लाने पर उनके बीच बल लगता है। चूंकि प्रत्येक परमाणु एक युग्मध्रुव है इसलिए यह बल दो युग्म के बीच लगने वाला बल है। इसे ही आण्विक बल या मोलेक्यूलर फोर्स कहते हैं। यह आण्विक बल अजीब है - बहुत दूर से देखने पर यह है ही नहीं, दूरी कम हो तो आकर्षण का बल लगता है। - मगर और पास आओ तो विकर्षण का बल लगने लगता है! यानी कि बहुत पास आने पर आण्विक बल, कूलम्ब के बल से एकदम फर्क व्यवहार करने लगता है।
नाभिक के अंदर
यह थी कूलम्ब के बल की और उसकी वजह से पैदा होने वाले आण्विक बल की बात जिसकी सहायता से हम धरातल की घटनाओं को समझ सकते हैं। इसके अलावा पिछले अंकों में हमने वृहद पैमाने पर प्रभावित करने वाले गुरुत्वाकर्षण बल की चर्चा की। क्या प्रकृति में पाया जाने वाला और भी कोई बल है? क्या पृथ्वी पर अब और कोई भाग नहीं है जिसे हमें समझना है? आइए अणु के और भीतर चलें, परमाणु के और भीतर, एकदम नाभिक के अन्दर पहुंच जाते हैं।
नाभिक के अन्दर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन, दो जाति के कण पाए जाते हैं। यहां पहुंचकर हमे एक अजीबोगरीब बात देखने को मिलती है - यहां दो प्रोटॉन एक साथ रह रहे हैं। अभी तक तो हमने यही पढ़ा था कि दो समान आवेश के बीच विकर्षण होता है, और दूरी कम हो तो विकर्षण और भी बढ़ेगा। तो फिर इतनी कम दूरी पर ये दो प्रोटॉन एक साथ कैसे रहते हैं? एक परमाणु में चले जाओ तो दूरी 10-10 मीटर है और नाभिक में पहुंच जाओ तो दूरियां और कम हो जाती हैं - सिर्फ 10-14 मीटर। इतनी कम दूरी पर दो सम आवेश पास-पास कैसे? दूर भाग नहीं जाएंगे वे? ज़रूर कोई चीज़ पकड़े रखती होगी इन्हें? एक और बल है जिसकी कारस्तानी है यह, और यह बहुत ही तगड़ा बल है।
क्या होती है रासायनिक ऊर्जा
क्या अब हम रासायनिक ऊर्जा यानी कि रासायनिक क्रियाओं के दौरान पैदा होने वाली या अवशोषित ऊर्जा को भी परमाणुओं के बीच लगने वाले बल के संदर्भ में देख सकते हैं?
यदि दो परमाणुओं के बीच आकर्षण का बल है और यदि ऐसी स्थिति में एक परमाणु को दूसरे परमाणु से दूर करना हो तो क्या करना होगा? स्वाभाविक है कि परमाणु को अगर हम दूर ले जाना चाहें तो ऊर्जा देनी पड़ेगी। यह ऊर्जा उन्हीं परमाणुओं में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संग्रहित हो जाएगी।
इसका अर्थ यही हुआ न कि अगर किसी रासायनिक क्रिया के दौरान नए पदार्थों में परमाणुओं में दूरी बढ़ जाती है तो स्वाभाविक है कि उस रासायनिक प्रक्रिया में हमें ऊर्जा देनी पड़ेगी।
और मानो रासायनिक क्रिया ऐसी थी कि बनने वाले नए पदार्थों में संरचना इस तरह बदली कि परमाणु पास-पास आ गए तो उनकी स्थितिज ऊर्जा कम हो जाएगी। यानी कि उस रासायनिक क्रिया में हमें ऊर्जा प्राप्त होगी, स्थितिज ऊर्जा पुनः गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाएगी।
