पिछले वर्ष आकाश में एक अजीब-सा पिंड देखा गया था। धरती पर लगी दूरबीनों और अंतरिक्ष में स्थापित दूरबीनों से पता चला था कि यह सिगार के आकार का पिंड है और संभवत: धूमकेतु है। किंतु धूमकेतुओं की एक जानी-मानी खूबी होती है उनके पीछे गैस और धूल की पूंछ। इसी पूंछ की उपस्थिति की वजह से इन्हें पुच्छल तारा भी कहते हैं। जब इस पिंड के पीछे पूंछ नहीं दिखी तो वैज्ञानिकों ने मान लिया कि यह धूमकेतु नहीं बल्कि कोई उल्का है। इसका नाम रखा गया था - औमुआमुआ।
अब औमुआमुआ हमसे दूर जा रहा है और वैज्ञानिक इस पर नज़र रखे हुए हैं। खास तौर से इसके यात्रा मार्ग का ज़्यादा सटीक अध्ययन किया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने एक विचित्र बात देखी है। औमुआमुआ ने जो मार्ग अख्तियार किया है उसकी व्याख्या सिर्फ सूर्य, ग्रहों तथा सौर मंडल के अन्य विशाल पिंडों के गुरुत्वाकर्षण के आधार पर नहीं की जा सकती। वैज्ञानिकों का मत है कि इस पर कोई अतिरिक्त बल काम कर रहा है। आंकड़ों को देखकर वैज्ञानिक यह तो समझ गए हैं कि इस पर लग रहा बल सौर विकिरण की वजह से नहीं लग रहा है और न ही यह किसी अन्य पिंड से टक्कर का परिणाम है।
नेचर में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि सबसे उपयुक्त व्याख्या यही है कि औमुआमुआ में से पानी की भाप और गैसें निकल रही हैं जो इसे धक्का लगा रही हैं। तो सवाल यह है कि इन पदार्थों को पहले क्यों नहीं देखा जा सका था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह पिंड किसी अन्य सौर मंडल से आया है और इतनी लंबी यात्रा के दौरान इसमें से निकलने वाले पदार्थ के कण अपेक्षाकृत बड़े हो गए हैं जिन्हें हमारी प्रकाशीय दूरबीनें नहीं देख पार्इं। इससे पता चलता है कि यह किसी दूरस्थ सौर मंडल में निर्मित हुआ था। तो एक बार फिर इसे धूमकेतु ही माना जा रहा है। (स्रोत फीचर्स)