एक अध्ययन के मुताबिक तेज़ गति से होता जलवायु परिवर्तन गेहूं-चावल जैसे फसलों के कुदरती सम्बंधियों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है और संभव है कि वर्ष 2070 तक ये जंगली किस्में नदारद हो जाएं। यूएस के एरिज़ोना विश्वविद्यालय के जॉन विएन्स के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि इन फसलों के जंगली सम्बंधी जलवायु परिवर्तन की तेज़ रफ्तार से तालमेल बनाने में असमर्थ रहेंगे।
गेहूं और चावल दुनिया की दो प्रमुख फसलें हैं जो इंसानों द्वारा उपभोग की जाने वाली कुल कैलोरी में से आधी उपलब्ध कराती हैं। ये तथा ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे अन्य अनाज घास कुल के पौधे हैं। वैसे तो इन फसलों की जंगली किस्मों के सफाए का खाद्यान्न सुरक्षा पर सीधे-सीधे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा मगर आगे का विकास अवरुद्ध हो सकता है। ये जंगली किस्में जेनेटिक विविधता की महत्वपूर्ण स्रोत हैं। चाहे सूखा प्रतिरोधी किस्म का विकास करना हो या किसी रोग के खिलाफ प्रतिरोधी किस्म की दरकार हो, हम इन्हीं जंगली किस्मों का मुंह ताकते हैं।
बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में घास की 236 प्रजातियों का अध्ययन इस दृष्टि से किया गया कि वे जलवायु परिवर्तन के साथ कितनी तेज़ी से तालमेल बना पाती हैं। तालमेल बनाने के दो ही तरीके हैं। पहला है कि किसी एक प्राकृतवास के लिए अनुकूलित किस्म जलवायु परिवर्तन होने पर वहां से निकलकर किसी अनुकूल प्राकृत वास में जम जाए। दूसरा तरीका यह है कि उनमें इस तरह से विकास हो कि वे पुराने मगर बदले हुए परिवेश में अनुकूलित हो जाएं।
जहां तक नए प्राकृत वास में पहुंचने का सवाल है तो इसका एक ही उपाय होता है कि सम्बंधित पौधे के बीज दूर-दूर तक बिखरें और वहां जाकर फले-फूलें। घासों के लिए यह सहज नहीं है क्योंकि उनके बीज बहुत दूर तक नहीं बिखरते। इसके अलावा नई जगह पर पहुंचने के लिए रास्ते की तमाम बाधाओं को पार करना होता है। जैसे पहाड़ या मानव बसाहटें।
तो रास्ता केवल यह बच जाता है कि पौधे बदले हुए परिवेश के साथ तालमेल बनाएं। अध्ययन में पता चला है कि घासों में जिस गति से परिवर्तन होते हैं, जलवायु परिवर्तन उससे 5000 गुना अधिक तेज़ी से हो रहा है और इसकी गति भविष्य में और अधिक बढ़ते जाने की आशंका है। यानी ये जंगली किस्में पिछड़ जाएंगी। ऐसा हुआ तो यह जेनेटिक विविधता के लिए और इंसानों के हक में अच्छा नहीं होगा। (स्रोत फीचर्स)