विभिन्न पदार्थ अणुओं और परमाणुओं से बने हुए होते हैं। किसी भी रासायनिक क्रिया से उनकी संरचना में परिवर्तन होता है। अगर कोई रासायनिक क्रिया ऐसी है कि उसमें परमाणुओं के बीच दूरी बढ़ जाती है यानी स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है, तो ऐसी रासायनिक क्रिया में हमें ऊष्मा देनी पड़ती है। अगर रासायनिक क्रिया ऐसी है कि उसमें परमाणु पास-पास आ रहे हैं तो स्पष्ट है कि उस क्रिया में ऊर्जा बाहर निकलेगी।
अर्थात किसी रासायनिक क्रिया में भी पदार्थ की स्थितिज ऊर्जा या गतिज ऊर्जा में ही परिवर्तन हो रहे हैं, यह और बात है कि आप इसे रासायनिक ऊर्जा का नाम दे दें।
कूलम्ब बल के सामने हमने आपसे कहा था कि गुरुत्वाकर्षण बल कहीं नहीं लगता। परन्तु अब जिस बल की बात करने जा रहे हैं उसके सामने कूलम्ब का बल भी कुछ नहीं लगता। इस बल को स्ट्रोंग बल कहते हैं।
हमने इस लेख की शुरुआत में देखा था कि आवेशों के बीच कूलम्ब का बल होता है, मगर जब अणुओं के बीच लग रहे बल की बात होती है। तो सीधे-सीधे कूलम्ब का बल नहीं काम करता परन्तु डायपोल यानी युग्मध्रुव के कारण आण्विक बल काम करता है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि परमाणुओं के बाहर छनके आने वाला शेष बल काम कर रहा है।
दो प्रोटॉन और दो न्यूट्रॉन के बीच में जो बल लगता है वह भी ऐसा ही बल है। प्रोटॉन और न्युट्रॉन भी कुछ कणों से मिलकर बने हैं जिन्हें क्वार्क कहते हैं। इन क्वार्क कणों के बीच ही वह बल लगता है जिसे हम स्ट्रोंग बल कहते हैं। यह बल प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन के बीच लगने वाले आवेश के बल से काफी अधिक है, इसीलिए उसका नाम स्ट्रोंग बल रखा गया है। इसकी वजह से ही प्रोटॉन और प्रोटॉन एक दूसरे को खींचते हैं, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे को खींचते हैं, न्यूट्रॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे को खींचते हैं। ये सब जिन कणों से बने हैं उन के बीच लगने वाला बल है यह, यानी क्वार्क के बीच लगने वाला बल। इस बल की एक और खास बात है कि दूरी बढ़ने पर यह कम नहीं होता, बल्कि जितनी दूरी बढ़े उतना बल बढ़ता ही जाता है! दो आवेशों के बीच दूरी बढ़ती है। तो कूलम्ब का बल घटता है मगर यहां तो उसका एकदम उल्टा है।
अब तक तो हमने यही देखा था कि पिन्डों के बीच में दूरी बढ़े तो बल घटता है - चाहे वह गुरुत्वाकर्षण बल हो या कूलम्ब का बल। यह तो बिलकुल उल्टी बात हुई न, जितना दूर जाओ आकर्षण का बल उतना बढ़ता जाए। पक्का नियम मालूम नहीं है क्योंकि क्वार्क को देखना मुश्किल है। जरा सोचिए ऐसा क्यों? अगर क्वार्क को देखना है तो प्रोटॉन, न्यूट्रॉन या इलेक्ट्रॉन में से क्वार्क को खींचकर बाहर लेकर आना होगा। इलेक्ट्रॉन को तो बाहर निकालकर देख सकते हैं क्योंकि नाभिक से जितना दूर ले जाएंगे आकर्षण कम होता जाता है। मगर यहां तो क्वार्क को खींचकर जितना दूर लेकर जाएंगे, उसको और दूर लेकर जाने के लिए और भी ज्यादा ताकत लगानी पड़ेगी।
