शोधकर्ता यह पता लगाने में सफल रहे हैं कि पृथ्वी से टकराकर उथल-पुथल मचाने वाली चट्टान कहां से आई थी और किस प्रकार की थी। यह तो आम जानकारी का विषय है कि लगभग साढ़े 6 करोड़ वर्ष पूर्व एक उल्का पृथ्वी से टकराई थी जिसने डायनासौर समेत उस समय उपस्थित 75 प्रतिशत प्रजातियों का सफाया कर दिया था।
दरअसल, वर्ष 2016 में उल्कापिंड की टक्कर से बने गड्ढे, जो मेक्सिको के चिक्सुलब गांव के निकट समुद्र के पेंदे में दफन है, की ड्रिलिंग के दौरान शोधकर्ताओं को चट्टान का एक टुकड़ा मिला था। वह टुकड़ा कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट था। कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट एक किस्म की उल्काएं होती हैं जिनमें काफी मात्रा में कार्बन पाया जाता है। उस समय लुईस व वाल्टर अल्वारेज़ ने यह विचार प्रस्तुत किया था कि करोड़ों वर्ष पूर्व कोई विशाल उल्का पृथ्वी से टकराई थी जिसके चलते यहां कयामत आ गई थी।
1980 के बाद अल्वारेज़ द्वय ने यह दर्शाया था कि दुनिया भर में क्रेटेशियस और पेलिओजीन युगों के संगम स्थल की परतों में इरिडियम की मात्रा पृथ्वी पर निर्मित चट्टानों से ज़्यादा होती है। यह इस बात का प्रमाण था कि इन परतों के बनने में पृथ्वी से बाहर के पदार्थ का योगदान था।
आगे चलकर यह भी पता चला था कि क्रेटेशियस-पेलियोजीन संगम परतों में क्रोमियम की मात्रा भी ज़्यादा है लेकिन कहा गया था कि क्रोमियम तो आसपास से घुलकर भी पहुंच सकता है।
अब साइन्स पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया है कि दुनिया भर में उस टक्कर से उत्पन्न मलबे का विश्लेषण करने पर स्पष्ट हुआ है कि साढ़े 6 करोड़ वर्ष पूर्व टकराई उल्का कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट ही थी। कोलोन विश्वविद्यालय के मारियो फिशर-गोडे और उनके साथियों ने दुनिया भर में ऐसे sमलबे में रुथेनियम नामक दुर्लभ धातु के विश्लेषण में पाया है कि उनमें समस्थानिकों का अनुपात वही है जो कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट्स में पाया जाता है। पृथ्वी से बाहर की चट्टानों में रुथेनियम की मात्रा स्थानीय चट्टानों से 100 गुना ज़्यादा होती है। लिहाज़ा यह पहचान का बेहतर साधन है।
जब फिशर-गोडे की टीम ने क्रेटेशियस-पेलियोजीन संगम परतों के पांच नमूनों में रुथेनियम के सात टिकाऊ समस्थानिकों की जांच की तो पता चला कि उनका अनुपात सर्वत्र एक ही है। इसका मतलब हुआ कि ये सारे नमूने एक ही पिंड के अंश हैं।
इसके अलावा जाने-माने कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट्स में देखे गए रुथेनियम समस्थानिक अनुपात भी लगभग इनके बराबर ही पाए गए। उन्होंने 3.6 करोड़ और 4.7 करोड़ वर्ष पूर्व की टक्कर से बने गड्ढों के नमूनों में भी जांच की। यहां पता चला कि उनमें रुथेनियम की मात्रा सिलिकायुक्त उल्काओं के समान हैं। ये उल्काएं सूर्य के अपेक्षाकृत नज़दीक बनती हैं।
तो इतना तो स्पष्ट हो गया कि साढ़े 6 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी का नसीब बदल देने वाली उल्का कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट थी। इनमें भरपूर मात्र में पानी, कार्बन तथा अन्य वाष्पशील अणु होते हैं। यानी इनका उद्गम सूर्य से बहुत दूर हुआ होगा क्योंकि पास हुआ होता तो ये पदार्थ भाप बनकर उड़ चुके होते।
ये सौर मंडल के शुरुआती दौर में (लगभग साढ़े 4 अरब वर्ष पूर्व) बनी थीं। माना जाता है कि इनके साथ पृथ्वी पर पानी और कार्बनिक अणु आए थे जिन्होंने जीवन के पनपने में मदद की थी। लेकिन ऐसे कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट तो पृथ्वी से शुरुआती एकाध अरब वर्षों में टकराया करते थे। आजकल टकराने वाली उल्काओं में महज़ 5 प्रतिशत ही कार्बनयुक्त कॉन्ड्राइट होते हैं।
लेकिन चिक्सुलब इम्पैक्टर तो अभी हाल के इतिहास में टकराया था। तो यह कहां से टपक पड़ा? ऐसा माना जाता है कि ये किसी वजह से मंगल और बृहस्पति के बीच स्थिति क्षुद्र ग्रह पट्टी में खिंच गए थे। कभी-कभार ये वहां से मुक्त होकर अंदरुनी सौर मंडल में प्रवेश कर जाते हैं। संभवत: 10 किलोमीट व्यास का चिक्सुलब इम्पैक्टर भी वहां से निकल धरती से टकरा गया था।
यह इतना विनाशकारी इसीलिए साबित हुआ था क्योंकि यह कार्बनयुक्त था। इस वजह से जब यह जला होगा तो इसने गहरा धुआं पैदा किया होगा जिसने सूरज की रोशनी को पृथ्वी पर पहुंचने से रोक दिया होगा जिसके चलते टक्कर के प्रत्यक्ष प्रभावों के अलावा भी असर हुए होंगे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - November 2024
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