स्निग्धा मित्रा
है तो केंचुआ उभयलिंगी जीव लेकिन प्रजनन के लिए यहां भी दो केंचुओं की जरूरत होती है।
यह जानकारी तो काफी आम है। कि केंचुआ एक उभयलिंगी जीव है। उभयलिंगी जीव यानी कि ऐसा जीव जिसमें नर और मादा जननांग एक ही जीव में पाए जाते हैं। किसी भी उभयलिंगी जीव के बारे में एक स्वाभाविक सवाल उठता है कि वो प्रजनन कैसे करता होगा। आइए समझने की कोशिश करें कि केंचुए में प्रजनन की प्रक्रिया कैसे होती है।
केंचुए में इस प्रक्रिया को समझने के लिए उसके शरीर की बनावट के बारे में थोड़ा-सा जानना ही पड़ेगा। केंचुए को देखने से जो जानकारी आपके पास है उसमें ये बातें और जोड़ लीजिए - केंचुए का शरीर बहुत से छल्लेनुमा खंडों का बना हुआ होता है जिनकी संख्या भारतीय प्रजातियों में आमतौर पर 100 से 120 के बीच होती है। उसके शरीर में दो तरह की मांस पेशियां होती हैं - एक जिनसे वह अपने आप को लंबा या छोटा कर सकता है, और दूसरी जिनसे केंचुआ मोटा या पतला हो सकता है। इनका इस्तेमाल वह हलन-चलन के लिए करता है।
आइए देखते हैं कि इस उभयलिंगी जीव में जननांग कहां होते हैं। आगे से यानी कि मुंह की तरफ से गिनें तो पांचवें और नौवें खंडों के बीच के प्रत्येक जोड़ पर दो-दो थैलियां होती हैं जिनमें शुक्राणु रखे जा सकते हैं। यानी कि कुल मिलाकर चार जोड़ थैलियां। शुरुआत में ये थैलियां बिलकुल खाली होती हैं। केंचुए के अपने शुक्राणु कभी भी इन थैलियों में नहीं आते। तो सवाल उठेगा कि फिर इन्हें शुक्राणु थैलियां कहें ही क्यों? थोड़ा रुकिए बात अपने आप स्पष्ट हो जाएगी।
थोड़ा आगे बढ़े तो चौदहवें खंड पर अंडवाहिनी का मुंह खुलता है - एक छिद्र के रूप में।
और फिर सत्रहवें से उन्नीसवें खंडों पर केंचुए के नर जननांग से आने वाले दो-दो छिद्र होते हैं, यानी तीन जोड़ छिद्र।
केंचुए में प्रजनन की प्रक्रिया दो चरणों में होती है। उभयलिंगी होने के बावजूद इसमें भी पहले चरण में दो के चुओं का मिलन आवश्यक है, उसके बिना प्रजनन नहीं हो सकता।
पहले चरण में दो के चुए पास-पास आकर एक-दूसरे से सट जाते हैं। वे इस तरह से पास-पास आते हैं कि एक केंचुए का मुंह जिम तरफ होता है, दूसरे का मुंह उससे उल्टी दिशा में रहता है। एक के नर जननांग छिद्र दूसरे की शुक्राणु थैलियों से सट जाते हैं, और दूसरे के नर जननांग छिद्र पहले की शुक्राणु थैलियों से सट जाते हैं। इस अवस्था में एक केंचुए का नर जननांग दूसरे केंचुए की शुक्राणु थैलियों में शुक्राणु छोड़ता है। इसी तरह दूसरे केंचुए का नर जननांग पहले केंचुए की शुक्राणु थैलियों में शुक्राणु छोड़ता है। जैसे जैसे केंचुए एक के ऊपर एक सरकते जाते हैं वैसे-वैसे एक केंचुए के शुक्राणु दूसरे की थैली में आ जाते हैं। ऐसा इसलिए जरूरी होता है क्योंकि शुक्राणु केवल 18वें खंड के छिद्रों में से निकलते हैं। इस तरह पहला चरण पूरा हो जाता है।
दूसरा चरण कहीं और ही शुरू होता है। केंचुए के मुंह से 14वें और 16वें खंड के बीच का हिस्सा कुछ फूला-फूला-सा होता है। यह हिस्सा लगभग एक सेंटी मीटर लंबा होता है। इसका रंग भी गहरा होता है और यह चमड़े जैसा दिखता है, इसलिए यह अलग ही नजर आ जाता है। क्लाइटेलम कहलाने वाले इस हिस्से की ग्रंथियां एक लिसलिसा पदार्थ स्त्रावित करती हैं जिसे म्यूकस कहते हैं। इस लिसलिसे पदार्थ से उन तीन वंडो के चारों तरफ एक नलाकार थैलीनुमा रचना बन जाती है। इसे हम प्रजनन थैली कहेंगे। इस नाम का औचित्य भी आपको कुछ ही देर में समझ में आ जाएगा।
याद है न कि अंडवाहिनी के छिद्र कौन-से खंड पर खुलते हैं। चौदहवें खंड पर यानी कि प्रजनन थैली के ठीक नीचे। प्रजनन थैली जब पूरी तरह से बन जाती है तो केंचुआ अंडवाहिनी के ज़रिए उसमें अंडे छोड़ देता है। और फिर अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल करते हुए पीछे की तरफ सरकने लगता है जिससे प्रजनन थैली आगे की तरफ से बाहर निकलने लगती है। उसी तरह जैसे हम उंगली से अंगुठी निकालते हैं। अब आगे की प्रक्रिया तो आप समझ ही गए होंगे! जब यह प्रजनन थैली सरकते-सरकते पांचवें से नौवें खंडों पर पहुंचती है तो शुक्राणु थैलियों में संजो कर रखे हुए दूसरे केंचुए के शुक्राणु उसमें जा पहुंचते हैं।
इसी तरह सरकती हुई यह थैली केंचुए के मुंह के ऊपर से बाहर निकल जाती है। इलास्टिक होने की वजह से केंचुए पर से उतरते ही थैली के दोनों सिरे बंद हो जाते हैं। इस प्रजनन थैली को अक्सर ‘ककून' कहा जाता है। ककून का रंग भूरा-सा होता है और लंबाई लगभग तीन मिली मीटर - गेहूं के दाने जैसा आकार, पर उससे काफी छोटा और कोने ज्यादा नुकीले।
आप भी कोशिश कर सकते हैं जमीन में ऐसे ककून ढूंढने की। और अगर कहीं ककून हाथ लग जाए तो मिट्टी में सुरक्षित रख इंतज़ार कीजिए कि केंचुए के बच्चे कब निकलते हैं। इतना जरूर बता दें कि बेसब्री से काम नहीं चलेगा क्योंकि अगर अभी अभी ही ककून उतारा है केंचुए ने तो बारह हफ्ते तक इंतजार करना पड़ सकता है।
स्निग्धा मित्राः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।