इसीलिए फ्री या स्वतंत्र क्वार्क कभी देखने में नहीं आते।
नाभिकीय बल
परमाणु के नाभिक के अंदर तो क्वार्क एक दूसरे को संतुलित किए हुए हैं, लेकिन जिस तरह परमाणुओं में से कुछ कूलम्ब का बल बाहर आ गया और आणविक बल बना, वैसे यहां भी जो बल बाहर आ जाता है उसे न्यूक्लियर बल कहते हैं। जैसा आणविक बल है बिल्कुल वैसा ही है यह नाभिकीय बल भी, यानी कि बहुत दूर चले जाओ तो बल नहीं है, पास आओ तो आकर्षण का बल है, एकदम पास आ जाओ तो प्रतिकर्षण का बल है।
आणविक बल 10-9 मीटर की दूरी पर काम करते हैं, यानी उसकी रेंज 10-7 सेमी होती है। परन्तु न्यूक्लियर बल की रेंज और भी कम होती है। यह 10-13 सेमी की दूरी पर काम करते हैं। इस से ज्यादा दूर चले जाओ तो बल खत्म। परन्तु यह नाभिकीय बल है बड़ा ताकतवर बल। इसलिए हम एक प्रोटॉन को दूसरे प्रोटॉन से दूर नहीं ले जा सकते, एक न्यूट्रॉन को दूर नहीं ले जा सकते क्योंकि आकर्षण का बल है। अगर दूर ले जाना हो तो बहुत ही ज्यादा कार्य करना पड़ेगा। इसलिए अगर एक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को हम अलग कर दें तो उसमें बहुत सारी स्थितिज ऊर्जा आ जाती है, और वह स्थितिज ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि उसके कारण उनके द्रव्यमान (संहति या mas) के माप में अन्तर आ जाता है।
कोई भी वस्तु की आन्तरिक ऊर्जा उसके द्रव्यमान के माप में शामिल होती है यानी अगर आन्तरिक ऊर्जा बढ़ा दो तो उसका द्रव्यमान भी बढ़ जाता है।
अगर गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत वस्तु को ऊपर की ओर ले जाएं तो उसकी स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है, तो सिद्धांततः उसका द्रव्यमान भी बढ़ा। यह बदलाव दिखता नहीं है क्योंकि उसमें वास्तविक द्रव्यमान में परिवर्तन बहुत ही कम आया है। अगर आप उसको E ऊर्जा प्रदान करेंगे तो उसके द्रव्यमान में बढ़ोतरी E/c2 होगी। यहां पर c प्रकाश का वेग है, 3x108 मीटर/सेकंड। हम गुरुत्वाकर्षण के विपरीत वस्तु को ले जाने के लिए कितनी भी ऊर्जा दें मगर द्रव्यमान में परिवर्तन 0.000...... ग्राम ही आएगा। यह बदलाव इतना कम है कि हम यह कभी नहीं सोचते कि वस्तु को ऊपर उठाने से उसका द्रव्यमान बढ़ गया है।
लेकिन जब हम प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की बात करेंगे तो उसमें इतनी अधिक ऊर्जा देनी पड़ेगी कि वहां द्रव्यमान में अन्तर साफ दिखाई पड़ता है, उसके परिमाण यानी मात्रा में फर्क दिखाई देता है।
मैंने आपसे रासायनिक ऊर्जा के बारे में कहा था कि अणु की संरचना बदल दी, परमाणुओं के बीच की दूरी बदल दी तो उसकी आंतरिक ऊर्जा बदलेगी। वैसे ही अगर नाभिक की संरचना बदल दो - अगर नए नाभिक के अन्दर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन करीब करीब हैं तो स्थितिज ऊर्जा कम होगी और वह ऊर्जा बाहर आएगी।
