भूकंप के झटकों की पूर्व चेतावनी देने वाले अलार्म अक्सर बड़े झटकों के बारे में ऐन वक्त पर आगाह करते हैं। जिससे सुरक्षित जगह पर पहुंचने के लिए वक्त बहुत कम मिलता है। सुरक्षित जगह पर जाने की मोहलत भी तभी मिल पाती है जब खतरे की घंटी ठीक वक्त पर बज जाए। वैज्ञानिकों ने पाया है कि आम तौर पर बड़े भूकंपों की चेतावनी मिलने में देर होती है।
भूकंप पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेटों के आपस में रगड़ खाने से बनते हैं। प्लेटों की रगड़ के कारण तरंगें (वेव्स) बनती हैं और आगे बढ़ती हैं। जिस कारण भूकंप बनते हैं। सबसे पहले प्रायमरी (P) तरंगें बनती हैं जो तीव्र गति से चलती हैं। P तरंगें अनुदैध्र्य तरंगें होती हैं यानि जिस दिशा में ये चलती हैं उसी दिशा में कम्पन होता है। इनके कारण नुकसान अपेक्षाकृत कम होता है। इसके बाद S तरंगें बनती हैं, जो धीमी गति से आगे बढ़ती हैं। S तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं यानि जिस दिशा में तरंगें आगे बढ़ती हैं उसके लम्बवत दिशा में कम्पन होता है। जिनके कारण भूकंप के बड़े झटके पैदा होते हैं और नुकसान बड़े पैमाने पर होता है। P तरंगें बनने के दौरान ज़मीन की हलचल को मापा जाता है। ज़मीन में हुई हलचल के आधार पर S तरंग का अनुमान लगाया जाता है और आसन्न भूकंप की तीव्रता का अंदाज़ लगाया जाता है। इसके बाद अलर्ट भेजा जाता है।
शोधकर्ताओं ने साइंस एडवांसेस नामक पत्रिका में बताया है कि बड़े झटके बनने में वक्त लगता है इसलिए अलर्ट पहुंचने में वक्त लग जाता है और भूकंप के केंद्र से दूर के स्थानों पर तो भूकंप पहले आ जाता है।
शोधकर्ता अब इसके लिए बेहतर अलार्म सिस्टम बनाने की तैयारी में है। यह अलार्म भूकंप के केंद्र से कितनी दूरी पर कितना तेज़ झटका लगेगा, इस पर आधारित होगा। जैसे किसी भूकंप का झटका उसके केंद्र से 10 कि.मी. दूर ज़्यादा तेज़ होगा, बनिस्बत केंद्र से 100 किलोमीटर दूर के। फिलहाल शोधकर्ता बेहतर अलार्म सिस्टम के लिए अलग-अलग तीव्रता के भूकंप के केंद्र से अलग-अलग दूरी पर कितने तेज़ झटके महसूस होंगे, उसे मापेंगे। इतना करने के बाद वे इन स्थानों पर अलर्ट भेजने में कितना वक्त लगता है इस पर काम करेंगे। (स्रोत फीचर्स)