ऑस्ट्रेलिया वह महाद्वीप है जहां स्तनधारियों की आबादी में सबसे तेज़ गिरावट दर्ज की जा रही है। यहां जो स्तनधारी निवास करते हैं उनमें मार्सुपियल बड़ी तादाद में हैं। मार्सुपियल प्राणियों की विशेषता यह होती है कि इनकी संतानें पैदाइश के समय पूर्ण विकसित नहीं होतीं और उन्हें शरीर से बाहर एक थैली में पाला जाता है। इस थैली को मार्सुपियम कहते हैं।
ऐसा एक जोखिमग्रस्त मार्सुपियल प्राणि उत्तरी क्वोल (Dasyurus hallucatus) है। यह गिलहरी के बराबर होता है। इसके साथ दिक्कत यह हुई है कि यह ज़हरीले मेंढकों को पहचान नहीं पाता और उन्हें खा जाता है। यह मेंढक एक टोड (Rhinella marina) है जिसे ऑस्ट्रेलिया के कृषि अधिकारियों ने करीब 80 वर्ष पहले यहां छोड़ा था। इस टोड को वहां एक अन्य जीव - गुबरैलों - पर नियंत्रण पाने के मकसद से छोड़ा गया था। ये गुबरैले ऑस्ट्रेलिया की गन्ने की फसल को बहुत नुकसान पहुंचा रहे थे।
उत्तरी क्वोल को लगा कि यह बढ़िया भोजन है लेकिन यह टोड ज़हरीला था। अपने भोजन को न पहचान पाने के चक्कर में क्वोल की आबादी आज मात्र 25 प्रतिशत रह गई है। मेलबोर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एला केली और बेन फिलिप्स को अपने अनुभव से यह पता था कि क्वोल आबादी में कुछ क्वोल ऐसे भी हैं जो इस ज़हरीले टोड को नहीं खाते। तो केली और फिलिप्स ने सोचा कि क्यों न इन होशियार क्वोल का यह प्राणरक्षक गुण सभी क्वोल में पहुंचा दिया जाए ताकि वे इस ज़हरीले भोजन से बचने की क्षमता से लैस होकर अपनी रक्षा कर सकें।
अपने विचार को परखने के लिए उक्त वैज्ञानिकों ने टोड-प्रभावित क्षेत्रों से कुछ ऐसे क्वोल लिए जो ज़हरीले टोड से बचकर रहते थे। फिर वे एक टोड-मुक्त टापू से कुछ क्वोल लेकर आए और इन दो आबादियों के बीच प्रजनन होने दिया। इनकी संतानों को भोजन के रूप में उसी ज़हरीले टोड की टांगें दी गईं तो पता चला कि अधिकांश शिशु क्वोल टोड की टांग से दूर ही रहे।
केली और फिलिप्स का मत है कि इस प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है कि टोड से कतराने का गुण जेनेटिक है और उसे संकरण के ज़रिए अन्य क्वोलों में भी पहुंचाया जा सकता है। अब वे बड़े पैमाने पर इस परीक्षण को प्राकृतिक परिस्थिति में करने की योजना बना रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)