यही होता है एटम व हाइड्रोजन बम में। जब यूरेनियम का विघटन होता है या हाइड्रोजन का संलयन होता है तो दोनों में यही क्रिया होती है - दोनों में दूर वाले प्रोटॉन और न्यूट्रॉन पास-पास आते हैं और हमें बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध होती है। नाभिकीय क्रिया में काम कर रहे बल बहुत शक्तिशाली होने से ऐसी क्रिया से हमें बहुत ज्यादा ऊर्जा प्राप्त होती है। ये नाभिक के अंदर मौजूद स्ट्रोंग फोर्स की वजह से ही संभव होता है।
इस प्रकार से हम नाभिक तक जाकर प्रकृति को समझ सकते हैं। परन्तु इसे समझने में हमें किस बात की आवश्यकता पड़ी? बलों की क्योंकि बिना बलों के यह समझना मुश्किल है। कि ऊर्जा कहां-कहां कैसे जाती है।
द्रव्यमान और ऊर्जा का रिश्ता
अब मैं आपको एक और बात बताता हूं कि द्रव्यमान और ऊर्जा जो है वे अलग-अलग चीजें नहीं हैं। ऊर्जा को आपने विद्युत के रूप में देखा, ऊष्मा के रूप में देखा, या गति के रूप में देखा.या स्थिति के रूप में देखा। ऊर्जा का एक और रूप होता है जिसको हम रेडिएशन या विकिरण कहते हैं, जिसे हम तरंग के रूप में देखते हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंग के रूप में और कभी कभी द्रव्यमान या संहति के रूप में।
जैसे एक कण को ऊर्जा प्रदान करना शुरू किया तो क्या होगा? ऊर्जा दे रहा हूं, मान लो घर्षण नहीं है, विपरीत दिशा से लगने वाला बल नहीं है। तो मैं जो भी ऊर्जा दे रहा हूं वो उस कण की गति को बढ़ाते चली जाएगी, और उसका वेग बढ़ता चला जाएगा। अगर उस कण को ऊर्जा देता ही चला जाऊं तो वेग लगातार बढ़ता चला जाएगा। बढ़ते बढ़ते कहां तक जाएगा यह वेग? क्या अनन्त तक? नहीं, ऐसा नहीं होगा। प्रकृति का एक नियम है कि कोई भी वस्तु प्रकाश के वेग से अधिक गति नहीं कर सकती। तो फिर ऊर्जा का क्या होगा? अगर मैं ऊर्जा देते चला जा रहा हूं तो जब उस कण का वेग प्रकाश के वेग के करीब पहुंचता है तो फिर ऊर्जा द्रव्यमान में परिवर्तित होना शुरू हो जाती है।
अगर स्थिर यानी रुकी हुई अवस्था में वस्तु का द्रव्यमान कुछ है यानी उसका द्रव्यमान शून्य नहीं है तो मैं इसे किसी भी हालत में प्रकाश का वेग प्रदान नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए अनन्त ऊर्जा की आवश्यकता लगेगी। उसका सूत्र होता है।
अगर m0 का कुछ भी मान है। और यदि मुझे v बराबर c करना है। तो द्रव्यमान अनन्त हो जाएगा। यानी ऐसी वस्तु जिसका कि स्थिर अवस्था में कोई द्रव्यमान है उसे मैं कभी भी प्रकाश के वेग की गति प्रदान नहीं कर सकता क्योंकि इसके लिए अनन्त ऊर्जा देनी पड़ेगी।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी वस्तु प्रकाश के वेग से नहीं चलती, ऐसा भी कुछ है जो प्रकाश के वेग से चलता है, वे हैं तरंगें। वास्तव में जिसे हम प्रकाश की तरंग कहते हैं, वह प्रकाश के वेग से चलती है। उनका स्थिर अवस्था में कोई द्रव्यमान नहीं होता। वे कभी स्थिर होती ही नहीं हैं - प्रकाश जो है वह स्थिर नहीं होता।
