नरेन्द्र देवांगन
बीसवीं सदी को हथियारों की सदी कहा गया है क्योंकि इसी सदी में भयानक तबाही पैदा करने वाले अस्त्रों का विकास हुआ था। चाहे वह भयंकर विनाश करने वाला परमाणु बम हो या अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र (आईसीबीएम) हो। यहां तक कि छोटे हथियारों में सबसे खतरनाक एके-47 का विकास भी इसी सदी में हुआ था। शायद इन हथियारों के विकास को ध्यान में रखते हुए ही अल्बर्ट आइंस्टाइन ने बीसवीं सदी को पागलपन के विकास की सदी कहा था।
लेकिन पिछली सदी अगर हथियारों के विकास की सदी थी तो इक्कीसवीं सदी जैविक ज्ञान-विज्ञान की सदी है। पिछली सदी में अगर पलक झपकते ही इंसान के अस्तित्व को खत्म कर देने वाले हथियारों का विकास हुआ था तो इस सदी में इंसानी शरीर के चमत्कृत कर देने वाले गहरे रहस्यों की खोज जारी है। फिर वह चाहे मानव जीनोम को डिकोड कर लेने (यानी पढ़ लेने) की उपलब्धि हो या मानव अंगों को प्रयोगशाला में बनाने की उपलब्धि।
इसी क्रम में दवाओं की दुनिया में भी चौंकाने वाले बदलाव हो रहे हैं। भविष्य की दवाएं शरीर की मरम्मत या उसे स्वस्थ भर नहीं करेंगी, बल्कि उसे बदल ही देंगी। कुल मिलाकर मतलब यह है कि दवाओं की दुनिया में क्रांति आने वाली है।
आनुवंशिक बीमारियों की सूची बहुत लंबी है। इनके पनपने की एक प्रमुख वजह आनुवंशिकता होती है। डॉक्टर ऐसी बीमारियों के सामने अब तक असहाय रहे हैं। लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा। वैज्ञानिकों के हाथ आखिर वह कुंजी लग गई है, जिसकी तलाश में वे पिछले पांच दशकों से थे। जी हां, ‘मानव जीनोम’ (यानी सारे जीन्स के पुंज) का रहस्य खुल जाने के बाद चिकित्सा की समूची दुनिया उलटफेर की कगार पर आ खड़ी हुई है। अब तक कई बीमारियों के मामले में चिकित्सक मर्ज़ के लक्षण देखकर चिकित्सा करते रहे हैं लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा।
यू.एस. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ एंड ह्रूमन जीनोम रिसर्च के निदेशक फ्रांसिस कोलिन्स के अनुसार, “अगर आप किसी बीमारी का जेनेटिक आधार समझ गए तो आप यह बात बता सकते हैं या जान सकते हैं कि इसे किस प्रोटीन ने पैदा किया है और इसे रोकने के लिए आप दवा बना सकते हैं।” जबकि अभी तक ऐसा नहीं होता था। अभी तक किसी बीमारी के आधार-जीन का पता नहीं लगाया जाता था या नहीं लग पाता था। अभी तक जीन द्वारा पैदा किए गए प्रोटीन के दुष्परिणामों को रोकने का ही इलाज होता रहा है। दुष्परिणामी प्रोटीन को पैदा करने वाले जीन को नहीं छेड़ा जाता था। नतीजा यह निकलता था कि बीमारियों पर तो रोक लग जाती थी लेकिन बीमारियों की जड़ बनी रहती थी। इस वजह से एक बार ठीक होने के बाद कुछ अर्से बाद वही बीमारी दोबारा उभरने की संभावना होती थी।
मानव आनुवंशिक सूत्र में मौजूद लगभग तीन अरब रासायनिक संकेताक्षरों को वैज्ञानिकों ने पढ़ लिया है, जिससे अब मानव शरीर में मौजूद हज़ारों जीन्स को पढ़ना संभव हो चुका है। जैसा कि हम सब जानते हैं मानव शरीर 46 गुणसूत्रों के नियामक आदेशों के अनुसार संचालित होता है। वास्तव में इन्हीं 46 गुणसूत्रों में उपस्थित सूचना के आधार पर ही मानव के विभिन्न ऊतक, अंग, हॉर्मोंस और एंज़ाइम बनते हैं। मानव जीन कुंडली के रहस्यों को पढ़ लेने के बाद अब अनुमान के सहारे चलने वाली चिकित्सा पद्धति पुरानी पड़ चुकी है। जीनोम की जानकारी हो जाने के बाद अब बिलकुल नए किस्म की दवाएं बनने लगी हैं।
उदाहरण के लिए दवा बनाने वाली एक अमेरिकी कंपनी मिलेनियम फार्मास्यूटिकल्स के मुख्य वैज्ञानिक राबर्ट टेपर कैंसर-रोधी दवाइयों पर अनुसंधान कर रहे हैं। उन्होंने कैंसर के लिए एक दवा बनाई है। इसका नाम है ‘स्मार्ट बम’। यह जैविक स्मार्ट बम शरीर में पहुंचकर शरीर की तमाम कैंसर प्रभावित कोशिकाओं का पलक झपकते खात्मा कर देगा जबकि स्वस्थ कोशिकाओं से टकराएगा भी नहीं। अन्य एंटीबॉडीज़ की तरह एक मानव निर्मित कैंसर मिसाइल, कैंसर से क्षतिग्रस्त मानव कोशिकाओं पर हमला करके उन कोशिकाओं के ऐसे तमाम अणुओं को निकाल बाहर करेगी जो कैंसर पैदा करने में मददगार होंगे। यह कोई काल्पनिक दावा नहीं है। प्रायोगिक स्तर पर इस तरह की लगभग एक दर्जन दवाएं अमेरिकी बाज़ार में मिल रही हैं। ऐसी ही एक दवा है हरसेप्टिन। यह स्तन कैंसर के लगभग 30 प्रतिशत मामलों में कामयाब रही है।
