वैसे तो समंदर बहुत ही शांत प्रतीत होते हैं मगर अब शोधकर्ताओं ने मछलियों के वृंद गीत सुने हैं और उनका विश्लेषण करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया के पर्थ विश्वविद्यालय के रॉबर्ट मेककॉले पिछले तीस वर्षों से इन मछलियों के गीतों को सुनने की कोशिश करते रहे हैं। हाल ही में उनके दल ने समुद्र में दो जगह ध्वनि रिकॉर्डिंग की व्यवस्था की और परिणामों ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया। यह व्यवस्था उन्होंने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पोर्ट हेडलैण्ड के तट पर और तट से 21.5 किलोमीटर की दूरी पर की और पूरे 18 महीनों तक समंदर के शोर को रिकॉर्ड किया।
मैककॉले का कहना है कि अधिकांश ध्वनियां तो इकलौती मछलियों की होती हैं मगर कभी-कभी जब ये ध्वनियां एक साथ आती हैं तो वृंद गान का रूप ले लेती हैं। इन रिकॉर्डिंग के विश्लेषण के आधार पर उन्होंने सात अलग-अलग किस्म के वृंद गान पहचाने हैं जो पौ फटने के समय और गोधुली की बेला में सुनाई पड़ते हैं।
मैककॉले का कहना है कि ध्वनियां मछलियों के जीवन में कई भूमिकाएं अदा करती हैं। प्रजनन, भोजन और अपने इलाके की रक्षा जैसे कई संदर्भों में इन ध्वनियों की भूमिका देखी गई है।
जैसे रात्रिचर मछलियां शिकार के दौरान झुंड में साथ-साथ बने रहने के लिए कुछ ध्वनियों का इस्तेमाल करती हैं जबकि दिन में सक्रिय मछलियां अपनी आवाज़ का उपयोग अपने इलाके की रक्षा हेतु करती हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ध्वनियों को रिकॉर्ड करके आप मछलियों की हलचल और उनके इकोसिस्टम की निगरानी कर सकते हैं। खास तौर से इस तरीके से आपको लंबे समय के आंकड़े मिलते हैं। इस अध्ययन से एक बात तो साफ हो जाती है कि समंदरों में शोरगुल मछलियों के रहन-सहन को प्रभावित कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)