लगभग 20,000 वर्ष पूर्व की बात है जब देशज अमरीकियों के पूर्वजों ने साइबेरिया की ओर से बेरिंग भूमि सेतु पर से होकर अलास्का में कदम रखे थे। इन लोगों को वहां की लंबी-ठंडी रातों के चलते धूप के लिए तरसना पड़ा था। इतने सुदूर उत्तरी इलाके में धूप की कमी के चलते उन्हें रिकेट्स तथा स्वास्थ्य सम्बंधी कई अन्य समस्याओं ने परेशान किया होगा। किंतु यह आबादी जीवित रही और हज़ारों वर्षों तक फली-फूली। हाल में हुए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि उनके जीवित रह पाने का श्रेय एक जेनेटिक उत्परिवर्तन को जाता है। प्राचीन दांतों के विश्लेषण से पता चला है कि इस आबादी में संयोगवश यह उत्परिवर्तित जीन मौजूद था।
इस जीन का नाम EDAR है। देशज अमरीकियों और एशियाई लोगों में इस जीन का जो रूप पाया जाता है उसका सम्बंध मोटे बालों, ज़्यादा पसीना ग्रंथियों और सामने के दांत (कृंतक दंत) के बेलचेनुमा आकार से देखा गया है। इसी जीन का एक परिवर्तित रूप (V370A) चीन में करीब 30,000 वर्ष पूर्व प्रकट हुआ था। चीन की जलवायु उस समय कहीं अधिक गर्म और उमस भरी थी। इसके आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि संभवत: ज़्यादा पसीना ग्रंथियां होना उस जलवायु में लाभदायक रहा होगा। किंतु पता यह चला कि यह जीन करीब 20,000 वर्ष पूर्व एशियाई लोगों और देशज अमरीकी समुदायों में तेज़ी से फैला था जबकि वहां की जलवायु ठंडी और शुष्क थी। लिहाज़ा इस जीन के फैलने का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया।
मगर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की लेसली ह्लूस्को के दल के ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि यह परिवर्तित जीन इतना अधिक लाभदायक था कि देशज अमरीकी आबादी में तेज़ी से फैला। इस टीम ने युरोप, एशिया और उत्तरी व दक्षिण अमरीका के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से 5000 से ज़्यादा लोगों के दांतों का अध्ययन किया। देखा गया कि बड़ी संख्या में लोगों के दांत बेलचेनुमा थे जो जीन ज्370ॠ की उपस्थिति का संकेत है। जहां एशिया के 40 प्रतिशत नमूनों में यह जीन पाया गया वहीं देशज अमरीकियों के तो समस्त 3183 जीवाश्मों में यह जीन था।
इससे तो लगता है कि जो लोग बेरिंग सेतु पार करके यहां आए थे उनमें एशिया में प्रकट हुआ यह जीन रहा होगा और यहां यह तेज़ी से कई आबादियों में फैल गया होगा। शोधकर्ताओं का मत है कि इतने अधिक उत्तरी अक्षांश पर रहने वाले लोगों के शिशुओं के लिए धूप की कमी के चलते विटामिन डी का निर्माण मुश्किल रहा होगा। वयस्कों के विपरीत, शिशु समुद्री भोजन खाकर विटामिन डी प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसे में विटामिन डी की कमी एक बड़ी समस्या रही होगी।
यह भी देखा गया है कि V370A चूहों में स्तनों में दुग्ध नलिकाओं में ज़्यादा शाखाएं पैदा करने में मददगार होता है। इस आधार पर ह्लूस्को की परिकल्पना है कि इन अतिरिक्त शाखाओं के चलते माताएं ज़्यादा दूध पैदा कर पाई होंगी और बच्चों को ज़्यादा पोषण दे पाई होंगी। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ में टीम ने यह संभावना व्यक्त की है कि ऐसी माताओं के बच्चे ज़्यादा जीवित रहे होंगे और उनके ज़रिए यह जीन फैला होगा।
अभी बात परिकल्पना के स्तर पर ही है क्योंकि यह प्रमाणित करना बाकी है कि ज़्यादा शाखाएं ज़्यादा दूध उत्पादन में मददगार होती हैं। (स्रोत फीचर्स)