मानव जीनोम के डिकोडिंग के पहले तक वैज्ञानिक सिर्फ 500 प्रोटीन्स के बारे में जानते थे और उन्हीं के मुताबिक दवाओं का निर्माण होता था। लेकिन अब वैज्ञानिक 30,000 से भी ज़्यादा प्रोटीन्स के बारे में जान गए हैं। माना जा रहा है कि इस जानकारी से मनुष्य की उम्र बढ़ाने और बुढ़ापा भगाने में कामयाबी मिल सकती है।
अब तक डॉक्टर अनुमान और लक्षणों के आधार पर दवा करते थे और कई बार एक ही रोग के लिए कई तरह की दवाएं देते थे। उदाहरण के लिए सिर्फ उच्च रक्तचाप के लिए ही डॉक्टर तमाम दवाएं लिखते थे लेकिन अब जैविक औषधि युग में डॉक्टर चिकित्सा के लिए लक्षणों को आधार नहीं बनाएंगे, बल्कि रोगी के प्रोटीन्स के संतुलन पर ध्यान देंगे। खासकर मधुमेह और कैंसर के मामले में संभवत: ऐसा ही होगा।
लेकिन राबर्ट टेपर के मुताबिक इन छोटी-छोटी सफलताओं को बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता। असली उपलब्धि कैंसर के लिए एक ऐसी ‘सुपर दवा’ का विकास करना होगा जो कि गले, गुर्दे और छाती के कैंसर का आधार बनने वाली कोशिकाओं के उन सभी अणुओं का खात्मा कर सके, जिनकी वजह से कैंसर होता है।
भले ही अभी यह ‘सुपर मेडिसिन’ दूर की कौड़ी लग रही है लेकिन मिलेनियम फार्मास्यूटिकल्स के डॉक्टरों ने कई ऐसे जीन्स का पता लगा लिया है जिनमें कैंसर के लिए सहायक अणु पाए जाते हैं। हालांकि इनमें से मिलेनियम के वैज्ञानिकों को अभी तक सिर्फ कुछ ही जीन्स की मरम्मत करने की कला समझ में आई है। यह जानकारी इन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ जीन बैंक की वेबसाइट पर फ्लैश भी की है। चिकित्सा के इतिहास में यह पहला ऐसा मौका है जब वैज्ञानिक यह जान पाने के करीब पहुंच गए हैं कि कौन-सी दवा प्रभावी होगी, कौन सी नहीं, और क्यों?
भविष्य की दवाओं के लिए जो सबसे चुनौतीपूर्ण मर्ज़ हैं उनमें हैं एड्स, कैंसर, मानसिक रोग, प्रतिरोधक क्षमता के ह्यास की बीमारी, अल्ज़ाइमर, ह्मदय रोग तथा पारकिंसन आदि। कुछ साल पहले तक इन सभी मर्ज़ों का नाम सुनकर चिकित्सा वैज्ञानिकों के हौसले पस्त हो जाते थे लेकिन आज उनमें गजब का आत्मविश्वास आ गया है। हालांकि इनमें से किसी भी रोग का पूरी तरह से खात्मा करने वाली दवा अभी तक इजाद नहीं हुई है लेकिन वैज्ञानिकों को यकीन है कि जेनेटिक कोड पढ़ लेने के बाद अब इनकी दवा विकसित करना मुश्किल नहीं है।
जैसे एड्स को ही लें। इसके लिए अगली पीढ़ी की दवा बाज़ार में आ गई है जिसका नाम है टी-20। यह दवा पहले के मुकाबले ज़्यादा प्रभावी ढंग से एचआईवी से लड़ पाने में सक्षम है क्योंकि इसका विकास एड्स की स्थिति में प्रभावित कोशिकाओं के सहायक अणुओं का अध्ययन करके किया गया है। हालांकि अभी भी एड्स के लिए किसी टीके का विकास नहीं हो पाया है लेकिन जीनोम का खुलासा होने से इसके विकास में मदद मिलेगी। आज एड्स से बचाव की कहीं बेहतर एंटीवायरल दवाइयां मौजूद हैं।
अल्ज़ाइमर अभी तक स्मृति लोप की लाइलाज बीमारी समझी जाती थी लेकिन अब इसके इलाज के लिए भी डोपामाइन, सरटोनिन और 5-हाइड्रोक्सीट्रिप्टोमाइन जैसी कई दवाएं बाज़ार में मौजूद हैं।
चिकित्सा वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तक 2,000 ऐसे रोगों का पता चला है जिन्हें केवल एक जीन का उपचार करके सदा-सदा के लिए खत्म किया जा सकेगा। आणविक जीव विज्ञान के ज़रिए दवाओं की पूरी दुनिया बदलने वाली है। आगामी वर्षों में न सिर्फ दवाओं का मौजूदा पैटर्न बदल जाएगा बल्कि ज़्यादातर दवाएं विभिन्न जेनेटिक आहारों और फलों के रूप में ही प्राप्त होने लगेंगी। (स्रोत फीचर्स)