एक सूक्ष्म चपटा कृमि है जो क्लोनिंग के ज़रिए हज़ारों कृमियों की फौज बना लेता है। हैप्लोर्किस प्यूमिलियो (Haplorchis pumilio) नामक ये कृमि घोंघे को संक्रमित करते हैं और उसके प्रजनन अंगों की दावत उड़ाते हैं। अंतत: वह घोंघा वंध्या हो जाता है। ये चपटे कृमि दो-चार हफ्ते नहीं, सालों तक वहां बने रहते हैं और घोंघे के खून में से पोषण चूसते रहते हैं और अपने क्लोन बनाते रहते हैं। यानी यह घोंघा परजीवी-निर्माण कारखाना बनकर रह जाता है।
और क्रूरता यहीं समाप्त नहीं होती। जहां अधिकांश कृमि प्रजनन के बाद अपने लार्वा को झीलों या नदी-नालों में छोड़ देते हैं ताकि वे नए शिकार तलाश सकें, वहीं इस परजीवी के कुछ लार्वा प्रजनन के अयोग्य होते हैं और पानी में जाने की बजाय वहीं बने रहते हैं। ये सैनिकों के रूप में भूमिका निभाते हैं और इनके गले बड़े-बड़े होते हैं।
प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ये अन्य प्रतिस्पर्धी परजीवियों के शरीर में छेद कर देते हैं और उनकी आंतों को चूस लेते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह इन कृमियों में सामाजिक व्यवस्था का द्योतक है। वैसे तो मधुमक्खियों और चींटियों जैसे जंतुओं में सामाजिक विभेदन देखने को मिलता है लेकिन ट्रेमेटोडा वर्ग के कृमियों में यह पहली बार देखा गया है। पहले के शोधकर्ताओं का विचार था कि ये सैनिक कृमि जीवन में कभी ना कभी प्रजनन करते होंगे।
हैप्लोर्किस प्यूमिलियो को लेकर यह खोज संयोग और सोच-समझकर किए गए प्रयोगों का मिला-जुला परिणाम है। एक झील के पास टहलते हुए परजीवी वैज्ञानिक डैन मेट्ज़ की नज़र एक अजीब से घोंघे पर पड़ी। उन्होंने इसे पहचान लिया - यह मलेशिया मूल का ट्रम्पेट घोंघा (मेलेनॉइड्स ट्यूबरकुलेटा - Melanoides tuberculata) था। वे इसे प्रयोगशाला में ले आए। वहां जब उसे सूक्ष्मदर्शी के नीचे एक तश्तरी में रखा तो देखा कि उसमें से परजीवी निकल-निकल कर आसपास तैर रहे हैं।
मेट्ज़ ने पहचान कर ली कि ये परजीवी एच. प्यूमिलियो हैं। जांच करने पर पता चला कि कृमि के अंदर बच्चे भरे हुए हैं। खुद कृमि लगभग 1 मिली मीटर लंबा था। कुछ छोटे कृमि भी थे जो सामान्य साइज़ का मात्र 5 प्रतिशत थे यानी 1 मिलीमीटर का बीसवां भाग। लेकिन छोटे होने के बावजूद उनके मांसल गले विशाल थे - पूरे शरीर का लगभग एक-चौथाई। मेट्ज़ का विचार था कि ये सैनिक होंगे।
अगला कदम था परजीवियों की कुश्ती। मेट्ज़ ने एच. प्यूमिलियो के सैनिकों को अन्य परजीवी कृमि प्रजातियों के साथ रखा। वे प्रजातियां भी आम तौर पर घोंघों को संक्रमित करती हैं। सैनिक इन पराए कृमियों के पास गए, अपना मुंह उनसे चिपकाया और गले को फुलाया। इसकी वजह से निर्वात उत्पन्न हुआ जिसके चलते बड़े परजीवियों के शरीर में छेद हो गए। इस छेद के ज़रिए सैनिकों ने उस परजीवी की आंतों को चूसकर बाहर निकाला और खा गए। लेकिन अजीबोगरीब बात यह देखी गई कि जब इन सैनिकों को उन्हीं की प्रजाति के अन्य सदस्यों के साथ रखा गया तो उन्होंने अपने प्रजननक्षम सहोदरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।
इन सैनिकों में प्रजनन अंग भी नहीं पाए जाते और आजीवन वे वंध्या अवस्था में ही रहते हैं। यानी ये इसी रक्षात्मक भूमिका के लिए तैयार हुए हैं। इसके आधार पर मेट्ज़ का विचार है कि यह वास्तविक सामाजिक व्यवस्था का लक्षण है जैसी कि मधुमक्खियों, चींटियों, दीमकों वगैरह में पाई जाती है।
एच. प्यूमिलियो का यह फौजी जमावड़ा काफी मददगार साबित होता है। 2021 में मेट्ज़ और उनके साथियों मे 3164 एम. ट्यूबरकुलेटा घोंघों का सर्वेक्षण किया था। उन्होंने देखा कि एच. प्यूमिलियो ने घोंघों पर पूरा कब्ज़ा कर लिया था। ऐसे मामले बिरले ही थे जहां घोंघों को किन्हीं अन्य प्रजातियों ने संक्रमित किया हो। और तो और, जिन मामलों में अन्य प्रजातियों ने घोंघों को संक्रमित किया था, उनमें भी एच. प्यूमिलियो का ही वर्चस्व दिखा। लड़ाइयों में एच. प्यूमिलियो सैनिक कभी नहीं मारे गए, बल्कि वे ही हमेशा किसी और को मारते दिखे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - November 2024
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