परन्तु कभी-कभी प्रकाश की एक तरंग किसी कारणवश द्रव्यमान में बदल जाती है - यह विश्व की अद्भुत घटना है। इसे pair production कहते हैं - अचानक एक साथ दो कण बन जाते हैं, एक धन कण और एक ऋण कण। एक पॉजिट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन - दोनों का कुल आवेश शून्य। कुल मिलाकर आवेश नहीं बना, लेकिन द्रव्यमान बन गया।* पॉजिट्रॉन का जितना द्रव्यमान है इलेक्ट्रॉन का भी उतना ही द्रव्यमान है।
इसके विपरीत यह देखने को आया है कि यदि आप इन दोनों कणों को मिला दो तो वे एकदम गायब हो जाते हैं और हमें प्रकाश की तरंगें प्राप्त होती हैं। इसे ‘वेव एनहीलेशन' कहते हैं यानी द्रव्यमान का पूर्ण रूप से ऊर्जा में परिवर्तित हो जाना। अर्थात द्रव्यमान भी ऊर्जा का ही रूप है - एक ही ऊर्जा, पूरी प्रकृति में, अनेक रूपों में। हमें कहना चाहिए कि ऊर्जा ने पूरी प्रकृति में अपने आप को परिवर्तित कर लिया है। और इसके पीछे कारण क्या है? हमने वे कारण भी देखे जिनकी वजह से ऊर्जा इतने रूपों में परिवर्तित होती है। तीन किस्म के बल जिनकी हमने अब तक चर्चा की - गुरुत्वाकर्षण बल, कूलम्ब का बल और स्ट्रोंग फोर्स; वे ही हैं जो ऊर्जा को विभिन्न रूपों में प्रकट करते रहते हैं।
एक और बल है जिसकी मैं यहां चर्चा नहीं करूंगा, बस उल्लेख भर कर देता हूं। एक चौथा बल भी है। जिसे वीक फोर्स कहते हैं। उसकी वजह से जो घटनाएं होती हैं वे दैनन्दिन जीवन में देखने को नहीं आती। इस तरह कुल मिलाकर चार तरह के बल हैं।
*यहां भी उत्पन्न द्रव्यमान तरंग की ऊर्जा के अनुपात में ही होगा। समीकरण से अगर आप ऊर्जा निकालें तो आपको ऊर्जा संरक्षित मिलेगी। नष्ट नहीं हुई यह, केवल तरंग की ऊर्जा द्रव्यमान में परिवर्तित हो गई है। E = mc2
बलों का एकीकरण
ऐसा लगता है कि वास्तव में कूलम्ब को बल, स्ट्रोंग बल और वीक बेल ये तीनों अलग-अलग परिस्थितियों में एक ही बल के अलग-अलग रूप हैं। आइनस्टाइन जिन्दगी भर यह प्रमाणित करने की कोशिश करता रहा कि प्रकृति के ये जो चार बल हैं वास्तव में वे अलग-अलग नहीं हैं, एक ही बल अलग-अलग परिस्थितियों में अलग अलग रूप में प्रकट हो रहा है। इसे ही ‘युनिफिकेशन ऑफ ऑल फोर्सिस' यानी बलों का एकीकरण कहते हैं।
फिलहाल वैज्ञानिक तीन बलों का एकीकरण तो कर पाए हैं, चौथे को भी इसमें जोड़ने के अथक प्रयास जारी हैं। वे इसी बात को समझने की कोशिश में हैं कि केवल एक ही बल है जो अलग अलग रूप में प्रकट हो रहा है। और इसी के कारण ऊर्जा जो वास्तव में एक ही है भिन्न रूपों में प्रकट हो रही है।
एस. बी. वेलणकर: होलकर साइंस कॉलेज, इंदौर में भौतिक शास्त्र पढ़ाते हैं।
तीन लेखों की यह श्रृंखला एस. बी. वेलणकर द्वारा दिए गए एक व्याख्यान का हिस्सा है। यह व्याख्यान उन्होंने होशंगाबाद में होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम' के स्रोत शिक्षकों की एक कार्यशाला में दिया था।